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मां द्वारा बनाए गए भोजन का हमेशा सम्मान करें, क्योंकि इसी को खाने से मन को तृप्ति मिलती है

कहानी- एक बार कुबेर देव ने सोचा कि मेरे पास इतना धन है तो मुझे कुछ खास लोगों को भोजन पर आमंत्रित करना चाहिए। कुबेर शिवजी के पास पहुंचे और उन्हें सपरिवार अपने घर खाने पर बुलाया।

शिवजी ने कुबेर से कहा, 'आप हमें खाने पर बुला रहे हैं, इससे अच्छा तो ये है कि आप जरूरतमंद लोगों को खाना खिलाएं।'

कुबेर बोले, 'भगवन्, मैं अन्य लोगों को तो खाना खिलाता रहता हूं। मेरे पास इतना धन है, तो मैं आपके परिवार को भी भोजन कराना चाहता हूं।'

शिवजी समझ गए कि कुबेर को अपने धन का घमंड हो गया है। वे बोले, 'मैं तो कहीं आता-जाता नहीं हूं, आप एक काम करें, गणेश को ले जाएं। उसे भोजन करा दें। लेकिन, ध्यान रखें गणेश की भूख अलग प्रकार की है।'

कुबेर ने कहा, 'मैं सभी को खाना खिला सकता हूं तो गणेशजी को भी खिला दूंगा।'

अगले दिन गणेशजी कुबेर देव के घर पहुंच गए। कुबेर ने उनके लिए बहुत सारा खाना बनवाया था। गणेशजी खाने के लिए बैठे तो पूरा खाना खत्म हो गया। उन्होंने और खाना मांगा। कुबेर ये देखकर घबरा गए। उन्होंने और खाना तुरंत बनवाया तो वह भी खत्म हो गया। गणेशजी बार-बार खाना मांग रहे थे।

कुबेर बोले, 'अब सारा खाना खत्म हो गया है।' गणेशजी ने कहा, 'मुझे अपने रसोईघर में ले चलो, मेरी भूख शांत नहीं हुई है।'

कुबेर गणेशजी को रसोईघर में ले गए तो वहां रखी खाने की सभी चीजें भी खत्म हो गईं, लेकिन गणेशजी अब भी भूखे ही थे। उन्होंने कहा, 'मुझे भंडार गृह में ले चलो, जहां खाने का कच्चा सामान रखा है। कुबेर भगवान को अपने भंडार गृह में ले गए तो गणेशजी ने वहां रखी खाने की सभी चीजें भी खा लीं।

अब कुबेर देव को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या किया जाए, जिससे गणेशजी तृप्त हो जाएं।

कुबेर तुरंत ही शिवजी के पास पहुंचे। उन्होंने पूरी बात बता दी। शिवजी ने गणेशजी को देखा और कहा, 'जाओ, माता पार्वती को बुलाकर लाओ।'

मां पार्वती को देखकर गणेश ने कहा, 'मां, कुबेर देव के खाने से मेरी भूख शांत नहीं हुई है। मुझे खाने के लिए कुछ दीजिए।'

पार्वती अपने रसोईघर में गईं और खाना बनाकर ले आईं। उन्होंने जैसे ही अपने हाथ से खाना खिलाया तो गणेश को तृप्ति मिल गई। मां और खिलाने लगी तो गणेशजी ने कहा, मां मेरा पेट भर गया है। अब मैं नहीं खा सकता।'

माता ने फिर कहा, 'बेटा और खा लो।'

तब गणेश उठ गए और बोले, 'मां, मैं और खाऊंगा तो मेरा पेट ही फट जाएगा।' ये बोलकर गणेशजी वहां से चले गए।

सीख- इस कथा से हमें दो सीख मिलती है। पहली, हमें अपने धन पर घमंड नहीं करना चाहिए। दूसरी, मां द्वारा बनाए गए भोजन का हमेशा सम्मान करें। जो तृप्ति माता के हाथों से बने भोजन से मिलती है, वह बाहर के खाने से नहीं मिलती है।



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aaj ka jeevan mantra by pandit vijayshankar mehta, story of kuberdev and lord ganesh, we should always respect the food made by the mother
Source http://bhaskar.com

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