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सिंधिया vs वरुण : अजब संयोग! BJP में बढ़ते-घटते कद की एक दिलचस्प कहानी यह भी है

नई दिल्ली ज्योतिरादित्य सिंधिया और वरुण गांधी। दोनों में कई चीजें कॉमन हैं। दोनों युवा हैं। दोनों बीजेपी के सांसद हैं। एक राज्यसभा के तो दूसरे लोकसभा के। दोनों ही स्थापित राजनीतिक और रसूखदार परिवारों से हैं। एक रॉयल फैमिली से हैं तो दूसरे देश के सबसे शक्तिशाली राजनीतिक परिवार से। दोनों को राजनीति विरासत में मिली है। दोनों के पिता कांग्रेस के कद्दावर नेता रहे और यह भी संयोग रहा कि दोनों की हवाई दुर्घटनाओं में मौत हुई। इतनी चीजें कॉमन होने के बावजूद आज दोनों के राजनीतिक करियर का ग्राफ एक दूसरे से उलट है। सिंधिया का कद जहां तेजी से बढ़ रहा है, वहीं वरुण गांधी बीजेपी में हाशिए पर चल रहे हैं। बीजेपी में सिंधिया का कद लगातार बढ़ रहा ज्योतिरादित्य सिंधिया ने पिछले साल ही कांग्रेस छोड़ बीजेपी का दामन थामा। उनकी बदौलत ही एमपी का विधानसभा चुनाव हार चुकी बीजेपी सूबे में फिर सत्ता पर काबिज हुई। नई सरकार में मंत्रियों को तय करने में सिंधिया की खूब चली। उनके समर्थक विधायकों को शिवराज कैबिनेट में भी जगह मिली। लेकिन साल भर से ज्यादा वक्त तक खुद सिंधिया को बीजेपी संगठन या मोदी सरकार में कोई भूमिका नहीं मिली। कांग्रेस ने तंज भी किया कि बीजेपी में वह हमेशा बैकबेंचर ही रहेंगे। लेकिन इस साल जून में बीजेपी ने उन्हें राज्यसभा भेजा। एक महीने बाद ही मोदी सरकार में भी बतौर सिविल एविएशन मिनिस्टर उनकी धमाकेदार एंट्री हुई। उन्हें ऐसा मंत्रालय मिला जिसे कभी उनके पिता संभाल चुके थे। अब बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में भी उनकी एंट्री हो चुकी है। समर्थकों में 'महाराजा' के नाम से लोकप्रिय ज्योतिरादित्य सिंधिया का बीजेपी में सियासी कद लगातार बढ़ रहा है। वरुण गांधी के सियासी करियर में उतार-चढ़ाव वरुण गांधी ने बीजेपी के जरिए ही सियासत में कदम रखा। 2009 में महज 29 साल की उम्र में उन्होंने यूपी के पीलीभीत सीट से बीजेपी के टिकट पर लोकसभा चुनाव जीता। चुनाव प्रचार के दौरान एक सभा में उनके भड़काऊ बयान पर काफी विवाद हुआ था। उस सभा में उन्होंने कहा कि हिंदुओं के खिलाफ उठने वाले हाथ को वह काट देंगे। अगर कोई हिंदू उन्हें वोट नहीं देता है तो वह अपने धर्म के साथ विश्वासघात करेगा। इस भड़काऊ भाषण पर उनके खिलाफ केस भी दर्ज हुआ। यूपी की तत्कालीन मायावती सरकार ने उनके खिलाफ एनएसए भी लगाया और उन्हें जेल भी जाना पड़ा। बाद में सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर उन पर लगा एनएसए हट गया और निचली अदालत से वह बरी भी हो गए। 2009 में पॉलिटिक्स में एंट्री के साथ ही तेजी से बढ़ा वरुण गांधी का कद उसके बाद बीजेपी में वरुण गांधी का कद तेजी से बढ़ा। उनकी गिनती फायर ब्रांड नेताओं में होने लगी। यह वह समय था जब यूपी में बीजेपी लगातार कमजोर होती जा रही थी। वैसे वक्त में वरुण गांधी का उभार एक युवा और कट्टर हिंदुत्व के पैरोकार के तौर पर हुआ। उन्हें भविष्य के बड़े नेता के तौर पर देखा जाने लगा। यहां तक कि उन्हें यूपी में बीजेपी के सीएम कैंडिडेट के तौर पर भी देखा जाने लगा। 2013 में वह बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव बने। 2014 में वरुण गांधी फिर लोकसभा पहुंचे लेकिन इस बार सुलतानपुर सीट से। लेकिन तब तक वरुण गांधी ने 'कट्टर हिंदुत्ववादी' की छवि से खुद को धीरे-धीरे मुक्त कर लिया था। केंद्र में नरेंद्र मोदी की अगुआई में बीजेपी की पूर्ण बहुमत वाली सरकार बनी लेकिन वरुण को उसमें जगह नहीं मिली। विवादों से वरुण गांधी का चोली-दामन का रिश्ता वरुण बीच-बीच में विवादों की वजह से सुर्खियों में आते रहे। 2016 में वरुण गांधी पर आर्म्स डीलर अभिषेक वर्मा को डिफेंस सेक्रेट लीक करने का गंभीर आरोप लगा। दरअसल, यूएस बेस्ड विसलब्लोअर सी एडमंड एलन ने विवादित आर्म्स डीलर अभिषेक वर्मा के खिलाफ प्रधानमंत्री कार्यालय में शिकायत की थी। उन्हीं की शिकायत पर वर्मा के खिलाफ खिलाफ जांच शुरू हुई थी। एलन ने पीएमओ को लिखे खत में वरुण गांधी पर गंभीर आरोप लगाया। उसने दावा किया कि गांधी ने 'हनी ट्रैप' का शिकार होने के बाद डिफेंस सीक्रेट को लीक किया है। धीरे-धीरे बीजेपी में हाशिए पर जा रहे वरुण गांधी पिछले लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने वरुण गांधी को सुलतानपुर के बजाय एक बार फिर से पीलीभीत से चुनाव लड़ाया, जहां से वह जीते भी। मोदी 2.0 में भी वरुण गांधी को जगह नहीं मिली। इस साल जुलाई में जब मोदी 2.0 मंत्रिपरिषद में पहली बार विस्तार होने जा रहा था तब संभावित मंत्रियों में वरुण गांधी का नाम प्रमुखता से लिया जा रहा था। लेकिन उन्हें फिर मायूस होना पड़ा। अब बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी से भी उनकी छुट्टी हो गई है। इस बीच वरुण ने किसान आंदोलन को लेकर पार्टी के आधिकारिक स्टैंड से इतर रुख अपनाकर बीजेपी को कई बार असहज किया है। किसानों के मुद्दों को लेकर उन्होंने न सिर्फ यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ को खत लिखा बल्कि लखीमपुर खीरी कांड के बाद तो उन्होंने योगी सरकार के खिलाफ एक तरह से मोर्चा ही खोल दिया। अब सियासी गलियारों में ऐसी भी अटकलें भी जोर पकड़ने लगी हैं कि मेनका और वरुण गांधी बीजेपी से अलग राह चुन सकते हैं। तो क्या सिंधिया की राह चलेंगे वरुण गांधी? ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस से अलग हो बीजेपी में कामयाबी की सीढ़िया चढ़ रहे हैं। तो क्या वरुण गांधी अब सियासी परवाज के लिए सिंधिया की ही राह पर चलने वाले हैं यानी पार्टी छोड़ कोई दूसरा विकल्प आजमाने जा रहे हैं? आने वाले वक्त में इस सवाल का जवाब भी मिल जाएगा।
Source navbharattimes

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