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AQ Khan: भोपाल में जन्मा पाक का वह 'हीरो' जो भारत और हिंदुओं से बेइंतहा नफरत करता था

नई दिल्ली पाकिस्तानी परमाणु कार्यक्रम का जनक माने जाने वाले अब्दुल कादिर खान का रविवार को निधन हो गया। दुनिया के कुख्यात परमाणु तस्कर खान पाकिस्तान में हीरो थे। वजह यह कि उनकी बदौलत ही पाकिस्तान दुनिया का इकलौता मुस्लिम देश बन पाया जिसके पास परमाणु ताकत है। दुनिया जब परमाणु निरस्त्रीकरण की दिशा में आगे बढ़ने की कोशिश कर रही थी तब इस कुख्यात परमाणु तस्कर ने न सिर्फ यूरोप से तकनीक चुराकर पाकिस्तान को न्यूक्लियर पावर बनाया बल्कि उत्तर कोरिया, लीबिया और ईरान को भी तकनीक बेची। भारत के भोपाल में जन्मे पाकिस्तान का यह हीरो हिंदुस्तान और हिंदुओं से बेइंतहा नफरत के लिए भी जाना जाता था। 1971 में पाकिस्तान की करारी हार ने वैज्ञानिक को परमाणु तस्कर में बदला! अब्दुल कादिर खान की भारत से वह बेइंतहा नफरत ही थी जो उसे परमाणु तस्करी की दिशा में आगे बढ़ाया। 1971 की जंग में भारत के हाथों पाकिस्तान की शर्मनाक हार और दो टुकड़ों में बंट जाने ने उनकी नफरत की आग को इतना भड़का दिया कि नीदरलैंड्स में उन्होंने परमाणु तकनीक की जासूसी और चोरी की। वह 1972 में नीदरलैंड में डच, ब्रिटिश और जर्मन परमाणु वैज्ञानिकों के टॉप सीक्रेट प्रोजेक्ट से बतौर ट्रांसलेटर जुड़े थे। वह एंग्लो-डच-जर्मन न्यूक्लियर इंजिनियरिंग कंसोर्टियम Urenco के लिए काम करने लगे। उनका काम तकनीक से जुड़े डॉक्युमेंट्स का जर्मन भाषा से डच में अनुवाद करना था। नीदरलैंड में Urenco के लिए काम करते वक्त चुराई परमाणु तकनीक खान ने यहां 1975 तक काम किया और यही पर टेक्निकल डॉक्युमेंट्स और परमाणु तकनीक की चोरी की जिसकी मदद से आगे चलकर पाकिस्तान के लिए परमाणु बम बनाया। वही परमाणु बम, जिसकी बदौलत वह आज दुनिया को ब्लैकमेल करता है। 1983 में एक डच कोर्ट ने खान को परमाणु जासूसी का दोषी भी ठहराया था। फरवरी 2004 में उन्होंने लीबिया, ईरान और उत्तर कोरिया को परमाणु तकनीक बेचने की बात खुद भी कबूल की थी जिसके बाद उन्हें इस्लामाबाद में हाउस अरेस्ट भी किया गया था और पूछताछ हुई थी। पिता से विरासत में मिली मजहबी कट्टरता, भारत और हिंदुओं से नफरत भारत, भारतीयों और हिंदुओं से अब्दुल कादिर खान की बेइंतहा नफरत के पीछे मजहबी कट्टरता और भारत-पाकिस्तान के विभाजन के वक्त उनकी कड़वीं यादों को जिम्मेदार माना जाता है। उन्हें मजहबी कट्टरता परिवार से मिला था। अब्दुल कादिर खान का जन्म 1936 में भोपाल में हुआ था। उनके पिता गफूर खान एक स्कूल टीचर थे और एक्यू खान उनकी 7 संतानों में सबसे छोटे थे। उनके जन्म से पहले ही पिता गफूर खान रिटायर हो चुके थे। स्कूल शिक्षक रहे गफूर खान मजहबी कट्टरता में डूब गए और मुसलमानों के लिए एक अलग देश की लड़ाई के लिए मुस्लिम लीग से जुड़ गए। पिता से मजहबी कट्टरता की यह विरासत अब्दुल कादिर खान को भी मिली और बचपन से ही उनके मन में हिंदुओं के लिए नफरत पनपने लगी। विभाजन के वक्त हुए दंगों ने हिंदुओं के प्रति नफरत को और भड़काया डगलस फ्रैंट्ज और कैथरीन कोलिंश की 2007 में आई किताब 'द न्यूक्लियर जिहादिस्ट' में बताया गया है कि अब्दुल कादिर खान को मुसलमानों के लिए अलग देश की चाहत और भारत से नफरत उनकी पिता से ही विरासत में मिली। हिंदुस्तान से यह नफरत बाद में हिंदुओं से नफरत में तब्दील हो गई, जिसके पीछे विभाजन के वक्त हुए दंगों को जिम्मेदार माना जाता है। किताब में दावा किया गया है, '1947 में विभाजन के वक्त खान की उम्र 11 साल थी और उस वक्त हुए दंगों की कड़वी यादें उनके दिल में घर कर गईं।' उस वक्त भीषण दंगे के बीच भारत से लाखों मुसलमान पाकिस्तान गए और वहां से लाखों हिंदू और सिख भारत आए। पाकिस्तान से आने वाली रेलगाड़ियां हिंदुओं और सिखों की लाशों से भरी पड़ी थीं जो दंगे में मार दिए गए थे। यही हाल भारत से पाकिस्तान जाने वाली ट्रेनों की थीं जो मुसलमानों के शवों से भरी पड़ी थीं। वो ट्रेन यात्रा जिससे खान नफरत की आग में ताउम्र जलते रहे किताब में कहा गया है कि विभाजन के 4 साल बाद अब्दुल कादिर के पिता गफूर खान ने उन्हें पाकिस्तान भेजने का फैसला किया क्योंकि उन्हें यहां अपने बेटे का कोई 'भविष्य' नजर नहीं आ रहा था। 1952 की उस ट्रेन यात्रा ने अब्दुल कादिर खान के दिल में हिंदुओं के प्रति नफरत को बेइंतहा बढ़ा दिया। 'द न्यूक्लियर जिहादिस्ट' में खान को कोट करते हुए लिखा गया है, 'मैं अकेला था...खुशकिस्मती से कुछ और मुस्लिम परिवार भी हमारे साथ यात्रा कर रहे थे। इंडियन पुलिस और रेलवे अधिकारियों का इन मुस्लिम परिवारों के प्रति व्यवहार बहुत ही अपमानजनक और दुश्मनी जैसा था। उनका वो व्यवहार हमेशा मेरी स्मृतियों में ताजा रहेंगीं। उन्होंने इन बेचारे लोगों से हर कीमती चीज छीन ली।' किताब में दावा किया गया है कि एक पुलिसकर्मी ने अब्दुल कादिर खान से वह पेन भी छीन लिया, जो उन्हें कभी ईनाम के तौर पर मिला था। किताब में बताया गया है कि खान ने एक बार अपने एक दोस्त से कहा था, 'हिंदू धोखेबाज और दुष्ट होते हैं...वे पाकिस्तान को तबाह करने और एक अखंड भारत का ख्वाब देखते हैं।' 2018 में खान ने शेखी बघारते हुए कहा था कि परमाणु ताकत से लैस पाकिस्तान 5 मिनट में नई दिल्ली को टारगेट कर सकता है। परमाणु जासूसी का खुलासा करने वाले पत्रकार को दी थी गाली अब्दुल कादिर खान ने परमाणु तस्करी की उनकी काली करतूतों का खुलासा करने वाले पत्रकार श्याम भाटिया को 'Hindu Bast..d' कहकर गाली दी थी। दरअसल, भारतीय मूल के ब्रिटिश पत्रकार श्याम भाटिया और उनके साथी कोलिन स्मिथ ने दिसंबर 1979 में ब्रिटिश न्यूजपेपर 'ऑब्जर्वर' में आर्टिकल लिखा था जिसमें खान की काली करतूतों का खुलासा किया गया था। इससे बौखलाए खान ने ऑब्जर्वर के एडिटर को खत लिखकर भाटिया के बारे में खूब भला-बुरा कहा था। संपादक को लिखे खत में उन्होंने भाटिया को गाली देते हुए उन्हें 'Hindu Bast..d' कहा था। पाकिस्तान में अहमदिया अल्पसंख्यकों को गद्दार कहते थे खान अब्दुल कादिर खान सिर्फ हिंदुओं से नफरत नहीं करते थे। 2012 में एक टीवी कार्यक्रम में उन्होंने आरोप लगाया था कि अहमदिया मुसलमान पाकिस्तान के प्रति निष्ठावान नहीं हैं। दुनिया के इस सबसे कुख्यात परमाणु तस्कर ने 2012 में राजनीति में भी कदम रखा। उन्होंने तहरीक-ए-तहप्फुज पाकिस्तान (पाकिस्तान बचाओ आंदोलन) नाम से एक पार्टी बनाई। 2013 में पाकिस्तान के नेशनल इलेक्शन में खान की पार्टी ने 111 सीटों पर उम्मीदवार उतारे लेकिन सभी हार गए। इसके बाद खान ने पार्टी को भंग कर दी। पाकिस्तान का यह हीरो अपने आखिरी वक्त में खुद को बहुत लाचार महसूस कर रहा था। इस साल अगस्त में कोरोना संक्रमित होने के बाद खान ने अपना दर्द बयां किया था कि उनका हाल जानने न इमरान खान आए और न हो कोई दूसरा बड़ा नेता।
Source navbharattimes

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