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वे 8 कारण जो बताते हैं कि देश में अभी खत्म नहीं हुआ कोरोना संकट

देश के कुछ शीर्ष वैज्ञानिक भी कह चुके हैं कि कोरोना महामारी अब शायद एंडेमिक स्टेज यानी खत्म होने के चरण में पहुंच चुकी है यानी केस तो आते रहेंगे लेकिन बहुत कम संख्या में। कुछ छोटे-छोटे इलाकों में इनमें कभी-कभी उछाल भी दिखेगी। त्योहारी सीजन का एक हिस्सा भी केसों में किसी तरह के खास उछाल के बिना बीत चुका है। अब तो ट्रांसपोर्ट सेवाएं, एयर ट्रैवल, बाजार, सिनेमा हॉल, थिअटर, रेस्टोरेंट वगैरह भी खुल चुके हैं। तो क्या दुनिया धीरे-धीरे कोरोना काल से पहले वाले दौर में पहुंच चुकी है? नहीं, बिल्कुल नहीं। कोरोना संकट अभी बीता नहीं है। वैश्विक स्तर पर संक्रमण के मामले फिर बढ़ने लगे हैं। दूसरी तरफ देश में कोरोना केस कम होने के साथ ही, वैक्सीन की दूसरी खुराक को लेकर लोगों में हिचक भी बढ़ रही है। वहीं, बच्चों के वैक्सीनेशन शुरू होना तो दूर, अबतक कोई रोड मैप सामने नहीं आया है। आइए देखते हैं वे 8 कारण जो बताते हैं कि भारत में अभी कोरोना संकट खत्म नहीं हुआ है।

भारत में कोरोना संक्रमण के डेली केस लंबे समय से कम बने हुए हैं। इससे यह धारणा मजबूत हो रही है कि शायद महामारी का सबसे बुरा दौर बीत चुका है। लेकिन हकीकत अलग है। देश में कोरोना महामारी कमजोर तो हुई है लेकिन खत्म नहीं।


Covid-19 : वे 8 कारण जो बताते हैं कि देश में अभी खत्म नहीं हुआ कोरोना संकट

देश के कुछ शीर्ष वैज्ञानिक भी कह चुके हैं कि कोरोना महामारी अब शायद एंडेमिक स्टेज यानी खत्म होने के चरण में पहुंच चुकी है यानी केस तो आते रहेंगे लेकिन बहुत कम संख्या में। कुछ छोटे-छोटे इलाकों में इनमें कभी-कभी उछाल भी दिखेगी। त्योहारी सीजन का एक हिस्सा भी केसों में किसी तरह के खास उछाल के बिना बीत चुका है। अब तो ट्रांसपोर्ट सेवाएं, एयर ट्रैवल, बाजार, सिनेमा हॉल, थिअटर, रेस्टोरेंट वगैरह भी खुल चुके हैं। तो क्या दुनिया धीरे-धीरे कोरोना काल से पहले वाले दौर में पहुंच चुकी है? नहीं, बिल्कुल नहीं। कोरोना संकट अभी बीता नहीं है। वैश्विक स्तर पर संक्रमण के मामले फिर बढ़ने लगे हैं। दूसरी तरफ देश में कोरोना केस कम होने के साथ ही, वैक्सीन की दूसरी खुराक को लेकर लोगों में हिचक भी बढ़ रही है। वहीं, बच्चों के वैक्सीनेशन शुरू होना तो दूर, अबतक कोई रोड मैप सामने नहीं आया है। आइए देखते हैं वे 8 कारण जो बताते हैं कि भारत में अभी कोरोना संकट खत्म नहीं हुआ है।



1- सेकंड डोज कवरेज का कम होना
1- सेकंड डोज कवरेज का कम होना

पिछले महीने ही देश ने 100 करोड़ से ज्यादा कोरोना वैक्सीन की खुराक लगने का जश्न मनाया लेकिन हकीकत यह है कि अब भी करीब 40 करोड़ लोगों ने दूसरी खुराक नहीं ली है। तमाम रिसर्च से यह साबित हो चुका है कि वैक्सीन का सिंगल डोज बहुत ज्यादा सुरक्षा नहीं दे सकता। वैक्सीनेशन की रफ्तार भी घटी है। सितंबर में वैक्सीनेशन ने जोर पकड़ा था। एक ही दिन में 2.5 करोड़ से ज्यादा डोज का वर्ल्ड रेकॉर्ड भी बना। रोज औसतन करीब 1 करोड़ डोज लगे लेकिन अब आलम यह है कि 3-4 दिनों में कुल उतने डोज लग रहे हैं जितने सितंबर में किसी एक दिन में लग रहे थे।



2- बहुत ज्यादा गैप यानी दूसरा डोज हो गया पहले डोज जैसा
2- बहुत ज्यादा गैप यानी दूसरा डोज हो गया पहले डोज जैसा

देशभर में यह बात देखी जा रही है कि टीके की दूसरी खुराक लेने में लोगों की रुचि कम हो रही है। इसकी वजह है संक्रमण के मामलों में गिरावट और कोरोना का डर एक तरह से खत्म होना। सेकंड डोज में तय समय से बहुत ज्यादा देरी का मतलब है पहले डोज का एक तरह से पूरी तरह बेअसर होना। यानी तकनीकी रूप से भले ही आपने वैक्सीन की दूसरी खुराक ली हो लेकिन वह एक तरह से आपके लिए पहली खुराक जैसा है।



3- फर्स्ट डोज कवरेज में भी कमी
3- फर्स्ट डोज कवरेज में भी कमी

वैक्सीनेशन की रफ्तार घटने के साथ ही फर्स्ट डोज कवरेज में भी गिरावट आई है। उदाहरण के तौर पर 9 से 15 अक्टूबर वाले सप्ताह में कुल 3.2 करोड़ डोज लगे जो उससे करीब एक महीने पहले के साप्ताहिक डोज से 52 प्रतिशत कम था। अब फर्स्ट डोज लेने वाले लोगों की संख्या में भी गिरावट देखी जा रही है।



4- देश के 40 जिलों में वैक्सीनेशन का बुरा हाल
4- देश के 40 जिलों में वैक्सीनेशन का बुरा हाल

देश के 40 जिले तो ऐसे हैं जहां फर्स्ट डोज कवरेज 50 प्रतिशत से भी कम है। अच्छी बात यह रही कि ये जिले आखिरकार सरकार के रेडार पर आ गए। यूरोप यात्रा से लौटने के ठीक बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इन 40 जिलों के डीएम के साथ रिव्यू मीटिंग कर वैक्सीनेशन तेज करने का निर्देश दिया है।



5- त्योहारी सीजन सबसे बड़ी चिंता, सबसे बड़ा इम्तिहान भी
5- त्योहारी सीजन सबसे बड़ी चिंता, सबसे बड़ा इम्तिहान भी

त्योहारी सीजन में बाजारों में चहल-पहल, भीड़-भाड़ कोरोना काल से पहले जैसा दिख रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बार-बार याद दिलाते रहते हैं कि लापरवाही के लिए कोई जगह नहीं है, कोरोना अभी खत्म नहीं हुआ है। स्वास्थ्य मंत्रालय भी बार-बार लोगों से कोविड प्रोटोकॉल के पालन की अपील कर रहा है। लेकिन बाजारों में सोशल डिस्टेंसिंग तो बहुत दूर की बात, मास्क लगाने तक का पालन नहीं हो रहा। बिजनस कम्यूनिटी इसका दोष स्थानीय प्रशासन पर मढ़ देती है कि वे भीड़ को नियंत्रित नहीं कर पा रहे लेकिन जब कभी प्रशासन सख्ती करता है, कार्रवाई करता है तो बिजनस कम्यूनिटी ही शिकायत करने लगता है। दिवाली पर जिस तरह देशभर में चौक-चौराहों, बाजारों, मॉल्स वगैरह में भीड़ उमड़ी, उसका असर तो कम से कम दो हफ्ते बाद दिखना शुरू होगा। दिवाली तो बीत गई। लेकिन आगे छठ और क्रिसमस जैसे त्योहार हैं।



6- बच्चों के लिए वैक्सीन नहीं
6- बच्चों के लिए वैक्सीन नहीं

देशभर में बच्चों के स्कूल भी खुल चुके हैं लेकिन अभी तक बच्चों के वैक्सीनेशन को लेकर कन्फ्यूजन की स्थिति बनी हुई है। एक हालिया रिपोर्ट में कोरोना वैक्सीनेशन पर बने नेशनल टेक्निकल अडवाइजरी ग्रुप के चेयरमैन डॉक्टर एनके अरोड़ा के हवाले से बताया गया कि बच्चों का टीकाकरण इस महीने से शुरू किया जा सकता है। हालांकि, अभी तक आधिकारिक तौर पर ऐसा कुछ नहीं कहा गया है।



7- वैश्विक स्तर पर संक्रमण के मामलों में तेजी
7- वैश्विक स्तर पर संक्रमण के मामलों में तेजी

यूरोप में कोरोना संक्रमण के मामलों में फिर से उछाल देखने को मिल रहा है। यूरोप में कोरोना संक्रमण में गिरावट के बाद पिछले लगातार 3 हफ्तों से नए मामलों में उछाल देखने को मिल रहा है। सिर्फ पिछले हफ्ते यूरोप में नए मामलों में 18 प्रतिशत का इजाफा देखने को मिला। जबकि इस दौरान दुनिया के ज्यादातर हिस्सों में संक्रमण में कमी देखी गई। 31 अक्टूबर को समाप्त हुए सप्ताह में दुनियाभर में कोरोना के करीब 30 लाख नए मामले सामने आए। विश्व स्वास्थ्य संगठन के महानिदेशक डॉक्टर टेड्रोस अधानोम गेब्रेइसस के शब्दों में, 'यह याद दिलाता है कि कोरोना महामारी अभी खत्म नहीं होने जा रही।'



8- बिना इस्तेमाल के पड़े हुए टीके
8- बिना इस्तेमाल के पड़े हुए टीके

31 अक्टूबर को केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की तरफ से साझा किए गए आंकड़ों के मुताबिक राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों में पास कोरोना वैक्सीन के 13 करोड़ से ज्यादा डोज का बैलेंस पड़ा हुआ है। स्टॉक में इतना ज्यादा वैक्सीन होने के बावजूद वैक्सीनेशन बढ़ने के बजाय घट रहा है, यह चिंता की बात है।



Source navbharattimes

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