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26/11 : मुंबई हमले की बरसी पर क्यों याद आ रहा 'हिंदू आतंकवाद'

मुंबई साल 2008...26 नवंबर का दिन। देश की आर्थिक राजधानी मुंबई पर आतंकी हमला कर देते हैं। 4 दिनों तक आतंकियों ने एक तरह से पूरे शहर को बंधक बना लेते हैं। छत्रपति शिवाजी टर्मिनस, होटल ताज, कामा हॉस्पिटल, नरीमन हाउस, मेट्रो सिनेमा, ओबेराय ट्राइडेंट....12 जगहों पर हमले। गोलियों की तड़तड़ाहट से गूंजते इलाके...फिजा में बारूद की गंध। यह भारत में अबतक का सबसे बड़ा आतंकी हमला था। 10 आतंकी शामिल थे। 29 नवंबर तक मुंबई पुलिस ने 9 आतंकियों को ढेर कर दिया। एक आतंकी को जिंदा पकड़ लिया। जिंदा पकड़े गए आतंकी के हाथ में कलावा बंधा है जिसे हिंदू बांधते हैं। पुलिस को उसके पास पहचान पत्र मिलता है। नाम- समीर दिनेश चौधरी। अरुणोदय डिग्री ऐंड पीजी कॉलेज वेड्रे कॉम्पलेक्स, दिलखुशनगर, हैदराबाद का स्टूडेंट। निवास का पता- 254, टीचर्स कॉलोनी, नगराभावी, बेंगलुरु। मारे गए 9 आतंकियों के पास भी भारतीय पहचान पत्र। सभी के हिंदू नाम, सभी की हिंदू पहचान। हाथों पर कलावा। 'हिंदू आतंकवाद' के जुमले के लिए इससे ज्यादा दमदार 'साक्ष्य' भला और क्या हो सकता था? आतंकियों का मकसद भी यही था। लेकिन एक आतंकी के जिंदा पकड़े जाने से 'हिंदू आतंकवाद' की थिअरी के चिथड़े उड़ गए। उस आतंकी की पहचान पाकिस्तान के फरीदकोट के रहने वाले अजमल आमिर कसाब के तौर पर हुई। मारे गए 9 आतंकी भी पाकिस्तानी। इसके साथ ही मुंबई हमले का ठीकरा काल्पनिक 'हिंदू आतंकवाद' के माथे फोड़ने की पाकिस्तान और उसकी कुख्यात खुफिया एजेंसी आईएसआई की जबरदस्त साजिश नाकाम हो गई। जरा कल्पना कीजिए। अगर 29 नवंबर 2008 को कॉन्स्टेबल तुकाराम ओम्बले की सूझबूझ और दिलेरी से कसाब जिंदा नहीं पकड़ा जाता तो क्या होता? तुकाराम ओम्बले ने कसाब को पकड़ा तो आतंकी ने उन्हें गोलियों से भून दिया। मौके पर ही तुकाराम शहीद हो गए लेकिन तबतक सुनिश्चित कर चुके थे कि आतंकी जिंदा पकड़ लिया जाए। अगर उस दिन कसाब जिंदा नहीं पकड़ा जाता तो दुनिया क्या, पूरे हिंदुस्तान को यही लगता कि मुंबई को 'लहूलुहान' करने के पीछे 'हिंदू आतंकवाद' है। मुंबई हमले में मालेगांव ब्लास्ट की जांच करने वाले एटीएस चीफ हेमंत करकरे भी शहीद हुए थे। इस बात से 'हिंदू आतंकवाद' की थिअरी पर कोई भी आंख मूंदकर यकीन कर लेता। जिस हमले के मास्टरमाइंड पाकिस्तान में बैठे-बैठे आतंकियों को निर्देश दे रहे थे। जिसमें आईएसआई और लश्कर-ए-तैयबा शामिल थे। जिसमें जिंदा पकड़े गए आतंकी को अदालत से फांसी की सजा हुई और उसे फंदे से लटकाया गया। उस आतंकी हमले में 'हिंदू आतंकवाद' की कॉन्सपिरेसी थिअरी को खुद सत्ताधारी दल के एक बड़ा नेता ने आगे बढ़ाया। मुंबई हमले को 'हिंदू आतंकवाद' की करतूत दिखाने की कोशिश में पाकिस्तान भले नाकाम हो गया लेकिन कांग्रेस के बड़े नेता दिग्विजय सिंह इसके पीछे आरएसएस का हाथ होने का शक जताते हैं। दिग्विजय सिंह ने 'मुंबई हमले को आरएसएस' की साजिश बताने की कोशिश करने वाली एक किताब का एक नहीं, दो-दो बार लोकार्पण करते हैं। पहले दिल्ली में, फिर मुंबई में। अजीज बर्नी की लिखी किताब '26/11 आरएसएस की साजिश?' (RSS Conspiracy 26/11) के विमोचन में दिग्विजय सिंह के अलावा हिंदी फिल्मों के जाने-माने निर्माता-निर्देशक महेश भट्ट भी मौजूद रहते हैं। दोनों मुंबई हमले के पीछे आरएसएस और 'हिंदू आतंकवाद' का हाथ बताने की कोशिश करते हैं। मुंबई पुलिस के पूर्व पुलिस कमिश्नर राकेश मारिया ने अपनी किताब 'लेट मी से इट नाउ' में विस्तार से बताया है कि किस तरह पाकिस्तान ने मुंबई हमले को 'हिंदू आतंकवाद' जतलाने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी थी लेकिन अजमल कसाब के जिंदा पकड़े जाने से उसकी ये खतरनाक साजिश नाकाम हो गई। मारिया ने किताब के पेज नंबर 436 पर लिखा है कि सभी आतंकियों के हाथ में वैसा ही लाल धागा बंधा था, जिसे हिंदू बांधते हैं। सभी के पास फर्जी भारतीय पहचान पत्र था। सबके नाम हिंदू थे। 'हिंदू आतंकवाद' का रंग देने की अपनी साजिश में पाकिस्तान तकरीबन कामयाब भी हो चुका था लेकिन कसाब के जिंदा पकड़े जाने से उसका खेल बिगड़ गया।
Source navbharattimes

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