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चुभते सवाल पर नारायण दत्त तिवारी ने मुस्कुराकर पूछा- मुलायम कब से इतने कठोर बन गए?

लखनऊ आधुनिक तकनीक के साथ आज भारतीय राजनीति भी हाईटेक हो गई है। आज बड़ा नेता वह माना जाता है जिसके सोशल मीडिया पर कई मिलियन फॉलोअर्स या सब्‍क्राइबर्स हों। यहां लीडर और उन्‍हें फॉलो करने वाले दोनों हकीकत से परे एक दूसरी ही दुनिया में रहते हैं। लेकिन नेताओं की एक पीढ़ी ऐसी भी थी जिसमें ये वाकई में जनता के नुमाइंदे होते थे... जनता के सुख-दुख में शामिल, उसके घर के सदस्‍य की तरह। ऐसे ही थे कांग्रेस नेता और यूपी के पूर्व सीएम नारायण दत्‍त त‍िवारी। नारायण दत्‍त त‍िवारी की खास बात थी कि वह मामूली से मामूली इंसान को भी अहम फील कराने में माहिर थे। भले ही वह शख्‍स उनसे बरसों बाद मिले लेकिन उन्‍हें उसका नाम याद रहता था, अगर उसने कभी अपने परिवार के सदस्‍य का, उसकी किसी समस्‍या का जिक्र किया होता तो तिवारी जब भी मिलते उसका कुशल क्षेम जरूर पूछते। नारायण दत्‍त तिवारी तीन बार यूपी के सीएम रहे। एक वाकया है सन 1989 का जब वह तीसरी बार यूपी के सीएम बने। वह अचानक एक दिन निरीक्षण के लिए बदायूं जिले की तहसील दातागंज में जा पहुंचे। वह ब्‍लॉक डेवलपमेंट अफसर (बीडीओ) के कार्यालय में आए तो बीडीओ अपनी कुर्सी से उठ खड़ा हुआ। उसे पता था कि उसके सामने प्रदेश के सीएम खड़े हैं। तिवारी ने उससे ब्‍लॉक के किसी मुद्दे पर जानकारी मांगी। बीडीओ ने नारायण दत्‍त तिवारी के सामने अपनी कुर्सी सरका दी और उनसे बैठने का आग्रह किया। त‍िवारी ने अपनी जानमानी मुस्‍कान के साथ कहा, 'बीडीओ साहब, उस कुर्सी पर आप ही बैठिए... बड़ी मेहनत के बाद आपने वह कुर्सी हासिल की है।...' और यह कह कर सामने रखी कुर्सी पर ही बैठकर फाइल देखने लगे। नारायण दत्‍त तिवारी की एक और खूबी थी कि बात चाहे कैसी भी हो वह मुस्‍कुरा कर जवाब देते थे। उन्‍हें ऊंची आवाज में बोलते या आपा खोते शायद ही कभी देखा गया हो। वाकया उनके तीसरे मुख्‍यमंत्रित्‍व काल का है। सन 1989 में उर्दू को यूपी की दूसरी राजभाषा को दर्जा दिलाने के मुद्दे पर कुछ प्रदर्शनकारियों ने 30 सितंबर को बदायूं में एक कॉलेज को घेर कर हमला बोल दिया। इसके बाद हुए दंगे में करीब 23 लोग मारे गए, 148 घायल हुए और बहुत बड़े पैमाने पर सार्वजनिक संपत्ति का नुकसान हुआ। उस समय मुलायम सिंह यादव विपक्ष के मजबूत नेता हुआ करते थे। दंगों के बाद जब सीएम नारायण दत्‍त तिवारी बदायूं आए तो उनसे एक दैनिक अखबार के संवाददाता मुन्‍ना बाबू शर्मा ने सवाल पूछा, 'मुलायम सिंह यादव कहते हैं कि जिस समय बदायूं में दंगा भड़क रहा था, आप किसी पार्टी में मशगूल थे। आपने तुरंत कोई कार्रवाई नहीं की... जल्‍द कदम उठाते तो हालात पर काबू पाया जा सकता था।' मौजूद अधिकारियों में सन्‍नाटा छा गया, वे नारायण दत्‍त तिवारी के मुंह की ओर देखने लगे। लेकिन तिवारी के चेहरे पर हमेशा की तरह मुस्‍कान बनी रही। उन्‍होंने बस इतना ही कहा, 'मुलायम कब से इतने कठोर बन गए...' और सवाल पूछने वाला का हाथ हल्‍के से दबाकर आगे निकल गए।
Source navbharattimes

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