DIGITELNEWS पर पढ़ें हिंदी समाचार देश और दुनिया से,जाने व्यापार,बॉलीवुड समाचार ,खेल,टेक खबरेंऔर राजनीति के हर अपडेट

 

फैजाबाद का क्या 'पैगाम', यूपी में कितने बड़े फैक्टर हैं ओवैसी? समझिए सियासत

लखनऊ/अयोध्या असदुद्दीन ओवैसी ने इस बार यूपी यात्रा की शुरुआत राम की नगरी से की है। ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के अध्यक्ष ओवैसी अपने बयानों के लिए चर्चा में बने रहते हैं। वैसे तो ओवैसी कई बार यूपी आ चुके हैं। लेकिन उनका इस बार का दौरा एक पोस्टर की वजह से भी विवादों में घिरा है। इसमें अयोध्या को फैजाबाद के रूप में संबोधित किया गया है। आखिर ओवैसी की राजनीति क्या है और यूपी में वह कितना बड़ा फैक्टर हैं? इन सब मुद्दों पर एनबीटी ऑनलाइन ने वरिष्ठ पत्रकार सिद्धार्थ कलहंस से चर्चा की। अयोध्या की जगह फैजाबाद का क्यों इस्तेमाल? राम मंदिर-बाबरी मस्जिद का मसला सुप्रीम कोर्ट से सुलझ जाने के बाद भी वो लगातार कहते रहे हैं कि बाबरी मस्जिद थी, बाबरी मस्जिद है और बाबरी मस्जिद रहेगी। मस्जिद को शहीद किया गया। यानी वो आज भी विवाद का अस्तित्व मान रहे हैं और लोगों के बीच लगातार जिंदा रखने का प्रयास करते हैं। पोस्टर पर अयोध्या की जगह फैजाबाद लिखना अगर मान लिया जाए कि मानवीय भूल के चलते हुआ तो अभी भी इलाहाबाद कह देते हैं प्रयागराज की जगह। लेकिन अयोध्या का नाम ना लिखने को लेकर स्पष्ट है कि जान-बूझकर यह जताने के लिए ऐसा किया गया है कि हम आज भी फैजाबाद का अस्तित्व मानते हैं। 'एक खास वर्ग के लिए हथकंडे अपनाते हैं' जिस वर्ग के लिए ओवैसी राजनीति करते हैं उस वर्ग के लिए उनको इसी तरह के हथकंडों की जरूरत आए दिन पड़ती है। इसका वो इस्तेमाल करते रहते हैं। इसके पहले भी आप देखें कि उनके दौरों का जो कार्यक्रम बनता है। जुलाई में बहराइच आए तो बाले मियां (सैयद सालार मसूद गाजी) की मजार पर गए थे। पूर्वांचल दौरे के वक्त जौनपुर के गुरैनी मदरसे गए थे। आजमगढ़ के सरायमीर में बैतुल उलूम मदरसे पहुंचे थे। उनका कुछ आधार है नहीं। सुर्खियां हासिल करके खुद को राजनीति में प्रासंगिक बनाने की उनकी कोशिश रहती है। ना संगठन बनाने का काम किया ना जमीनी राजनीति की कोशिश की। चुनाव के समय सनसनीखेज बयान देकर अपनी उपस्थिति दिखाते हैं। सुलतानपुर, बाराबंकी, फैजाबाद को क्यों चुना? ट्रेंड ये रहा है कि एक बार जब ओवैसी यूपी आते हैं तो तीन जिलों को चुनते हैं। जैसे जनवरी में जब वह आए तो वाराणसी, जौनपुर और आजमगढ़ के दौरे पर गए। इस बार उन्होंने सुलतानपुर, बाराबंकी और अयोध्या को चुना है। रुदौली में जा रहे हैं, सुलतानपुर सदर में जाएंगे। ऐसी जगहों को चुन रहे हैं, जहां उनके समुदाय के लोग मिलें और भीड़ इकट्ठा हो। यूपी में कितने बड़े फैक्टर हैं ओवैसी ऐसे लोग जो एकाध चुनाव क्षेत्रों में प्रभावशाली हैं और जिनको अन्य दलों में जगह नहीं मिल रही है वो इनके साथ आ जाएंगे। इनकी कवायद यूपी की राजनीति में कोई मायने नहीं रखती है। जिस वर्ग की ये राजनीति कर रहे हैं वो भी इनको जानता है। वो इनके भाषणों को सुन ले खुश हो जाए ताली बजा ले लेकिन वोट के मामले में इनको तवज्जो नहीं देगा। ओवैसी कोई फैक्टर नहीं हैं और ना ही यूपी में परिवर्तन पैदा कर सकते हैं। जो राजनीतिक समीकरण चल रहे हैं, उसमें इनकी कोई भूमिका बनती नहीं है। भागीदारी संकल्प मोर्चा का अस्तित्व खत्म ध्रुवीकरण की राजनीति को हमेशा ओवैसी जैसे लोग सूट करते हैं। ओवैसी का यूपी में ज्यादा समय देना, ज्यादा सक्रियता बढ़ाना, ज्यादा जगहों पर लोगों को खड़ा करना उनकी पोलराइजेशन की पॉलिटिक्स के लिए मुफीद भी होगा। ओम प्रकाश राजभर के साथ उनका गठबंधन कमोबेश टूट चुका है। भागीदारी संकल्प मोर्चा बचा नहीं है। महान दल उसमें नहीं रह गया है। वह समाजवादी पार्टी के साथ जा चुका है। इसके अलावा जनवादी क्रांति पार्टी भी सपा के साथ है। आजाद समाज पार्टी भी कमोबेश आरएलडी के साथ है। शिवपाल यादव की प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया) की तरफ से भी लगातार सपा से करीबी के बयान आ रहे हैं। राजभर अब ओवैसी से अपनी राजनीति को अलग कर चुके हैं। भागीदारी संकल्प मोर्चा नाम की चीज बची नहीं है। इसलिए ओवैसी और ज्यादा तन्हा हो गए हैं। 'पिकनिक मनाकर लौट जाएंगे ओवैसी' अखिलेश यादव की सरकार में मंत्री रह चुके अयोध्या के पूर्व विधायक तेज नारायण पांडेय उर्फ पवन पांडेय कहते हैं, 'इनका चरित्र तो बिहार और पश्चिम बंगाल में दिख चुका है। जनता इनके बारे में जानती है। पूरा समाज इनके बारे में जानता है। पिकनिक मनाकर लौट जाएंगे। यूपी का मुसलमान बहुत समझदार है, उसे मालूम है हमें कहां रहना है और कहां नहीं रहना है। ओवैसी साहब इस बात का जवाब दे दें कि साढ़े चार सालों में बीजेपी सरकार ने जितने अत्याचार किए। लोग फर्जी मुकदमों में जेल गए, ये किसके दरवाजे पर पहुंचे। किसकी लड़ाई इन्होंने और इनकी पार्टी ने लड़ी। किसके कहने पर दौरा करते हैं भाषा बोलते हैं, सब लोग जानते हैं।'
Source navbharattimes

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ