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गढ़चिरौली में उस दिन क्या हुआ था: 8 घंटे 30 मिनट... हिला देगी कमांडोज की यह आपबीती

नागपुर माओवादियों के खिलाफ मुठभेड़, सिर से निकलता खून और उसे रोकने के लिए कोई कपड़ा बांध लेना। हाथों में फिर बंदूक उठाकर ऐक्शन में आना और दुश्मनों की अंतिम सांस तक लड़ते रहना। यह सब किसी फिल्म का सीन सा लगता है। लेकिन कुछ ऐसा ही दृश्य शनिवार को गढ़चिरौली में था। यह रील लाइफ नहीं, बल्कि रियल लाइफ थी। मुंबई के अंडरवर्ल्ड के साथ 56 एनकाउंटर करने वाले 42 वर्षीय रवींद्र नैतम 2006 से लेकर अब तक वह 75 से ज्यादा माओवादियों को मारने की टीम का हिस्सा रहे हैं। शनिवार को गढ़चिरौली में माओवादियों के साथ हुई मुठभेड़ में वह घायल हो गए। सिर को छूकर निकली गोली गढ़चिरौली की सी-60 कमांडो यूनिट के एक सदस्य रवींद्र भी हैं। माओवादियों के साथ हुई मुठभेड़ में उनके सिर में गोली लगी। गोली सिर छूकर निकल गई। उनकी आंखों के सामने मौत गुजर रही थी लेकिन रवींद्र ने हिम्मत नहीं हारी। वह ऐसी ही घायल अवस्था में दस घंटे तक लड़ते रहे। नहीं हारी हिम्मत कमांडो रवींद्र नागपुर के एक अस्पताल में भर्ती हैं। उन्होंने सिर से निकल रहे खून को रोकने के लिए एक तौलिया कसकर लपेट लिया। अगले दस घंटे तक वह इलाज के लिए इंतजार करते रहे। इस दौरान वह दर्द से तड़पते रहे लेकिन हिम्मत नहीं हारी। 10 फीट नीचे गिर गए थे अतराम रवींद्र के सहयोगी सर्वेश्वर अतराम एक ठोस चट्टान से टकराए और उसके बाद लगभग 10 फीट नीचे गिरे। इस दौरान उनके घुटने में गंभीर चोट आई। अतराम भी विभिन्न कमांडो अभियानों का हिस्सा रहे हैं, जिसमें पिछले कुछ वर्षों में 70-75 माओवादी मारे गए हैं। घुटनों में चोट के साथ लड़ते रहे शनिवार को हुई मुठभेड़ में कुल 26 माओवादी मारे गए। सुन्न दर्द के बावजूद, अतराम ने माओवादियों को दूर रखने के लिए सुबह 7 बजे से दोपहर 3.30 बजे तक लड़ाई लड़ी थी। कमांडो ने कहा, 'जब सवाल जीवन और मृत्यु के बारे में होता है, तो दर्द का एहसास होना खत्म हो जाता है। अगर मैं दर्द के बारे में सोचता तो कार्रवाई नहीं कर पाता। मौत तो एक दिन सबको आनी ही है।' कमांडो ने बताया कि उन्होंने अपने घुटनों में जेल लगाया और अगले 9-10 घंटे चलते रहे। नैतम का सिर हो गया था सुन्न मारे गए 26 माओवादियों में केंद्रीय समिति के सदस्य मिलिंद तेलतुंबडे और अन्य वरिष्ठ कार्यकर्ता शामिल हैं। इस मुठभेड़ को महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में विद्रोही आंदोलन के लिए एक बड़े झटके के तौर पर देखा जा रहा है। नैतम ने कहा कि गोली लगने के बाद वह लगभग होश खो बैठे थे। 'मदद के लिए नहीं आ सकते थे साथी' रवींद्र ने बताया, 'मेरी खोपड़ी से खून बह रहा था। मैंने फायरिंग में लगे अपने दोस्त से कहा कि मेरा खून बह रहा है। मेरे साथियों के पास ऐंटी-क्लॉटिंग किट थी लेकिन वे मुझ तक पहुंचने के लिए फायरिंग छोड़ने की स्थिति में नहीं थे। यह एक महत्वपूर्ण दौर था। मैं अपनी चोट के बारे में चिल्ला नहीं सकता था, लेकिन यह सुनिश्चित करने की कोशिश की कि शरीर में खून की कमी न हो।'
Source navbharattimes

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