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संपादकीयः गुजरात में मंत्रिमंडल परिवर्तन, BJP के 'नए प्रयोग' की कामयाबी पर होगी सबकी नजर

गुजरात में विधानसभा चुनावों से करीब साल भर पहले मंत्रिमंडल का पूरी तरह कायापलट करके बीजेपी ने एक बड़ा दांव खेला है। चुनावों से कुछ समय पहले किसी राज्य का मुख्यमंत्री बदलना कोई नई बात नहीं है। तमाम पार्टियां ऐसा करती रही हैं। जो बात गुजरात के इस प्रयोग को खास बनाती है, वह यह है कि मुख्यमंत्री के साथ-साथ उनके पूरे मंत्रिमंडल को भी बदल दिया गया है। विजय रूपाणी के इस्तीफे के बाद उनकी जगह पहली बार के विधायक भूपेंद्र पटेल को मुख्यमंत्री चुनकर ही बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व ने तगड़ा संदेश दे दिया था। उसके बाद जब नए मंत्रिमंडल का शपथग्रहण हुआ, तब तो सबने दांतों तले उंगली दबा ली। उसमें पुराने मंत्रिमंडल के किसी भी सदस्य को शामिल नहीं किया गया। प्रदेश राजनीति में अपना एक मुकाम बना चुके इन नेताओं की इस पूरी पांत के लिए इस फैसले को पचाना मुश्किल होगा। ये लोग अभी इस फैसले के खिलाफ कुछ नहीं बोल रहे हैं। लेकिन जिस तरह से मंत्रियों का शपथ ग्रहण टालना पड़ा, उससे ऐसा लगा कि उनके मन में इस फैसले को लेकर असंतोष है। संभव है कि उनके करीबी समर्थक और कार्यकर्ता भी इसे पसंद न करें। लेकिन सत्ता विरोधी भावनाओं से निपटने के लिए बड़ी संख्या में मौजूदा विधायकों का टिकट काटना इधर के वर्षों में बीजेपी की जानी-पहचानी नीति रही है। गौर करने की बात है कि गुजरात में मामला सिर्फ विजय रूपाणी सरकार का नहीं है। 2022 के चुनावों में वहां बीजेपी को सत्ता में 27 साल पूरे हो चुके होंगे। इनमें से दो दशक से ज्यादा की अवधि में प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से नरेंद्र मोदी और अमित शाह का नेतृत्व ही छाया रहा है। ऐसे में यह मानना स्वाभाविक है कि प्रदेश अध्यक्ष और मुख्यमंत्री पद चाहे किसी के भी पास हो, प्रदेश विधानसभा चुनावों में असली परीक्षा मोदी-शाह नेतृत्व की ही होगी। 2017 विधानसभा चुनाव की मुश्किल भरी जीत के बाद पार्टी इस बार कोई जोखिम मोल लेने की स्थिति में नहीं थी। संभवत: इसीलिए पीएम मोदी की लोकप्रियता को हर लहर और जाति-धर्म के कारकों से ऊपर मानने वाली बीजेपी इस बार जातिगत समीकरण को साधने पर खास ध्यान दे रही है। स्वतंत्र भारत में पूरी पार्टी को अपने इशारों पर चलाने के मामले में इंदिरा गांधी की ही मिसाल दी जाती रही है, लेकिन वह भी मुख्यमंत्री बदलने तक ही सीमित रही थीं। किसी प्रदेश के पूरे मंत्रिमंडल को एक साथ दफा करने का साहस उन्होंने भी कभी नहीं किया था। आज अगर बीजेपी का शीर्ष नेतृत्व ऐसा कर पाया है और हटाए जाने वाले नेताओं की ओर से इसका खुलकर विरोध नहीं हो रहा है तो इसका यह भी मतलब है कि पार्टी पर उसकी पकड़ कितनी मजबूत है। तो अब इंतजार कीजिए इस प्रयोग के नतीजों का।
Source navbharattimes

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