DIGITELNEWS पर पढ़ें हिंदी समाचार देश और दुनिया से,जाने व्यापार,बॉलीवुड समाचार ,खेल,टेक खबरेंऔर राजनीति के हर अपडेट

 

चीन-पाक चिढ़कर किनारे बैठे, दिल्ली में भारत के दोस्तों की अफगानिस्तान पर बड़ी बैठक का मतलब समझिए

नई दिल्ली भारत ने अफगानिस्तान के पुननिर्माण में सालों से अहम भूमिका निभाता रहा है। पिछले दो दशकों में उसने अफगानिस्तान पर तीन अरब डॉलर से ज्यादा खर्च कर दिए। अफगानिस्तान के आम लोगों को सुविधा के लिए शुरू की गई परियोजनाओं से तालिबान भी प्रभावित है। अफगानिस्तान को लेकर भारत की चिंताओं का आकलन इसी बात से किया जा सकता है कि इसने उस हर फोरम पर अपनी मौजूदगी दर्ज करवाई है जहां अफगानिस्तान को लेकर चर्चा होती है- वो चाहे जी20 और ब्रिक्स जैसे सम्मेलन हों या फिर द्विपक्षीय बातचीत। यही वजह है कि भारत तालिबान राज कायम होने के बाद अफगानिस्तान के भविष्य की चिंता में विभिन्न मोर्चों पर सार्थक पहल कर रहा है। इसी क्रम में दिल्ली में आठ देशों की दो दिवसीय बैठक बुलाई गई है। पहले पाकिस्तान और अब चीन ने इस बैठक में हिस्सा लेने से इनकार कर दिया है। हालांकि, इसका अंदेशा पहले से ही था क्योंकि अफगानिस्तान में पाकिस्तान की भूमिका से दुनिया वाकिफ है। जहां तक बात चीन की है तो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पाकिस्तान के नापाक मंसूबों के सह देने की उसकी पुरानी नीति रही है। बहरहाल, सवाल यह है कि आखिर भारत को दिल्ली डायलॉग से क्या उम्मीद है और अफगानिस्तान को लेकर भारत समेत अन्य पड़ोसी देशों की बड़ी चिंताएं क्या हैं... दिल्ली डायलॉग से भारत को उम्मीद अमेरिका ने जब अफगानिस्तान से अपने सैनिकों को वापस बुलाने के लिए तालिबान से बातचीत शुरू की थी, तब से ही भारत को अफगानिस्तान के मुद्दे पर अलग-थलग छोड़ दिया गया था। अब जब पाकिस्तान की सह पर तालिबान शासन के अधीन अफागनिस्तान में 21वीं सदी की लोकतांत्रिक नीतियों और मानवीय पहलों की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं, भारत की चिंताएं बढ़ गई हैं। भारत चाहता है कि अफगानिस्तान के भूत-वर्तमान और भविष्य पर चर्चा वाले हर मंच पर उसकी भागीदारी सुनिश्चित हो ताकि वो अपनी चिंताओं से न केवल दुनिया को वाकिफ करवा सके बल्कि इनके समाधान के लिए दबाव भी डाल सके। एक सूत्र ने अंग्रेजी अखबार द इंडियन एक्सप्रेस से कहा, 'जब आप टेबल पर नहीं होते हैं तो आपका स्थान मेनू में होता है... यह सम्मेलन (दिल्ली डायलॉग) के जरिए भारत अपने लिए टेबल और अजेंडा सेट करना चाहेगा।' दिल्ली डायलॉग में आठ देश होंगे शामिल इसी क्रम में, भारत बुधवार को अफगानिस्तान पर सुरक्षा वार्ता के लिए रूस, ईरान और पांच मध्य एशियाई देशों के शीर्ष सुरक्षा अधिकारियों की मेजबानी करेगा जो अफगान संकट के बाद आतंकवाद, कट्टरपंथ और मादक पदार्थों के बढ़ते खतरों से निपटने में व्यावहारिक सहयोग के लिए साझा दृष्टिकोण तलाशेंगे। राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल की अध्यक्षता में होने वाले संवाद में कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान और उज्बेकिस्तान के शीर्ष सुरक्षा अधिकारी भी शामिल होंगे। बैठक का अजेंडा क्या है? सूत्रों ने कहा कि बैठक में शामिल हो रहे आठ देशों के बीच अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे के बाद की सुरक्षा जटिलताओं पर चर्चा होगी और बातचीत मुख्यत: चुनौतियों से निपटने के लिए व्यावहारिक चीजों पर सहयोग करने पर केंद्रित रहेगी। उन्होंने कहा कि अफगानिस्तान से लोगों की सीमा पार आवाजाही के साथ-साथ वहां अमेरिकी बलों द्वारा छोड़े गए सैन्य उपकरणों और हथियारों से उत्पन्न खतरे पर भी सुरक्षा अधिकारियों द्वारा विचार-विमर्श किए जाने की उम्मीद है। विदेश मंत्रालय के बयान में कहा, 'उच्चस्तरीय वार्ता में क्षेत्र में अफगानिस्तान में हाल के घटनाक्रम से उत्पन्न सुरक्षा स्थिति की समीक्षा की जाएगी। इसमें प्रासंगिक सुरक्षा चुनौतियों से निपटने के उपायों पर विचार किया जाएगा और शांति, सुरक्षा तथा स्थिरता को बढ़ावा देने में अफगानिस्तान के लोगों का समर्थन किया जाएगा।' भारत ने साफ कहा है कि तालिबान शासन के अधीन अफगानिस्तान को आतंकियों का पनाहगाह बनने नहीं दिया जा सकता है। इसने कहा कि तालिबान राज में अल्पसंख्यकों, महिलाओं और बच्चों के अधिकारों की रक्षा होनी चाहिए। लेकिन, तालिबानी शासन में अब तक जो देखने को मिला है, उससे नहीं लगता है कि वो इनके अधिकारों की जरा भी फिक्र करता है। तालिबान पर पाकिस्तान की सरकार, सेना और उसकी बदनाम खुफिया एजेंसी आईएसआई का जबर्दस्त प्रभाव है। दुनिया जानती है कि पाकिस्तान, अफगानिस्तान की जमीन का इस्तेमाल भारत के खिलाफ करने को आतुर है। अकेले भारत की चिंता नहीं विदेश मंत्रालय ने कहा कि भारत के पारंपरिक रूप से अफगानिस्तान के लोगों के साथ घनिष्ठ और मैत्रीपूर्ण संबंध रहे हैं तथा नई दिल्ली ने अफगानिस्तान के सामने उत्पन्न सुरक्षा और मानवीय चुनौतियों का समाधान करने के लिए एकीकृत अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया का आह्वान किया है। इसने कहा कि यह बैठक उस दिशा में एक कदम है। सूत्रों ने कहा कि वार्ता में शामिल हो रहे देशों में से किसी ने भी तालिबान को मान्यता नहीं दी है और अफगानिस्तान की स्थिति पर उन सभी की समान चिंताएं हैं। उन्होंने कहा कि अफगानिस्तान पर पाकिस्तान की कार्रवाइयों और इरादों के बीच विश्वसनीयता संबंधी अंतर है। चीन ने दिल्ली डायलॉग में शामिल होने से क्यों किया इनकार? सूत्रों ने कहा कि चीन को 'अफगानिस्तान पर दिल्ली क्षेत्रीय सुरक्षा वार्ता' के लिए आमंत्रित किया गया था, लेकिन उसने भारत को पहले ही सूचित कर दिया है कि वह कार्यक्रम के समय से संबंधित कुछ मुद्दों के कारण बैठक में शामिल नहीं हो पाएगा। पाकिस्तान ने भी बैठक में शामिल न होने का फैसला किया है। वार्ता में चीन के अनुपस्थित रहने के बारे में सूत्रों ने कहा कि हालांकि बीजिंग कार्यक्रम के समय संबंधी कुछ जटिलतओं की वजह से सम्मेलन में शामिल नहीं हो रहा लेकिन उसने अफगानिस्तान के मुद्दे पर द्विपक्षीय और बहुपक्षीय माध्यमों से भारत के साथ संपर्क में रहने की बात कही है। उन्होंने कहा, 'यदि चीन इसमें शामिल होता तो हमें प्रसन्नता होती लेकिन शायद सीपीसी की केंद्रीय समिति की बैठक उसके शामिल न होने एक कारण हो सकती है।' फिर जाहिर हुई पाकिस्तान की मंशा पाकिस्तान ने राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों के संवाद के पूर्व संस्करणों में 2018 और 2019 में भी इसमें भारत की भागीदारी के चलते शामिल होने से इनकार कर दिया था। पाकिस्तान के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) मोईद यूसुफ ने भारत को 'विध्वंसक' बताकर अपनी मंशा जाहिर कर दी है। वो यह कि पाकिस्तान अफगानिस्तान का भविष्य बेहतर करने के किसी भी प्रयास में शामिल नहीं होगा। कौन-कौन होंगे प्रतिनिधि विदेश मंत्रालय ने कहा कि वार्ता में ईरान, कजाकिस्तान, किर्गिज गणराज्य, रूस, ताजिकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान और उज्बेकिस्तान की विस्तारित भागीदारी दिखेगी तथा देशों का प्रतिनिधित्व उनके संबंधित राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार या सुरक्षा परिषदों के सचिवों द्वारा किया जाएगा। सूत्रों ने कहा कि ईरान का प्रतिनिधित्व वहां की सर्वोच्च राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद के सचिव रियर एडमिरल अली शामखानी करेंगे, जबकि रूस का प्रतिनिधित्व वहां की सुरक्षा परिषद के सचिव निकोलाई पी. करेंगे। उन्होंने कहा कि कजाकिस्तान की राष्ट्रीय सुरक्षा समिति के अध्यक्ष करीम मासीमोव अपने देश का प्रतिनिधित्व करेंगे जबकि किर्गिस्तान अपनी सुरक्षा परिषद के सचिव मरात मुकानोविच इमांकुलोव को भेज रहा है। ताजिकिस्तान की सुरक्षा परिषद के सचिव नसरुल्लो रहमतजोन महमूदजोदा और तुर्कमेनिस्तान के सुरक्षा मामलों के मंत्रिमंडल उपाध्यक्ष चार्मीरत काकलयेवविच अमावोव अपने-अपने देशों का प्रतिनिधित्व करेंगे। सुरक्षा अधिकारियों का संयुक्त रूप से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात करने का भी कार्यक्रम है। डोभाल अपने अतिथि समकक्षों के साथ द्विपक्षीय बैठक करेंगे। (न्यूज एजेंसी भाषा के इनपुट के साथ)
Source navbharattimes

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ