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सिर्फ लड़की की इज्जत उसके शरीर में होती है, लड़के की इज्जत का शरीर से कोई लेना-देना नहीं?

गांव की सरकारी कन्या पाठशाला से निकलकर शहर की बड़ी यूनिवर्सिटी में पढ़ाई का वो पहला साल था। मां की चिंताएं कुछ और रही होंगी, जो एक दिन मौका पाकर उन्होंने मुझे बाजार जाते हुए रास्ते में ये कहानी सुनाई। 'प्रभा की सहेली की शादी टूट गई, अरेंज मैरिज थी। लड़का यहीं इलाहाबाद में कंपटीशन की तैयारी कर रहा था। दोनों मिलने लगे, वो उसके कमरे पर भी जाने लगी। फिर सबकुछ हो गया होगा उनके बीच। बाद में लड़के ने शादी करने से मना कर दिया। बोला, 'तुम शादी से पहले मेरे साथ कर सकती हो तो किसी के भी साथ कर सकती हो।' बताओ, क्या इज्जत रह गई लड़की की।'

पूछना तो मैं ये चाहती थी कि शादी से पहले सबकुछ तो लड़का भी कर चुका था। उसकी इज्जत नहीं गई क्या? लेकिन पूछा नहीं, मुंह बंद करके कहानी सुनी, हामी में सिर हिलाया। मां को लगा, उन्होंने जातक कथाओं की तरह जवानी की दहलीज पर कदम रख रही बेटी को बिना सेक्स शब्द उच्चारे जीवन का पहला जरूरी सबक सिखा दिया है। सबक ये कि सिर्फ लड़की की इज्जत उसके शरीर में होती है। लड़के की इज्जत का शरीर से कोई लेना-देना नहीं। लड़का शमी का पेड़ है। सदा पाक-पवित्र है। लड़की गूलर का फूल, जरा हाथ लगा नहीं कि भरभराकर झर जाएगी।

हाथरस में 19 साल की लड़की के साथ हुए नृशंस बलात्कार के बाद भारत के पूर्व चीफ जस्टिस मार्कण्डेय काटजू ने ट्विटर पर एक पोस्ट लिखी, जिसमें एक लाइन थी- 'सेक्स पुरुष की प्राकृतिक जरूरत है।' फिर उन्होंने खराब अर्थव्यवस्था, बढ़ती बेरोजगारी के कारण लड़कों की वक्त पर शादी न हो पाने और उनके सेक्स से वंचित रह जाने को बढ़ते बलात्कार की एक वजह बताया। हालांकि, वो साथ-साथ ये सफाई देते चले कि वो बलात्कार की वकालत नहीं कर रहे। लेकिन, इस बात की वकालत जरूर करते दिखे कि "सेक्स सिर्फ मर्द की प्राकृतिक जरूरत है, औरत की नहीं।"

अगर समाज ऐसा होता कि घर-खानदान की, बाप-दादा की और खुद लड़की की इज्जत उसके शरीर में न होती तो क्या इतनी शर्मिंदगी, इतना अपमान, इतना दुख उसके हिस्से में आता, जितना कि आया है। क्या मर्द एक दूसरे को नीचा दिखाने, एक-दूसरे से प्रतिशोध लेने के लिए उनकी औरतों को निशाना बनाते। याद है पाकिस्तान की मुख्तारन माई। दुश्मनी उसके भाई से थी, बदला लेने के लिए चार लोगों ने मुख्तारन के साथ सामूहिक बलात्कार किया। 10 लोग घेरा बनाकर खड़े तमाशा देखते रहे। इज्जत लड़के की लेनी थी लेकिन, लड़के की इज्जत तो उसकी बहन के शरीर में रखी थी। जहां थी, वहां से लूट ली।

ये कहते हुए भी मैं थक सी रही हूं क्योंकि मैं कुछ भी ऐसा नहीं कह रही, जो हजारों बार पहले नहीं कहा जा चुका। लेकिन, दुनिया है कि बदलती नहीं, मर्दवाद है कि जाता नहीं, इज्जत है कि बचती नहीं और दुख है कि कम होता ही नहीं। मेरे साथ ऐसा कोई हादसा कभी नहीं हुआ, लेकिन अपने शरीर में धरी इज्जत को ताउम्र मैं भी बचाती आई हूं। हर वक्त चौकन्नी, अपनी देह को संभालती, ढंकती, छिपाती, बुरी नजरों से बचाती।

अमेरिकी लेखक और फिल्म निर्माता जेक्सन कार्ट्ज ने एक बार अपने एक टेड टॉक में कहा था कि हम कहते हैं कि पिछले साल कितनी औरतों के साथ बलात्कार हुआ, हम ये नहीं कहते कि पिछले साल कितने मर्दों ने औरतों के साथ बलात्कार किया। हम बताते हैं कि पिछले साल कितनी स्कूल की बच्चियों के साथ छेड़खानी हुई। हम ये नहीं कहते कि पिछले साल कितने लड़कों ने स्कूल की लड़कियों के साथ छेड़खानी की।

आप देख रहे हैं कि इस भाषा में कहां दिक्कत है। वही दिक्कत जो हमारे समाज, हमारे घर, हमारी सोच में है। गलती किसी और की है, बताई किसी और की जा रही है। जिम्मेदारी किसी और की है, डाली किसी और पर जा रही है।

फर्ज करिए कि एनसीआरबी औरतों के साथ होने वाली हिंसा और बलात्कार का आंकड़ा इस तरह पेश करने लगे। पिछले साल 43,877 मर्दों ने औरतों के साथ बलात्कार किया। उनमें से 33,000 विक्टिम के भाई, मामा, चाचा, काका, मौसा, फूफा थे। पिछले साल 972 लड़कों ने लड़कियों पर एसिड फेंका। 42000 लड़कों ने लड़कियों के साथ छेड़खानी की। 18,000 लड़कों ने अपनी गर्लफ्रेंड का पोर्न वीडियो बनाया। 14,000 मर्दों ने अपनी पत्नी और प्रेमिका की हत्या की।

औरतों के साथ हुआ नहीं है, मर्दों ने किया है

एक जरा से फेर से पूरी बात बदल जाती है। उसका अर्थ बदल जाता है, उसकी जिम्मेदारी बदल जाती है। बात तो वही है, बस कहने के तरीके से तय होता है कि जिसने अपराध किया, वो दोषी है या जिसके साथ हुआ, वो। इज्जत बलात्कार करने वाले लड़के की जाती है, या उसका शिकार होने वाली लड़की की। हमें अपनी बेटियों को सिखाना चाहिए कि बलात्कार से कैसे बचो या अपने बेटों को कि बलात्कार नहीं करो।

हमें अपनी बेटियों को सिखाना चाहिए कि प्रेग्नेंट नहीं होना या अपने बेटों को सिखाना चाहिए कि लड़की को प्रेग्नेंट कर अपनी जिम्मेदारी से भाग मत जाना। अपनी बेटियों को सिखाना चाहिए कि मर्दों से दबकर रहना या बेटों को सिखाना चाहिए कि औरत को दबाकर मत रखना।

यूं तो होना इसे वैसा ही सामान्य ज्ञान चाहिए था, जैसे कि धरती गोल है और समंदर गीला कि स्त्री उतनी ही मनुष्य है, जितना कि पुरुष। किसी भी मनुष्य की इज्जत उसके शरीर में नहीं होती। प्रेम, करुणा, ईमानदारी और दायित्व-बोध ही पैमाना है इज्जत और बेइज्जती सबकुछ मापने का और पैमाना दोनों के लिए बराबर है। और जब तक इतनी बुनियादी बात हम नहीं समझ लेते, न कानून के भरोसे बलात्कार की संस्कृति को बदल पाएंगे, न लड़कियों के लिए एक बेहतर समाज बना पाएंगे।

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Only the girl has respect in her body. The honor of the boy has nothing to do with the body?
Source http://bhaskar.com

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