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मर्द के खौफ से दुनिया रास्ते पर रहती है, वहीं औरत खौफनाक हो जाए, तो दुनिया पटरी से उतर जाती है

कानपुर में काला जादू के लिए छह साल की एक बच्ची को उठा लिया गया। गुदगुदे गालों और गहरी काली आंखों वाली बच्ची के साथ गैंगरेप के बाद उसके फेफड़े निकाल लिए गए। अगले दिन मांस की लोथ झाड़ी में पड़ी मिली। शरीर के साबुत हिस्सों पर आलता लगा था। यानी बलात्कार और हत्या से पहले उसकी खूब पूजा हुई थी।

अब चलते हैं अमेरिका के वॉशिंगटन। साल 2016 में हुए राष्ट्रपति चुनाव में हिलेरी क्लिंटन भी उम्मीदवार थीं। चुनाव प्रचार शुरू हुए और ये लीजिए, काली टोप लगाए झाडू पर उड़ती हिलेरी की तस्वीरों से पूरा वॉशिंगटन भर गया। तस्वीरों में उन्हें हरा रंग दिया गया था, जो कथित तौर पर डायन का रंग है। विरोधियों में खुसफुसाहट होने लगी। कइयों ने कसमें खाईं कि हिलेरी के शरीर से गंधक की तेज गंध आती है। रात उनके अपार्टमेंट से अजीबोगरीब आवाजें सुनाई पड़ने के दावे किए गए। हिलेरी हार गईं।

छत्तीसगढ़ में औरतों से डायन उतारने के लिए उनका शुद्धिकरण होता है। औरत के हाथ-पांव बांध उसे मारा-पीटा जाता है। बीच-बीच में अश्लील गालियों का मंतर फूंका जाता है। ये सब तक तक चलता है, जब तक औरत खुद को डायन न मान ले और खुद अपनी ही देह छोड़कर जाने का ऐलान न कर दे। हम जब डायन शब्द उचारते हैं तो हमारे जहन में केवल औरत का अक्स होता है। खूनी आंखों और बिखरे बालों वाली एक भयानक स्त्री, जो वस्त्रहीन होकर श्मशान में शव-साधना करे।

ये वो औरत है, जिसे न शर्म है और न डर। दोनों ही बातें मर्द समाज को तिलमिला देती हैं। झिझक और डर छूट जाएगा तो औरत मर्द की जगह ले लेगी। तब शुरू होता है एक पुरातन खेल, जिसमें औरत डायन होती है और मर्द उसे साधने वाला खिलाड़ी।

पड़ोसी की दुधारू गाय का दूध उतरना बंद हो जाए तो फटाक से उसी बेशर्म औरत के बाल पकड़े जाते हैं। किसी का खेत सूख जाए तो उस औरत के कपड़े खींचे जाते हैं। और ईश्वर न करे, किसी का बच्चा बीमार हो तब औरत को गांव के चौराहे पर लगभग जला ही दिया जाता है। ये सबकुछ सिर्फ इसलिए कि औरत ने डर और शर्म छोड़ दी।

हिंदी के डायन, चुड़ैल को छोड़ अंग्रेजी को देखें, तो वो भाषा भी हमारे साथ जुगलबंदी करती दिखेगी। वहां विच (witch) शब्द मिलता है यानी डायन। उदार भाषा अंग्रेजी में जादू-टोना करने वाले पुरुषों के लिए भी कुछ शब्द रखे गए, लेकिन वे उतने खौफनाक नहीं। जैसे विजार्ड (wizard) को ही लें तो इसके हिंदी मायने हैं- जादूगर। अब जाहिर है, जादूगर डायन के सामने मासूम ही लगेगा।

इन तथाकथित डायनों के घर-बार पर नजर डालें तो पाएंगे ये अक्सर ताकतवर होती हैं। किसी के पास जमीन-जायदाद होती है तो किसी के पास तर्क की ताकत। कोई-कोई ऐसी भी होती है, जो ज्यादा कुछ नहीं, लेकिन अलग होती है। उसे शादी, बच्चा या सीने-पिराने में मजा नहीं आता। वो शाप दे सकती हैं। मुंह फेर सकती है। ठुकरा सकती है। यहां तक कि सही-गलत का भेद भी बतला सकती है। ऐसी औरतें प्लेग से भी तेजी से फैलती हैं और आसपास की तमाम औरतों को अपने-जैसा बना सकती हैं।

जब औरत ही पालतू न रहेगी तो भला घर कैसे चलेगा। बस, यहीं से शुरू होता है एक आजाद ख्याल या ताकतवर औरत को कुचलने का सिलसिला। उसे डायन करार दे दिया जाता है। मारपीट होती है। बलात्कार होते हैं। और तब तक सजा मिलती है, जब तक वो हारकर अपना औरत होना कुबूल न कर ले। इसका बड़ा फायदा है। उस औरत को देखकर बाकी औरतें भी समझ जाती हैं कि आज्ञाकारिणी बने रहकर ही वे जिंदा रह सकेंगी।

सबकी लगामें एक साथ कस जाती हैं। इससे भी काम न बने, तो एक और टोटका डायनों का इलाज करने वाले मर्द सुझाते हैं। औरत का मुंह काला करके उसे गांवभर की सैर कराओ और फिर बाल छीलकर बिरादरी-बाहर कर दो। बीच-बीच में औकात दिखाने के लिए उसका बलात्कार भी किया जा सकता है।

इसपर भी वो ढीठ औरत जिंदा रह जाए तो और तरीके हैं। वो घर से बाहर निकले तो गांवभर के कपाट बंद करवा दो। उसके घर से खाने की लज्जतदार खुशबू आए तो बच्चों को वहां जाने से रोक दो। ऐसे पक्के इंतजाम करो कि लोग उसके होने से खौफ खाएं। गौर कीजिएगा, मर्द के खौफ से दुनिया रास्ते पर रहती है, वहीं औरत खौफनाक हो जाए, तो दुनिया पटरी से उतर जाती है।

अब ऐसी औरत को ठिकाने लगाना तो जरूरी है। लिहाजा, बस्ती से बाहर खदेड़ी गई औरत को तब तक परेशान किया जाता है, जब तक उसके इरादों का मजबूत किला भरभरा न जाए। अफ्रीका के घाना में तो डायनों का इलाज करने के लिए अलग से विच-कैंप चलते हैं।

विच-हंटिंग शब्द यूं ही नहीं बना। पुराने मर्द जंगलों में शेर का शिकार करते थे। अब के मर्द मजबूत औरत का शिकार करते हैं। ऐसा नहीं है कि डायन की पदवी गांव या पुरानी सोच वालों तक ठहरी। बड़े शहरों में भी बहस के दौरान अक्सर आजाद ख्याल औरतों को डायन बता दिया जाता है। थोड़ा हाथ इसमें टीवी का भी रहा, जो लंबी चोटी वाली खूबसूरत और अपनी मर्जी की मालकिनों को डायनत्व तक पहुंचाती रही।

साल 2020 खत्म होने को है। वक्त के चेहरे पर झुर्रियां आ गईं लेकिन औरतों को लेकर हमारा डर अब भी जवान है। हालांकि औरत को कुचलने की इस सदियों पुरानी मुहिम के बीच एक बदलाव भी दिख रहा है। ढेरों जनानियां हैं, जो डायन शब्द को तमाचा मानने की बजाए उसे अपना रही हैं। वे अपने शिकारी से बचकर भागने की बजाए आंखों में आंखें डालकर ऐलान करने लगी हैं। हां, हम उन डायनों की नातिन-पोतियां हैं, जिनका तुम कत्ल नहीं कर सके थे।



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Source http://bhaskar.com

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