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गुजरात में यूं ही नहीं बदले गए सारे के सारे मंत्री, बीजेपी का पूरा प्लान समझिए

अहमदाबाद बीजेपी ने गुजरात में इस पिछली सरकार के किसी मंत्री को नए मंत्रिमंडल में जगह नहीं दी है। यहां तक कि डिप्टी सीएम नितिन पटेल का पत्ता भी कट गया। यह इस लिहाज से भी बेहद अहम माना जा रहा है कि नरेंद्र मोदी के बाद जब आनंदीबेन पटेल सीएम बनी थीं और उनके बाद विजय रूपाणी ने कुर्सी संभाली थी, तो उस वक्त भी पुराने चेहरों को जगह दी गई थी। आइए जानते हैं आखिर इसके पीछे क्या वजह हो सकती हैः पाटीदार हैं भूपेंद्र पटेल गुजरात में पाटीदार समुदाय बीजेपी का कोर वोटबैंक माना जाता है। पिछले कुछ वर्षों में यह उससे छिटकता जा रहा है। ऐसा इस साल फरवरी के स्थानीय चुनाव में देखने को मिला। आम आदमी पार्टी ने सूरत जैसे शहर में बड़ी बढ़त हासिल की, जो कि राज्य बीजेपी प्रमुख सी.आर. पाटिल का गढ़ माना जाता है। वहां आप म्यूनिसिपल कॉरपोरेशन में मुख्य विपक्षी पार्टी बन गई। केशुभाई पटेल के निधन के बाद इस समुदाय में बीजेपी का उस कद का बड़ा नेता नहीं रहा गया है। आनंदीबेन पटेल गुजरात से बाहर हैं। साथ ही, युवा पाटीदार नेता अपने समुदाय से सीएम बनाने की मांग खुलेआम कर रहे थे। इस लिहाज से बीजेपी ने भूपेंद्र पटेल के तौर पर पाटीदार चेहरे के नाम पर अगले साल विधानसभा चुनाव में जाने का फैसला किया। पार्टी ने यह फैसला क्यों लिया? नरेंद्र मोदी के पीएम बनने और अमित शाह के केंद्र की राजनीति में जाने के बाद राज्य में पाटीदार आंदोलन हुआ। 2017 में मोदी-शाह के बगैर बीजेपी ने विधानसभा चुनाव लड़ा, तो सीटें 100 से कम रह गईं। पार्टी अब 2022 के चुनाव में कोई जोखिम नहीं चाहती। पार्टी के भीतर न हो बगावत सबसे बड़ा सवाल है कि बीजेपी मुख्यमंत्री बदलने में बड़े या चर्चित चेहरों की जगह लो प्रोफाइल नामों पर क्यों भरोसा करती है। चुनाव से पहले एंटी इनकंबेंसी फैक्टर की काट के तौर पर पार्टी सीएम और मंत्रियों को बदलने का दांव खेलती है। इस दौरान यह भी ध्यान रखना होता है कि नेतृत्व में बदलाव से पार्टी के भीतर असंतोष न पैदा हो। चर्चित चेहरों की अपनी लॉबी होती है, ऐसे में किसी एक को कमान देने से दूसरा धड़ा नाराज हो सकता है। इसका नुकसान पार्टी को चुनाव में उठाना पड़ सकता है। सबको साधने की कोशिश नए मंत्रिमंडल में 7 पाटीदार, 6 ओबीसी, 5 आदिवासी, 3 क्षत्रिय, 2 ब्राह्मण, 1 दलित और 1 जैन समुदाय के विधायक को जगह दी गई है। इसी तरह क्षेत्र के हिसाब से भी ध्यान रखा गया है। चुनावों से पहले एक तरह से नए स्वरूप में सबको साधने की कोशिश दिखती है।
Source navbharattimes

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