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इलाहाबाद HC में लंबित आपराधिक अपीलों पर SC ने लिया स्वत: संज्ञान, दिया यह आदेश

नई दिल्ली सुप्रीम कोर्ट ने में लंबित आपराधिक अपीलों पर स्‍वत: संज्ञान लिया है। हाई कोर्ट में लंबे समय से अटकी इन अपीलों के निपटारे के लिए ऐसा किया गया है। शीर्ष न्‍यायालय ऐसे मामलों पर दिशानिर्देश देने पर विचार कर रहा है। उसने इस मामले को पंजीकृत करने का आदेश दिया है। न्यायमूर्ति एस के कौल और न्यायमूर्ति एम एम सुंदरेश की पीठ ने कहा कि ऐसा सिस्‍टम होना चाहिए कि अगर कोई आरोपी हाई कोर्ट जाए तो जमानत अर्जियों को सुनवाई के लिए तुरंत सूचीबद्ध किया जाए। पीठ ने कहा, 'हाई कोर्ट (इलाहाबाद) की ओर से एक हलफनामा दायर किया गया। इसमें सरकार के सुझावों को स्वीकार किया गया है। अगर हम इन सुझावों पर गौर करें तो इससे जमानत देने की प्रक्रिया और अधिक बोझिल हो जाएगी। अगर कोई अपील हाई कोर्ट में लंबित है और दोषी आठ साल से अधिक की सजा काट चुका है तो अपवाद के अलावा ज्यादातर मामलों में जमानत दे दी जाती है। इसके बावजूद मामले विचार के लिए सामने नहीं आते। हमें यह स्पष्ट नहीं है कि जमानत के ऐसे मामलों को सूचीबद्ध करने में कितना वक्त लगता है।’ शीर्ष अदालत ने कहा कि ऐसे दोषी हो सकते हैं कि जिनके पास जमानत अर्जियां देने के लिए कानूनी सलाह लेने की सुविधा नहीं हो और ऐसी स्थिति में हाई कोर्ट को उन सभी मामलों पर गौर करना चाहिए जहां आठ साल की सजा काट चुके दोषियों को जमानत दी जा सकती है। पीठ ने कहा कि दोषी को पहले हाई कोर्ट जाना चाहिए ताकि सुप्रीम कोर्ट पर अनावश्यक रूप से मामलों का बोझ नहीं बढ़े। लेकिन, कोई तंत्र होना चाहिए कि अगर कोई आरोपी हाई कोर्ट का रुख करता है तो जमानत याचिका तत्काल सूचीबद्ध की जाए। उसने कहा, ‘कुछ मामले उम्रकैद की सजा के भी हो सकते हैं और ऐसे मामलों में जहां 50 फीसदी सजा की अवधि पूरी हो चुकी हो वहां इस आधार पर जमानत दी जा सकती है। हम हाई कोर्ट को इस संबंध में अपनी नीति रखने के लिए चार हफ्तों का वक्त देते हैं। हम अपने सामने लंबित सभी मामलों पर विचार नहीं करना चाहेंगे।’ सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उसके समक्ष लंबित मौजूदा जमानत अर्जियों को सुनवाई के लिए हाई कोर्ट के समक्ष तत्काल रखा जाए। पीठ ने कहा, ‘इस मामले पर और गौर करने के लिए आगे के निर्देशों के लिए अदालत के समक्ष एक अलग स्वत: संज्ञान मामला दर्ज किया जा सकता है। हम रजिस्‍ट्री (पंजी) को इस संबंध में स्वत: संज्ञान मामला दर्ज करने और 16 नवंबर को इसे अदालत के समक्ष सूचीबद्ध करने का निर्देश देते हैं। हमारे समक्ष जमानत के लिए सूचीबद्ध की गई अन्य याचिकाओं को हाई कोर्ट ट्रांसफर किया जाए।’ सुनवाई की शुरुआत में वरिष्ठ अधिवक्ता विराज दतार ने कहा कि हाई कोर्ट ने सरकार के सुझावों को स्वीकार कर लिया है। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार और इलाहाबाद हाई कोर्ट के अधिकारियों को एक साथ बैठने और दोषी व्यक्तियों की अपीलों के लंबित रहने के दौरान जमानत अर्जियों के मामलों के नियमन के लिए संयुक्त रूप से सुझाव देने का निर्देश दिया था। सुप्रीम कोर्ट जघन्य अपराधों में दोषियों की 18 आपराधिक अपीलों पर सुनवाई कर रहा था जिसमें इस आधार पर जमानत मांगी गई है कि उन्होंने जेल में सात या उससे अधिक साल की सजा काट ली है और उन्हें जमानत दी जाए क्योंकि उनकी दोषसिद्धि के खिलाफ अपीलें लंबित हैं।
Source navbharattimes

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