सुबह 8 बजे का मुख्य समाचार बुलेटिन सुनने के लिए मैंने यह सोचकर रेडियो खोला कि देखें, इसमें और क्या कहा जाता है। देवकीनंदन पांडे, विनोद कश्यप और कृष्ण कुमार भार्गव की परिचित आवाजों के बजाय मैं सुन रहा था श्रीमती इंदिरा गांधी की आवाज। श्रीमती इंदिरा गांधी ने घोषित किया कि राष्ट्रपति ने संविधान की धारा 352 के तहत आंतरिक उत्पात की संभावना के कारण आपात स्थिति घोषित कर दी है।
लालकृष्ण आडवाणी, पूर्व उप प्रधानमंत्री
गुरुवार, 26 जून, 1975, बंगलौर: सुबह के करीब 7.30 बजे हैं। टेलिफोन की घंटी बजने लगी। श्यामनंदन मिश्र, जिनके साथ मैं विधायक निवास की पहली मंजिल के कमरे में ठहरा हुआ हूं, उन्होंने रिसीवर उठाया, लेकिन तुरंत ही यह कहते हुए कि ‘फोन आपके लिए है’, रिसीवर मेरी तरफ बढ़ा दिया। हम लोग यहां कल संसद की संयुक्त प्रवर समिति की बैठक में भाग लेने आए थे। फोन स्थानीय जनसंघ कार्यालय से आया है। मेरे लिए दिल्ली से कोई अविलंब संदेश है। जनसंघ के एक सचिव रामभाऊ गोडबोले ने प्रातः 3.30 के करीब यह कहला भेजा था कि जयप्रकाश नारायण गिरफ्तार कर लिए गए। गिरफ्तारियां जारी हैं। संदेश में कहा गया था कि पुलिस अटल बिहारी वाजपेयी और मेरे लिए आ ही रही होगी। अटलजी भी प्रवर समिति के सदस्य हैं और वह हमसे दो दिन पहले यहां आ गए हैं। मैंने यह संदेश श्याम बाबू को बताया और अटलजी को बताने के लिए उनके कमरे की तरफ गया। हमने आपस में विचार किया कि हममें से किसी को भी गिरफ्तारी से कतराना नहीं चाहिए। वे आएं और जहां चाहें, पकड़कर ले जाएं। अपने कमरे में लौटकर मैंने प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया के एन. बालू को फोन किया। बालू ने दिल्ली से आए संदेश की पुष्टि की और टेलीप्रिंटर से आए समाचार को पढ़कर सुनाया। इसमें गिरफ्तार किए गए अन्य नेताओं के नाम भी थे। एक समाचार को पढ़ते-पढ़ते अचानक वह रुके और थोड़ा हंसते हुए बोले, ‘एक दिलचस्प खबर है।’ वह खबर पढ़ने लगे- गिरफ्तार किए गए नेताओं की सूची में जनसंघ अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी भी हैं। इस तरह मैंने अपनी गिरफ्तारी की खबर गिरफ्तारी के पूर्व ही प्राप्त कर ली।
रेडियो पर इंदिरा गांधी की आवाज
सुबह 8 बजे का मुख्य समाचार बुलेटिन सुनने के लिए मैंने यह सोचकर रेडियो खोला कि देखें, इसमें और क्या कहा जाता है। देवकीनंदन पांडे, विनोद कश्यप और कृष्ण कुमार भार्गव की परिचित आवाजों के बजाय मैं सुन रहा था श्रीमती इंदिरा गांधी की आवाज। श्रीमती इंदिरा गांधी ने घोषित किया कि राष्ट्रपति ने संविधान की धारा 352 के तहत आंतरिक उत्पात की संभावना के कारण आपात स्थिति घोषित कर दी है। आगे यह स्पष्ट करती रहीं कि अगर यह निर्णय नहीं लिया जाता तो 29 जून को कैसा प्रलय हो जाता। 25 जून को लोक संघर्ष समिति ने दिल्ली की एक सभा में 29 जून से सत्याग्रह चालू करने का निर्णय घोषित किया था, जिसमें श्रीमती गांधी से त्यागपत्र की मांग की जाने वाली थी।
गिरफ्तारी की खबर विधायक निवास में फैल चुकी थी
शीघ्र ही अटलजी आए। उन्होंने कहा कि हम लोग नाश्ता कर लें और पुलिस की प्रतीक्षा करें। मैं स्नान कर चुका था, लेकिन श्याम बाबू ने अपनी नित्य क्रिया अभी पूरी नहीं की थी। इसलिए अटलजी और मैं नाश्ते के लिए निचली मंजिल की कैटीन में गए। अभी हम नाश्ते की टेबल पर ही थे कि एक जनसंघ कार्यकर्ता आया। उसने बताया कि पुलिस आ गई है और बाहर हमारी प्रतीक्षा कर रही है। इस समय तक हमारी होने वाली गिरफ्तारी की खबर विधायक निवास में फैल चुकी थी। प्रवर समिति के एक साथी, कांग्रेसी संसद सदस्य हेनरी आस्टीन कैंटीन में आए और हमसे कहने लगे कि जो कुछ हो रहा है, उससे वह खिन्न हैं। मैंने कहा कि चंद्रशेखर और रामधन भी गिरफ्तार कर लिए गए हैं। मैंने उन्हें गिरफ्तारियों की भर्त्सना करने का सुझाव दिया, लेकिन उन्होंने ऐसा करने में अपनी असमर्थता प्रकट की।
गिरफ्तारी के वॉरंट या नजरबंदी के आदेश दिखाने को कहा
कैंटीन से बाहर निकलते ही हमारे सामने एक पुलिस अधिकारी आया। उसने कहा कि वह हमें गिरफ्तार करने आया है। हम लोग ऊपर अपने-अपने कमरे में अपना सामान तैयार करने लगे। इस बीच कमरे में आधा दर्जन पत्रकार और बहुत से कार्यकर्ता एकत्र हो गए थे। पुलिस का कहना था कि वह श्यामनंदन मिश्र को भी गिरफ्तार करने आई है। मिश्र अभी प्रातःकालीन आसन पूरा नहीं कर पाए थे, इस कारण हमें पत्रकारों से बातचीत करने का थोड़ा समय मिल गया। अटलजी और मैंने एक संयुक्त वक्तव्य बनाया, जिसमें हमने जयप्रकाश नारायण और अन्य नेताओं की गिरफ्तारी की भर्त्सना की और आपातस्थिति की निंदा की। पुलिस के साथ बाहर निकलने के पहले हमने उनसे गिरफ्तारी के वॉरंट या नजरबंदी के आदेश दिखाने को कहा। असमंजस भरे अस्पष्ट शब्दों में उन्होंने कहा कि कुछ समय बाद वह गिरफ्तारी के आदेश दिखा देंगे। इस पर श्री मिश्र ने कहा कि बिना गिरफ्तारी के वॉरंट या लिखित कानूनी आदेश के वह नहीं जाएंगे। पुलिस अफसरों ने आपस में सलाह-मशविरा किया और हमारे पास लौट आए। उन्होंने कहा कि वह हमें धारा 151 के अंतर्गत गिरफ्तार कर रहे हैं, इसमें वॉरंट की जरूरत नहीं होती। इसके अंतर्गत अशांति की आशंका पर गिरफ्तारी की जाती है।
खबर से नाम गायब थे
इस तरह लगभग 10 बजे हम विधायक निवास से पुलिस के साथ चले। चलते वक्त संयुक्त प्रवर समिति के अध्यक्ष दरबारा सिंह हमसे मिले और इस तरह की गई हमारी गिरफ्तारी पर व्यक्तिगत खिन्नता प्रकट की। हमें पुलिस थाने में ले जाया गया। बंगलौर का एक नौजवान जनसंघ कार्यकर्ता गोपीनाथ जेल में हमारे उपयोग के लिए एक छोटा सा ट्रांजिस्टर ले आया था। उन्नीस महीने बाद तक, जब हम जेल से मुक्त हुए, गोपीनाथ ही जेल के बाहर से हमारी जरूरतों को पूरा करता रहा। जब भी जेल अधिकारियों द्वारा अनुमति मिलती, वह हमसे जेल में मिलता। उसने यह जिम्मेदारी गिरफ्तारी के पूर्व से संभाल ली थी, जब हम विधायक निवास में थे। हम जेपी की गिरफ्तारी की खबर सुनने के लिए रेडियो का हर घंटे आने वाला समाचार बुलेटिन सुनते रहे, पर व्यर्थ। उस दिन जयप्रकाश नारायण, मोरारजी भाई, बहुत से सांसदों, विधायकों और हजारों राजनीतिक कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी की खबर आकाशवाणी के लिए मात्र इतनी ही थी कि ‘आपात स्थिति’ के लागू होने के बाद कुछ लोगों को आंतरिक सुरक्षा कानून के तहत नजरबंद करना पड़ा है। दोपहर बाद हमें मालूम हुआ कि अखबारों पर कड़ी सेंसरशिप लागू कर दी गई है। हमें पुलिस स्टेशन में दिन भर प्रतीक्षारत रखा गया। शायद पुलिस अधिकारी यह नहीं जानते थे कि किस तरह के नजरबंदी आदेश में हमें गिरफ्तार किया जाना है। एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी से हमें पता चला कि उनके पास दिल्ली से गिरफ्तार किए जाने वाले लोगों की एक लंबी सूची मात्र आई है। उसमें कहा गया था कि इस सूची में नामजद यदि कोई व्यक्ति बंगलौर में हो तो उसे मीसा में बंदी बनाया जाए। अंत में शाम 7 बजे हमारी गिरफ्तारी का आदेश दिया गया।
(आडवाणी की पुस्तक ‘नजरबंद लोकतंत्र’, प्रकाशक- प्रभात प्रकाशन से साभार)
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