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BJP-संघ में सावरकर के दामन पर लगे 'माफी' के दाग को छुड़ाने की इतनी छटपटाहट क्यों है?

नई दिल्ली संघ प्रमुख मोहन भागवत ने पर लिखी एक नई किताब के विमोचन के मौके पर उन्हें एक ऐसी हस्ती बताया जिन्हें हमेशा बदनाम करने की कोशिश की गई। उसी कार्यक्रम में केंद्रीय मंत्री राजनाथ सिंह ने वीर सावरकर को महान नेता और स्वतंत्रता सेनानी बताया। उन्होंने यह भी दावा किया कि गांधीजी के कहने पर ही सावरकर ने अंग्रेजों के सामने 'दया की गुहार' लगाई थी। सावरकर कभी भी आरएसएस या जनसंघ (अब बीजेपी) के सदस्य नहीं रहे लेकिन हिंदुत्व की विचारधारा की वजह से संघ और बीजेपी में उनका नाम बहुत सम्मान से लिया जाता है। हाल के वर्षों में खासकर 2014 के बाद बीजेपी सावरकर को लेकर बहुत आक्रामक हुई है और वामपंथी इतिहासकारों पर जानबूझकर सावरकर के 'चरित्र हनन' का आरोप लगाती रही है। विनायक दामोदर सावरकर एक ऐसी हस्ती हैं जिन पर लोगों की राय जबरदस्त ढंग से बंटी हुई है। अंडमान की कुख्यात सेलुलर जेल में काला पानी की सजा काटने वाले सावरकर को एक वर्ग हीरो मानता है तो एक वर्ग ऐसा है जो जेल से रिहाई के लिए ब्रिटिश राज को दी गई उनकी 'दया याचिकाओं' को आधार बना उन्हें 'कायर' ठहराता है। सावरकर के आलोचक उनके 'माफीनामे' को प्रचारित करते हैं। उनका नाम महात्मा गांधी की हत्या में भी आया था। वह जेल भी गए लेकिन 1949 में वह बरी हो गए। अब बीजेपी और संघ सावरकर को लेकर आक्रामक हैं। वामपंथी इतिहासकारों पर सावरकर की 'चरित्र हत्या' का आरोप लगा उन्हें नेशनल हीरो के तौर पर स्थापित करने की कवायद तेज हुई है। केंद्र में लगातार दूसरी बार बीजेपी की पूर्ण बहुमत की सरकार है, लिहाजा इसके लिए इससे अच्छा वक्त कोई हो भी नहीं सकता है। बीजेपी ने 2020 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में वीर सावरकर को देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान 'भारत रत्न' देने का वादा किया था। बीजेपी की आक्रामकता इस बात का संकेत है कि जल्द ही सावरकर को 'भारत रत्न' से नवाजा जा सकता है। साल 2000 में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के दौरान तो सावरकर को 'भारत रत्न' देने की सिफारिश भी कर दी गई थी लेकिन तत्कालीन राष्ट्रपति केआर नारायणन ने इसे ठुकरा दिया। दो दशक बाद आज स्थितियां बदल गई हैं। तब अटल के नेतृत्व में बीजेपी की मिली-जुली सरकार थी। आज नरेंद्र मोदी की अगुआई में बीजेपी लगातार दूसरी बार पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में है। सावरकर के बलिदान पर शायद ही किसी को शक हो, लेकिन अपनी हिंदुत्ववादी विचारधारा की वजह से वह एक बड़े तबके के लिए अछूत रहे हैं। मई 1970 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने सावरकर पर डाक टिकट जारी करते हुए कहा था कि वह सावरकर के खिलाफ नहीं हैं लेकिन उनकी हिंदुत्ववादी विचारधारा के खिलाफ हैं। इसी तरह 1980 में इंदिरा गांधी ने सावरकर ट्रस्ट को लिखी चिट्ठी में उन्हें भारत का सपूत बताया था। वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक उदय माहुरकर ने चिरायु पंडित के साथ मिलकर 'वीर सावरकर: द मैन हु कुड हैव प्रिवेंटेड पार्टिशन' किताब लिखी है। इसी किताब के विमोचन कार्यक्रम में संघ प्रमुख भागवत ने ऐलान किया कि सावरकर युग आ चुका है। नई किताब में बताया गया है कि सावरकर कितनी दूरदृष्टि वाले हस्ती थे। उन्होंने भारत के सामने राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ीं आज की समस्याओं की बहुत पहले ही भविष्यवाणी कर दी थी। इनमें चीन और पाकिस्तान के साथ जंग भी शामिल है। उन्होंने रैडिकल इस्लाम के उभार की भी भविष्यवाणी कर दी थी जो आज भारत ही नहीं, पूरी दुनिया के लिए एक बड़ी चुनौती है। सावरकर को 1910 में नासिक के कलेक्टर जैकसन की हत्या के आरोप में लंदन में गिरफ्तार किया गया था। 1911 में उन्हें अंडमान की सेल्युलर जेल में डाल दिया गया जिसे काला पानी की सजा कहते हैं। काला पानी के दौरान कैदियों को ऐसी अमानवीय यातनाएं दी जाती थीं, जिसे सुनकर रूह कांप जाए। कोल्हू में बैल की जगह कैदियों का इस्तेमाल, महीनों तक बेड़ियों में जकड़े रखना, अंग्रेज अफसरों की बग्घियों को खिंचवाना, कोड़ों से पिटाई और कुनैन पीने के लिए मजबूर किए जाने जैसी यातनाएं दी जाती थीं। जेल की कोठरियां बदबूदार थीं, शौचालय जाने के लिए समय तय था। कैदियों को रिश्तेदारों से मिलने की इजाजत नहीं थी। सावरकर 1921 तक सेलुलर जेल में ये यातनाएं सहते रहे। इस दौरान उन्होंने 6 बार ब्रिटिश सरकार के पास दया याचिका भेजी। इतिहासकार विक्रम संपत ने 'सावरकर : इकोज फ्रॉम अ फॉरगॉटेन पास्ट' में उनकी दया याचिकाओं को लेकर विस्तार से लिखा है। उन्होंने लिखा है कि सावरकर की राय थी कि एक क्रांतिकारी का पहला फर्ज खुद को अंग्रेजों के चंगुल से आजाद रखना है। सावरकर के आलोचक इसे अंग्रेजों के सामने उनके सरेंडर के रूप में देखते हैं तो उनके प्रशंसक इसे उनकी रणनीति का हिस्सा बताते हैं ताकि वह बाहर आकर अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई जारी रख सकें। महात्मा गांधी की हत्या में भी सावरकर का नाम आया था। 1949 में उन्हें इस आरोप में गिरफ्तार किया गया लेकिन कोर्ट में उनके खिलाफ केस टिक नहीं पाया और वह कोर्ट से बरी कर दिए गए। 26 फरवरी 1966 को 82 साल की उम्र में उनका निधन हो गया।
Source navbharattimes

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