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'बिना जमीन का जमींदार'... शरद पवार के इस बोल से क्या इशारा? कांग्रेस यूं ही नहीं बेचैन

मुंबईएनसीपी प्रमुख शरद पवार के कांग्रेस को 'बिना जमीन का जमींदार' कहने वाले बयान के मायने कांग्रेस तलाश रही है। कांग्रेस को लग रहा है कि पवार का यह बयान पूर्व नियोजित है और वह महाराष्ट्र में कांग्रेस के साथ सत्ता में रहते हुए भी किसी लंबी रणनीति के तहत खुद को उससे दूर दिखाने की कोशिश कर रहे हैं। कांग्रेस के राजीव सातव की मृत्यु के कारण खाली हुई एक सीट के लिए राज्यसभा चुनाव 4 अक्टूबर को होगा। हालांकि यह खुला मतदान है, लेकिन कांग्रेस को डर है कि पवार गड़बड़ कर सकते हैं, जैसा कि उन्होंने ग्राम प्रधान के चुनाव में बहुत पहले किया था। पवार समर्थकों ने तब कांग्रेस के आधिकारिक उम्मीदवार के खिलाफ मतदान किया था। कांग्रेस को राज्यसभा में चाहिए NCP का साथ राजनीतिक हैसियत में कांग्रेस महाराष्ट्र में 4 नंबर की राजनीतिक पार्टी है और सरकार में नंबर 3 पर है। ऐसे में पवार जैसे अनुभवी नेता यह अच्छी तरह जानते हैं कि कांग्रेस को दबाने का इससे बेहतर समय और कोई नहीं हो सकता। पवार ने यह बयान देकर एक तरह से कांग्रेस नेतृत्व को संकेत दिया है कि उसे महाराष्ट्र में कोई भी फैसला लेने से पहले सहयोगी दलों को विश्वास में लेना चाहिए, क्योंकि अगर राज्यसभा की सीट के लिए चुनाव हुआ, तो कांग्रेस को अपना उम्मीदवार जिताने के लिए एनसीपी और शिवसेना के वोटों की भी जरूरत पड़ेगी। पार्टी का संदेश, बाहरी को टिकट नहीं ऐसी स्थिति में महाराष्ट्र कांग्रेस के नेताओं को लग रहा है कि पवार कोई बड़ा गेम कर सकते हैं। इसीलिए, महाराष्ट्र के नेताओं ने पार्टी के वरिष्ठ नेताओं को यह संदेश भेजा है कि उम्मीदवार केवल महाराष्ट्र से होना चाहिए और पार्टी को बाहरी लोगों को टिकट नहीं देना चाहिए। बाहरी उम्मीदवार के तौर पर राजीव शुक्ला और आनंद शर्मा के नाम चर्चा में हैं। कांग्रेस ने दलित नेता को पहुंचाया राज्यसभा महाराष्ट्र से राज्यसभा उम्मीदवार के लिए जो नाम इन दिनों चर्चा में हैं, उनमें सबसे आगे मुकुल वासनिक का नाम है। वासनिक गांधी परिवार के विश्वास पात्रों में हैं, परंतु वह जी-23 के नेताओं में शामिल रहे हैं। उनके नाम को लेकर दूसरा आक्षेप यह है कि राज्यसभा में कांग्रेस ने दलित नेता मल्लिकार्जुन खरगे को नेता बनाया है। वासनिक भी दलित ही हैं। ऐसे में महाराष्ट्र के कांग्रेसियों का यह कहना है कि आखिर पार्टी में दलितों को कितना प्रतिनिधित्व दिया जाएगा? सरकार बचाने में निभाई थी भूमिका दूसरा नाम मिलिंद देवड़ा का। देवड़ा के राहुल गांधी से करीबी संबंध हैं। वह लंबे समय से वेटिंग में चल रहे हैं। पिछले कुछ साल में मिलिंद के बार-बार बीजेपी के करीब जाने की अटकलें लगती रही हैं। एक नाम रजनी पाटील का भी चल रहा है। रजनी पाटील गांधी परिवार की करीबी हैं। महाराष्ट्र से ब्राह्मण नेता के रूप में विदर्भ के अविनाश पांडे का नाम भी काफी तेजी से आगे आया है। अविनाश ने सचिन पायलट की बगावत के वक्त राजस्थान में अशोक गहलोत की सरकार को बचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। निरुपम राहुल गांधी के पसंदीदा पूर्व सांसद संजय निरुपम के नाम की भी चर्चा है। महाराष्ट्र में खासकर मुंबई में बड़ी संख्या में उत्तर भारतीय समुदाय है और कांग्रेस के पास इन दोनों एक भी बड़ा उत्तर भारतीय चेहरा नहीं है। नगरसेवक और विधायक स्तर पर कांग्रेस के जो उत्तर भारतीय नेता थे, वे पार्टी छोड़कर बीजेपी में चले गए हैं। निरुपम की पहचान राहुल गांधी के पसंदीदा और करीबी नेताओं में होती है, परंतु निरुपम अघाड़ी सरकार के शुरू से विरोधी रहे हैं, इसलिए उनकी स्वीकार्यता पर संशय है।
Source navbharattimes

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