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पूर्वांचल के ब्राह्मण, वेस्ट के दलित+मुस्लिम...सीक्रेट प्लान जिससे माया चाहती हैं 'राज'योग

लखनऊ उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव से पहले ब्राह्मण वोटरों को साधने के लिए पार्टियों के तमाम आयोजन चर्चा का विषय बन गए हैं। मंगलवार को बीएसपी के ब्राह्मण सम्मेलनों का आखिरी दांव पूरा हो चुका है। इस सम्मेलन के अंतिम अध्याय पर खुद मायावती का भाषण अंकित हुआ है, जो उन्होंने मंगलवार को लखनऊ में दिया। मायावती ने इस भाषण में ब्राह्मणों को अपने साथ आने के लिए आमंत्रित किया और ये भी कहा कि वो इस बार पार्क स्मारक बनाने की जगह गवर्नेंस पर काम करेंगी। लेकिन ब्राह्मण वोटों की राजनीति में मायावती नई नहीं हैं। बीजेपी से लेकर एसपी तक सब इसी धारा में बह रहे, उद्देश्य परशुराम के वंशजों को जोड़कर सत्ता राजयोग देखना है। यूपी में ब्राह्मण वोटरों की बड़ी संख्या को देखते हुए सबसे अधिक जोर आजमाइश फिलहाल बीएसपी कर रही है। कारण वो 13 पर्सेंट ब्राह्मण वोटर हैं, जो तमाम इलाकों में निर्णायक भूमिका अदा करते हैं। अतीत में ब्राह्मण वोटों का यही जुड़ाव बीएसपी को सत्ता का शिखर दिला चुका है। 2007 के चुनाव में बीएसपी को बहुमत दिलाने का पूरा श्रेय इसी ब्राह्मण वोट को जाता है, जिसे इस बार भी मायावती अपने पाले में करना चाहती हैं। इसी कारण बीएसपी के तमाम प्रबुद्ध सम्मेलनों में पार्टी नेता सतीश चंद्र मिश्रा कह चुके हैं कि ब्राह्मण उनकी पार्टी के लिए पूजनीय है और यही जाति हमेशा सर्वसमाज को साथ लेकर चल सकती है। मिश्रा की सभा में नारा लग ही चुका है- ब्राह्मण शंख बजाएगा, हाथी बढ़ता जाएगा। 13 फीसदी ब्राह्मण ने दे दिया साथ तो बदल जाएगी तस्वीर बीएसपी मुखिया चाहती है कि 'ब्राह्मण शंख बजाएगा, हाथी चलता जाएगा' के नारा एक बार फिर गूंजे। 2007 के चुनाव में बीएसपी ने ब्राम्हण सम्मेलन से चुनाव अभियान की शुरुआत की थी। तब बीएसपी ने 30 फीसदी वोट हासिल कर 403 में से 206 सीटें जीतकर सरकार बनाई थी। इस बार भी दावा इसी 30 पर्सेंट वोटर को लेकर है। इसी कारण मायावती ने अपनी रणनीति में यह तक कह दिया है कि बीएसपी के लोग हर विधानसभा में 1000 ब्राह्मण वर्कर्स को जोड़ेंगे और उन्हें चुनावी अभियान में साथ लेकर काम करेंगे। यूपी में जातीय समीकरणों की बात करें तो मुस्लिम और दलित वोटरों के बाद सबसे अधिक संख्या ब्राह्मण जाति के मतदाताओं की है। प्रदेश में 20 फीसदी के आसपास दलित हैं, जबकि ब्राह्मण वोटर की संख्या 14 फीसदी के करीब है। मुस्लिम वोट शिफ्ट की भरपाई ब्राह्मण से चुनाव से पहले बीएसपी की रणनीति है कि दलित-मुस्लिम उसका पुराना गठजोड़ हैं। अब तक जिन मुस्लिमों का रुख एसपी की ओर की तरफ दिख रहा है, उसकी भरपाई ब्राह्मण के साथ से कर ली जाए। ऐसे में चुनाव में भी लाभ मिल सकेगा। इसके अलावा अगर सीटों की संख्या बढ़ती है तो 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले पार्टी की स्थिति और मजबूत होगी। 2012 से ही कमजोर हो रही है बीएसपी मायावती की पार्टी बीएसपी करीब नौ साल से यूपी की सत्ता से बाहर हैं। 2012 में अखिलेश ने उनसे सत्ता छीन ली थी। उसके बाद बीएसपी लगातार कमजोर हो रही हैं। वेस्ट यूपी में बीएसपी ज्यादातर जिलों में हाशिए पर हैं। उनके जनप्रतिनिधि गिनती के हैं। 2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी लहर में बीएसपी का हाथी चिंघाड़ नहीं पाया था। वेस्ट यूपी में एक भी सीट नहीं मिली थी। 2017 के विधानसभा चुनाव में भी वेस्ट यूपी में बीएसपी फिसड्डी साबित हुई थी। 2007 में 88 टिकट ब्राह्मणों को दिए 2019 में जरूर समाजवादी पार्टी की बैसाखी से बिजनौर, अमरोहा, सहारनपुर सीटें मिल गई थी। 2007 से सरकार बनाने के बाद बीएसपी सत्ता का सुख नहीं भोग सकी। 2007 में बीएसपी ने 88 टिकट विधानसभा में ब्राह्मणों को दिए थे। ब्राह्मणों ने बीएसपी के पक्ष में जमकर वोट किया था। 41 विधायक जीते थे। उसके बाद ब्राह्मण मायावती से खफा हो गया। 2012 में बीएसपी ने ब्राह्मणों को 74 टिकट दिए, लेकिन जीते सिर्फ दस इसी तरह 2017 में बीएसपी ने ब्राह्मणों को 66 टिकट दिए। ब्राह्मणों का साथ नहीं मिलने पर सिर्फ तीन जीते। ब्राह्मण बने बीजेपी के भी किंगमेकर कहा जाता है कि ब्राह्मणों ने जिसका साथ दे दिया, उसकी सरकार बन जाती है। ब्राह्मण शुरू में कांग्रेस के साथ था, उसकी सरकार बनी थी। 2017 में बीएसपी के साथ चला गया उसकी सरकार बन गई। 2012 में समाजवादी पार्टी की तरफ रुख करने से अखिलेश सत्ता के सिरमौर हो गए। 2014 के बाद से बीजेपी का दामन थाम लिया तो सत्ता का कमल खिला दिया।
Source navbharattimes

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