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मोदी का मास्टर स्ट्रोक : एक ही झटके में विपक्ष को कर दिया निहत्था

नई दिल्ली शुक्रवार सुबह। पीएमओ से एक ट्वीट होता है- प्रधानमंत्री मोदी 9 बजे देश को संबोधित करेंगे। ट्वीट के बाद तमाम तरह की अटकलें लगनी शुरू हो जाती हैं कि इस मुद्दे पर बोल सकते हैं, उस मुद्दे पर बोल सकते हैं, फलां मुद्दे पर बोल सकते हैं, अमुक मुद्दे पर बोल सकते हैं....। लेकिन तब शायद ही किसी को अंदाजा रहा होगा कि मोदी एक बहुत ही बड़ा मास्टर स्ट्रोक खेलने जा रहे हैं जो एक ही झटके में विपक्ष को निहत्था कर देगा। साल-डेढ़ साल से सरकार को घेरने के लिए बनी और बनाई जा रहीं विपक्ष की रणनीतियों, चक्रव्यूह को तहस-नहस कर देगा। सियासत के मंझे खिलाड़ी मोदी ने देश को संबोधित करते हुए तीन विवादित कृषि कानूनों को वापस लेने का ऐलान कर ऐसा ही मास्टर स्ट्रोक खेला है। संबोधन की शुरुआत में जैसे ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कृषि और किसान हितों के लिए अपनी सरकार की तरफ से उठाए गए फैसलों की फेहरिस्त गिनानी शुरू की, तभी अंदाजा हो गया था कि वह ऐसा कुछ ऐलान कर सकते हैं। हुआ भी ऐसा। पीएम मोदी ने कृषि कानूनों को वापस लेने का ऐलान भले किया लेकिन साथ ही साथ उनका पुरजोर बचाव भी किया कि ये किसानों के ही हित में थे। शायद उनकी सरकार किसानों को सही से अपनी बात समझा नहीं पाई, तपस्या में शायद कोई कमी रह गई। उन्होंने तीनों कानूनों को वापस लेने का ऐलान करते हुए प्रदर्शनकारी किसानों से आंदोलन खत्म कर घर लौटने की भी अपील की। कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग को लेकर तमाम किसान संगठन पिछले एक साल से दिल्ली की सीमाओं पर आंदोलन कर रहे हैं। इन्हीं कानूनों को लेकर सरकार पिछले साल-डेढ़ साल से विपक्ष के निशाने पर थी। पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों में आंदोलनकारी किसान संगठनों ने खुलकर बीजेपी के खिलाफ प्रचार किया। कृषि कानूनों का सबसे ज्यादा विरोध पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी यूपी में हो रहा था। किसानों में नाराजगी का आलम यह था कि कई गांवों में बीजेपी नेताओं को घुसने नहीं दिया जा रहा था। केंद्रीय मंत्रियों तक को विरोध का सामना करना पड़ रहा था। कृषि कानूनों के विरोध के नाम पर कुछ अराजक तत्वों की तरफ से बीजेपी नेताओं की पिटाई की घटनाएं भी हुईं। मेघालय के राज्यपाल सत्यपाल मलिक तक सरकार के खिलाफ मोर्चा खोले हुए थे। पश्चिमी यूपी का जाट समुदाय जिसका 2014, 2017 और 2019 के चुनावों में बीजेपी की जबरदस्त कामयाबी के पीछे बड़ा हाथ था, उसमें बीजेपी के खिलाफ इस कदर नाराजगी थी कि 2022 के चुनावों में सबक सिखाने के लिए तैयार बैठा था। अब कृषि कानूनों को वापस लेने से बीजेपी डैमेज कंट्रोल में कामयाब हो सकती है। एक साथ क्या-क्या साध रही सरकार यूपी चुनाव कृषि कानूनों को वापस लेने के ऐलान की टाइमिंग बहुत कुछ बताती है। अगले महीने की शुरुआत में यूपी, पंजाब, उत्तराखंड समेत 5 राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं। बीजेपी के खिलाफ पश्चिमी यूपी में खासकर जाट समुदाय में जबरदस्त गुस्सा था जो विधानसभा चुनाव में पार्टी के लिए बहुत महंगा पड़ सकता था। देर से ही सही, लेकिन बीजेपी ने चुनाव से ऐन पहले कृषि कानूनों को वापस लेकर यूपी खासकर पश्चिमी यूपी को साधने की कोशिश की है। बीजेपी को पता है कि मिशन 2024 के लिए 2022 में भी यूपी में कमल खिलना बहुत जरूरी है। पंजाब चुनाव इसी तरह, कृषि कानूनों को ही लेकर बीजेपी और अकाली दल का ढाई दशकों से लंबा साथ टूट गया। अब कानूनों को वापस लेने के बाद बीजेपी के सामने पंजाब में अपने लिए पुख्ता जमीन तैयार करने का मौका है। कैप्टन अमरिंदर सिंह इसमें मददगार साबित हो सकते हैं। 2 महीने पहले जब पंजाब का मुख्यमंत्री पद छीने जाने के बाद कैप्टन ने कांग्रेस से बगावत की थी तभी से ये अटकलें लगने लगी थीं कि मोदी सरकार कृषि कानूनों को वापस ले सकती है और पंजाब कांग्रेस में मचे उथल-पुथल का इस्तेमाल सूबे में अपना जनाधार बढ़ाने में कर सकती है। वैसे, कृषि कानूनों को वापस लेने से बीजेपी और अकाली के एक साथ आने का भी दरवाजा खुल चुका है। हालांकि, 2022 के पंजाब चुनाव में इसके आसार कम हैं लेकिन 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले ये पुराने साथी फिर साथ दिख सकते हैं। हरियाणा कृषि कानूनों के खिलाफ हरियाणा के किसानों में जबरदस्त नाराजगी थी। राज्य सरकार में शामिल बीजेपी की सहयोगी जेजेपी भी असहज थी। 2024 में बीजेपी को इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ सकती थी। लेकिन अब कानूनों को वापस लेने का दांव खेलकर बीजेपी ने डैमेज कंट्रोल की कवायद की है। विपक्ष के हाथ से बड़ा मुद्दा छिन गया कृषि कानूनों को वापस लेने के ऐलान से मोदी सरकार ने विपक्षी दलों के हाथ से एक बड़ा मुद्दा छीन लिया है। विवादित कृषि कानून का मुद्दा सिर्फ विपक्ष के लिए सरकार के खिलाफ बड़ा हथियार था बल्कि ये विपक्षी दलों को एक साथ पिरोने वाला सूत्र भी था, विपक्षी एकता का आधार था। किसान आंदोलन को भुनाने की कोशिश में लगे विपक्ष के लिए मोदी सरकार का यह दांव बहुत बड़ा झटका है। राकेश टिकैत की जिद आंदोलनकारी किसानों की सबसे बड़ी मांग यही थी कि तीनों कृषि कानून वापस हों। आखिरकार किसानों की जिद के आगे मोदी सरकार को झुकना ही पड़ा। इसी महीने से शुरू होने जा रहे संसद के शीतकालीन सत्र में सरकार इन कानूनों को वापस लेने की प्रक्रिया पूरी करेगी। यह निश्चित तौर पर आंदोलनकारी किसानों की बड़ी जीत है। हालांकि, किसान आंदोलन के सबसे बड़े चेहरे भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत ने ऐलान किया है कि संसद से कानून वापस लेने की प्रक्रिया पूरी होने के बाद ही वे अपने-अपने घरों को लौटेंगे। अगर अब भी किसान आंदोलन जारी रहा तो... टिकैट ने संसद से कानून वापस लिए जाने तक आंदोलन जारी रखने का ऐलान किया है। इस लिहाज से भी किसान आंदोलन अगले 15-20 दिनों तक ही चल पाएगा। हालांकि, एक और मुद्दा है जिसकी आड़ में कृषि आंदोलन जारी रखा जा सकता है। यह है न्यूनतम समर्थन मूल्य की कानूनी गारंटी का मुद्दा। कृषि संगठन एमएसपी को कानूनी गारंटी की मांग को लेकर आंदोलन को आगे भी खींचने की कोशिश कर सकते हैं। इसका अंदाजा सरकार को भी है। तभी तो पीएम मोदी ने अपने संबोधन में एमएसपी को और अधिक कारगर, प्रभावी बनाने के लिए एक कमिटी के गठन का भी ऐलान किया। कमिटी में केंद्र और राज्य सरकारों के प्रतिनिधि तो होंगे ही, किसान, कृषि वैज्ञानिक और कृषि विशेषज्ञ भी होंगे। ऐसे में अगर अब एमएसपी या किसी अन्य मुद्दे को लेकर किसान आंदोलन को आगे खींचने की कोशिश होती भी है तो सरकार के लिए फिक्र जैसी कोई बात नहीं होगी। इसकी वजह यह है कि अगर अब भी किसान आंदोलन जारी रहता है तो यह आंदोलन जनता की सहानुभूति खो देगा। सरकार जनता तक यह संदेश देने में कामयाब हो जाएगी कि इस पर राजनीति हो रही है। इसके पीछे किसानों के हित नहीं, बल्कि कुछ नेताओं की निजी राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं या पर्दे के पीछे राजनीतिक दलों का सियासी खेल है।
Source navbharattimes

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