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हिंदुत्व का मुद्दा उभारकर क्या विपक्ष खुद अपनी मुश्किल बढ़ा रहा है? 5 राज्यों के चुनाव से पहले की पिच हो रही तैयार

नई दिल्ली पांच राज्यों के चुनाव के मद्देनजर जब बीजेपी की कोर टीम किसान आंदोलन से उपजी नाराजगी से पार पाने की कोशिश में जुटी हुई है कि इसी बीच अखिलेश यादव का ऐसा बयान आया, जिससे बीजेपी को उसकी इच्छा के मुताबिक स्पेस मिल गया। सरदार पटेल की जयंती पर जाने-अनजाने अखिलेश यादव जिन्ना का जिक्र कर बैठे। उन्होंने कहा- 'राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, सरदार पटेल, जवाहरलाल नेहरू और जिन्ना एक ही संस्था से पढ़कर निकले। बैरिस्टर बने और उन्होंने देश को आजादी दिलाई।' बस फिर क्या था, बीजेपी ने इस मुद्दे को लपक लिया। कहा, जिन्ना से तुलना करके अखिलेश ने गांधी और पटेल का अपमान किया है। फिर जिन्ना से शुरू हुई बात वाया पाकिस्तान, मुसलमान होते हुए हिंदुत्व पर जा टिकी। देश के बंटवारे के लिए RSS को जिम्मेदार बताया इस बहस के आगे दूसरे मुद्दों के पीछे चले जाने के डर से मायावती ने अखिलेश यादव और बीजेपी पर नूराकुश्ती का आरोप लगाया तो ओवैसी ने अखिलेश को अपने सलाहकार बदलने की सलाह दे डाली। उन्होंने कहा कि अगर अखिलेश को लगता है कि जिन्ना का जिक्र कर वह मुसलमानों को खुश कर लेंगे तो वह गलती कर रहे हैं। भारतीय मुसलमानों का जिन्ना से कोई लेना-देना नहीं है। इसके बावजूद यूपी में एक वक्त योगी सरकार में मंत्री रहे और इस वक्त अखिलेश यादव के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ने का ऐलान करने वाले सुहेलदेव समाज पार्टी के अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर ने भी देश के बंटवारे के लिए जिन्ना की जगह आरएसएस को जिम्मेदार बताकर आग में घी डालने का काम कर डाला। राजभर ने तो यहां तक कह डाला कि जिन्ना को आजाद भारत का पहला प्रधानमंत्री बनाया गया होता तो कोई बंटवारा नहीं होता। राजभर के बयान पर शुरू हुई बहस भी आखिरकार हिंदुत्व की अवधारणा में तब्दील हो गई। अल्वी, राहुल, सलमान ने भी दिया मौका अखिलेश यादव के बयान पर तो कांग्रेस ने बीजेपी के मनमुताबिक मुद्दे उछालने की तोहमत लगाई, लेकिन बाद में खुद कांग्रेस नेताओं में भी अखिलेश की राह पकड़ने की होड़ सी दिखने लगी। वरिष्ठ नेताओं में शुमार किए जाने वाले राशिद अल्वी यूपी में एक कार्यक्रम को संबोधित करने गए। वहां वह रामायण का प्रसंग सुनाने में लग गए, जिससे उपजे विवाद के बाद बहस हिंदू, हिंदुत्व और राम पर केंद्रित हो गई। बीजेपी राशिद अल्वी के बयान के जरिए यह साबित करना चाह रही है कि उन्होंने जय श्रीराम कहने वालों को राक्षस कहा है। बीजेपी ने कहा कि रामभक्तों के प्रति कांग्रेस के विचारों में कितना जहर घुला हुआ है, यह उनके इस नेता के बयान से साबित होता है। विवाद के बाद सफाई मायने नहीं रखती राशिद अल्वी सफाई देते हुए घूम रहे हैं कि उन्होंने जय श्रीराम बोलने वाले सभी लोगों को राक्षस नहीं कहा था, बल्कि उस प्रसंग में एक राक्षस ने मुनि का रूप धारण कर जय श्रीराम बोला था, इसलिए उन्होंने कहा था कि जय श्रीराम बोलने वाले सभी मुनि नहीं हो सकते, उसमें राक्षस भी हो सकते हैं, लेकिन उनकी सफाई इस विवाद को खत्म नहीं कर पा रही है क्योंकि जब विवाद खड़ा हो जाता है तो फिर सफाई मायने नहीं रखती। इसके बाद राहुल गांधी भी शिव की विचारधारा की व्याख्या कर विवाद को न्योता दे बैठे। बीजेपी उनके कथन को हिंदू धर्म और हिंदुत्व का अपमान बता रही है। इसके बाद कांग्रेस के एक और वरिष्ठ नेता सलमान खुर्शीद अपनी किताब के जरिए हिंदुत्व का अपमान करने के आरोप के घेरे में हैं। उन पर आरोप यह है कि पिछले हफ्ते बाजार में आई उनकी किताब- 'सनराइज ओवर अयोध्या' में उन्होंने हिंदूत्व की तुलना आतंकी संगठन आईएसआईएस और बोको हरम से की है। सलमान अब सफाई दे रहे हैं कि 'मैंने इस किताब में लिखा है कि जो लोग हिंदू धर्म का गलत इस्तेमाल करते हैं, वो लोग आईएस और बोको हरम के समर्थक होते हैं।' क्या यह विपक्ष की चूक है 2014 से देश की राजनीति में आए बदलाव के बाद विपक्ष खुद यह इलजाम लगाता आया है कि बीजेपी चुनाव के मौके पर मुद्दों को भटकाने और जवाबदेही से बचने के लिए हिंदू-मुसलमान और पाकिस्तान पर केंद्रित हो जाती है, लेकिन बड़ा सवाल यह उठता है कि बीजेपी को इसके लिए पिच तैयार कर दे कौन रहा है? अब जब अगले तीन से चार महीनों में यूपी, उत्तराखंड और पंजाब सहित पांच राज्यों के चुनाव होने हैं तो खुद विपक्ष की तरफ से ऐसे मुद्दे उठाए गए, जिस पर बीजेपी को पलटवार करने का मौका मिला। विपक्ष के जरिए ही बीजेपी को उन मुद्दों पर जाने का मौका मिला, जो आखिरकार विपक्ष के लिए नुकसानदेह साबित होते रहे हैं। अखिलेश यादव ने 2017 से नहीं लिया सबक? 2017 के यूपी चुनावों के नतीजों के मद्देनजर अखिलेश यादव को आज तक अफसोस है कि जब वह 2012 से 2017 तक अपनी सरकार के कार्यों के जरिए वोट लेने की कोशिश में थे तो बीजेपी ने श्मशान और कब्रिस्तान का मुद्दा उठाकर चुनाव जीत लिया, लेकिन 2022 के चुनाव से पहले अखिलेश यादव ने जिन्ना को बीच में लाकर चुनावी मूड बदलने का मौका बीजेपी को दे ही दिया। उसके बाद से यूपी में सीएम योगी आदित्यनाथ और बीजेपी के दूसरे वरिष्ठ नेताओं की जितनी भी सभाएं हो रही हैं, उसमें जिन्ना का मुद्दा सबसे प्रमुखता से उठ रहा है। इसी तरह दूसरे चुनावी राज्यों में कांग्रेस नेताओं के बयानों की वजह से बीजेपी को हमलावर होने का मौका मिला हुआ है। मायावती और ओवैसी क्यों है फिक्रमंद? जो कुछ भी हो रहा है, खासतौर पर यूपी में, उससे बीएसपी चीफ मायावती और एआईएमआईएम चीफ असदुद्दीन ओवैसी दोनों की फिक्र बढ़ गई है। दरअसल इन दोनों नेताओं को यूपी से ही उम्मीद है। बीएसपी के लिए तो यह चुनाव अस्तित्व बचाने की लड़ाई है। इन दोनों नेताओं का लगता है कि धार्मिक आधार पर ध्रुवीकरण की स्थिति में लड़ाई बीजेपी और एसपी में सिमट सकती है और वे ऐसा नहीं चाहते। उधर कांग्रेस में भी हिंदुत्व का मुद्दा फिर उभरने पर चिंता बढ़ी है। पार्टी के एक वर्ग का मानना है कि इससे नुकसान होने की संभावना ज्यादा है। ___
Source navbharattimes

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