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ताकतवर राजा और गरीब की कुटिया... पेगासस पर SC ने दोहराई 250 साल पुरानी बात

नई दिल्‍ली पेगासस जासूसी विवाद की जांच के लिए एक विशेषज्ञ समिति नियुक्त करने का आदेश देने वाले उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को कहा कि उसका प्रयास ‘‘राजनीतिक बयानबाजी’’ में शामिल हुए बिना संवैधानिक आकांक्षाओं और कानून के शासन को बनाए रखना है, लेकिन उसने साथ ही कहा कि इस मामले में दायर याचिकाएं ‘ऑरवेलियन चिंता’ पैदा करती हैं। ‘ऑरवेलियन’ उस अन्यायपूर्ण एवं अधिनायकवादी स्थिति, विचार या सामाजिक स्थिति को कहते हैं, जो एक स्वतंत्र और खुले समाज के कल्याण के लिए विनाशकारी हो। प्रधान न्यायाधीश एन वी रमण, न्यायमूर्ति सूर्य कांत और न्यायमूर्ति हिमा कोहली की अगुवाई वाली पीठ ने अंग्रेजी उपन्यासकार ऑरवेल के हवाले से कहा, ‘‘यदि आप कोई बात गुप्त रखना चाहते हैं, तो आपको उसे स्वयं से भी छिपाना चाहिए।’’ प्रौद्योगिकी से हो सकता है निजता का हनन पीठ ने कहा, ‘‘यह न्यायालय राजनीतिक घेरे में नहीं आने के प्रति हमेशा सचेत रहा है, लेकिन साथ ही वह मौलिक अधिकारों के हनन से सभी को बचाने से कभी नहीं हिचकिचाया।’’ पीठ ने कहा, ‘‘ हम सूचना क्रांति के युग में रहते हैं, जहां लोगों की पूरी जिंदगी क्लाउड या एक डिजिटल फाइल में रखी है। हमें यह समझना होगा कि प्रौद्योगिकी लोगों के जीवनस्तर में सुधार करने के लिए उपयोगी उपकरण है, लेकिन इसका उपयोग किसी व्यक्ति के पवित्र निजी क्षेत्र के हनन के लिए भी किया जा सकता है।’’ पीठ ने कहा, ‘‘सभ्य लोकतांत्रिक समाज के सदस्य निजता की सुरक्षा की जायज अपेक्षा रखते हैं। निजता (की सुरक्षा) केवल पत्रकारों या सामाजिक कार्यकर्ताओं के लिए चिंता की बात नहीं है। भारत के हर नागरिक की निजता के हनन से रक्षा की जानी चाहिए। यही अपेक्षा हमें अपनी पसंद और स्वतंत्रता का इस्तेमाल करने में सक्षम बनाती है।’’ शीर्ष अदालत ने कहा कि ऐतिहासिक रूप से, निजता के अधिकार लोगों पर केंद्रित होने के बजाय 'संपत्ति केंद्रित' रहे हैं और यह दृष्टिकोण अमेरिका और इंग्लैंड दोनों में देखा गया था। पीठ ने कहा, ‘‘1604 के सेमायने के ऐतिहासिक मामले में, यह कहा गया था कि ‘हर आदमी का घर उसका महल होता है’। इसने गैरकानूनी वारंट और तलाशी से लोगों को बचाने वाले कानून को विकसित किए जाने की शुरुआत की।’’ बेंच ने दिए ऐतिहासिक उदाहरणपीठ ने चैथम के अर्ल (राजा) एवं ब्रितानी नेता विलियम पिट का हवाला देते हुए कहा, ‘‘सबसे गरीब आदमी अपनी कुटिया में क्राउन (राजा) की सभी ताकतों की अवहेलना कर सकता है। उसकी कुटिया कमजोर हो सकती है -उसकी छत हिल सकती है - हवा इसे उड़ा कर ले जा सकती है - उसमें तूफान आ सकता है, बारिश का पानी आ सकता है- लेकिन इंग्लैंड का राजा उसमें प्रवेश नहीं कर सकता। उसकी संपूर्ण ताकत भी बर्बाद हो चुके मकान की दहलीज को पार करने की हिम्मत नहीं कर सकती।’’ पीठ ने 1890 में अमेरिका के दिवंगत अटॉर्नी सैमुअल वारेन और अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट के दिवंगत सदस्य लुई ब्रैंडिस द्वारा लिखे गए 'निजता का अधिकार' लेख का जिक्र करते हुए कहा, ‘‘हाल के आविष्कार और व्यावसायिक तरीके उस अगले कदम पर ध्यान दिए जाने की आवश्यकता पर बल देते हैं, जो व्यक्ति की सुरक्षा के लिए और जैसा कि (अमेरिका के) न्यायाधीश कूली ने कहा था, व्यक्ति के ‘‘अकेले रहने’’ के अधिकार की रक्षा के लिए उठाया जाना चाहिए ।’’ शीर्ष अदालत ने कहा कि अमेरिका के संविधान में चौथे संशोधन और इंग्लैंड में गोपनीयता संबंधी अधिकारों के ‘संपत्ति केंद्रित’ मूल के विपरीत भारत में निजता के अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत प्रदत्त 'जीवन के अधिकार' के दायरे में आते हैं। पीठ ने कहा, ‘‘जब इस न्यायालय ने अनुच्छेद 21 के तहत ‘‘जीवन’’ के अर्थ की व्याख्या की, तो उसने इसे रूढ़ीवादी तरीके से प्रतिबंधित नहीं किया। भारत में जीवन के अधिकार को एक विस्तारित अर्थ दिया गया है। वह स्वीकार करता है कि ‘‘जीवन’’ का अर्थ पशुओं की भांति मात्र जीने से नहीं है, बल्कि एक निश्चित गुणवत्तापूर्ण जीवन सुनिश्चित करने से है।’’
Source navbharattimes

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