‘कुल लोगन के त हमनी देख लेहनी…नीतीश जी के हियंवा (बिहार में) और मोदी जी के उहंवा (दिल्ली में)। अब एक बारी तेजस्वियो के देख लेबे के चाही...।’
घुटने तक धोती और पिछले कई दिन से पसीना झेल रहा कुर्ता पहने 50-60 साल के महाशय ने बीच बाजार ये घोर राजनीतिक टिप्पणी कहकर अचानक हलचल मचा दी। बाजार है, आरा जिले के जगदीशपुर विधानसभा क्षेत्र का हरदियां चौक।
चौक पर पान की कई दुकानें हैं। एक-दो दुकान समोसा-लिट्टी वाली भी दिख रही हैं। दोपहर का वक्त है और धूप बहुत तेज है, सो कई लोग बूढ़े पीपल की छांव में बैठे हैं। यहीं बैठे-बैठे वो टिप्पणी आई, जिसने एक घोर राजनीतिक बहस का आगाज कर दिया है।
बगल की दुकान से पान खाने के बाद उंगली से हल्का चूना जीभ पर लगाते हुए एक अधेड़ व्यक्ति ने जवाब दिया, ‘काहे ना? देख ली? रउरा त अठारहे साल के ना बानी। लालू जी के पंद्रह साल ना देखले हो, अब या इयाद नइखे होई!’
व्यंगात्मक लहजे में दिए गए इस जवाब ने चौक का माहौल गरमा दिया है। आसपास खड़े-बैठे कई लोग बूढ़े पीपल के और करीब आ गए हैं। शुरुआती टिप्पणी करने वाले सज्जन बोले, ‘ए बबुआ। ढ़ेर ना अगरा। सब बुझा रहा है जो आप बोल रहे हैं। ई 15 साल काहे नहीं देखे और उसके पहले वाला पंद्रह साल ही काहे देखें? माने बेटा, अपन बाप की गलती ना देखें, लेकिन दादा से हिसाब मांगें। ई कौन बात हुआ?’
सन 1857 के प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सिपाही और महानायक वीर कुंवर सिंह इसी जगदीशपुर के थे। इस वजह से जगदीशपुर को देश-दुनिया में पहचान मिली हुई है। इसकी खूब चर्चा होती है, लेकिन इस चुनावी माहौल में जगदीशपुर एक विधानसभा सीट मात्र है। यहां से राष्ट्रीय जनता दल के राम विष्णु सिंह लोहिया विधायक हैं और अबकी जीत की हैट्रिक बनाने की चाहत लिए मैदान में उतरे हैं।
जदयू से लोजपा में शामिल होकर चुनाव लड़ रहे भगवान सिंह कुशवाहा ताल ठोक रहे हैं। एनडीए की तरफ से यहां जदयू चुनाव लड़ रही है और पार्टी ने आदर्श पंचायत दांवा की मुखिया सुषमलता कुशवाहा को मैदान में उतार रखा है। बीच दोपहर हो रही इस चुनावी बतकही की सबसे खास बात आपको मालूम है? वो ये कि किसी भी स्थानीय उम्मीदवार को अभी तक इस बहस में जगह नहीं मिल रही है। बहस राज्य और राष्ट्र के स्तर से नीचे उतर ही नहीं रही है।
‘ठीके बा। मांगी कुल हिसाब। याद रखना होगा कि तेजस्वी यादव का बैकग्राउंड क्या है? वो वक्त तो जनता को याद रखना ही होगा।’ व्यंग्य करने वाले सज्जन इतना कहते हुए बहस से खुद को बाहर कर लेने की कोशिश कर रहे हैं।
लेकिन, बिहार में जब एक बार चुनावी बहस का शामियाना खड़ा हो जाता है तो उसे गिराना आसान नहीं होता। यहां भी कुछ-कुछ ऐसा ही हो रहा है। बगल में खड़े एक बीस-बाइस साल के नौजवान ने कहा, ‘सगरो यही बात हो रहा है। जो विपक्ष में है उसका बैकग्राउंड चेक करो। उन्हीं से सवाल करो। उन्हीं से जवाब मांगो। जो सत्ता में हैं। जिन्होंने पिछले पंद्रह साल से बिहार में शासन किया। जिनकी सरकार राज्य और केंद्र दोनों जगह है उनसे कोई सवाल नहीं। उनका कोई बैकग्राउंड चेक नहीं। काहे भाई?’
नौजवान द्वारा पूछे गए इन सवालों की शायद वहां किसी को उम्मीद नहीं थी। लग रहा है जैसे उसके इस सवाल से बहस पर पूर्ण विराम लग गया है। अब किसी के पास कोई तर्क नहीं। अब कोई कुछ नहीं कहेगा। सब शांत। सब चुप।
इसी बीच धूप का चश्मा लगाए और सफेद कुर्ता-पायजामा पहने एक सज्जन स्कूटी से आते हैं। हाव-भाव से स्थानीय लग रहे हैं। आते ही पान दुकान में बैठे लड़के से बोलते हैं, ‘ये बाबू, एकठो पान खियावा। बड़ी गर्मी है।’ जब तक पान बन रहा है, तब तक वो बहस में एक अलग ही बात लेकर शामिल हो जाते हैं। कहते हैं, ‘अबकी माहौल बड़ी टाइट है। हर जगह लड़ाई है। तीन फंसवा (त्रिकोणीय) चुनाव हो गया है। कुछो नहीं बुझा रहा है।’
शुरुआती टिप्पणी करने वाले चाचा इस बात पर मुंह बनाते हैं। अपनी लाठी जमीन पर पटकते हुए कहते हैं, ‘देखत न रहीं, अबकी लालू के लइका निकल जइहे औरी मोदी जी हेरा जइहें! पता नहीं आपको क्यों नहीं लउक रहा है, लेकिन सबकुछ पानी की तरह साफ है।’
चाचा के बगल में खड़ा नौजवान आंख मारते हुए पूछता है, ‘कौन मोदी नी भुला जाइहें? छोटका की बड़का?’
चचा कहते हैं, ‘बात होई त बड़के मोदी के ना होई। छोटका के त दूध-भात रहता।’
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