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पराली का धुआं कैसे 'सूंघ' लेते हैं वैज्ञानिक, बड़ी दिलचस्प है वो 'रातों की कहानी'

नई दिल्लीआपको भी यह सोचकर हैरानी होती होगी कि किस दिन कहां-कहां पराली जली है, यह पता कैसे चल जाता है? बिल्कुल सटीक जानकारी के अभाव में यह सोचकर खुद को संतुष्ट कर लेना होता होगा कि तकनीक के जमाने में क्या नहीं हो सकता। तो चलिए, हम आपको पक्की जानकारी देते हैं कि आखिर पराली जलाने की एक-एक घटना का पता सरकार को कैसे लग जाता है, वो भी बिना खेतों का चक्कर लगाए। तीन अमेरिकी सैटलाइट्स से मिलती है मदद कितनी दिलचस्प बात है कि देशभर के खेतों में जलती पराली के धुएं की गंध दिल्ली स्थित भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI) में वैज्ञानिकों का एक समूह 'सूंघ' लेता है। लेकिन कैसे? दरअसल, अमेरिका के तीन सैटलाइट्स हर रात भारत के ऊपर से गुजरते हैं। , टेरा MODIS और एक्वा MODIS नाम के ये सैटलाइट्स लाखों फीट ऊपर से ही खेतों का हाल ले लेते हैं। फिर आईएआरआई स्थित अंतरिक्ष से कृषि पारिस्थितिकी तंत्र की निगरानी और मॉडलिंग पर अनुसंधान के लिए निर्मित संघ (CREAMS - Consortium for Research on Agroecosystem Monitoring and Modelling from Space) प्रयोगशाला में बैठे वैज्ञानिक सैटलाइट्स के जुटाए आंकड़ों का विश्लेषण करते हैं। घंटों मेहनत करता है वैज्ञानिकों का दल वैज्ञानिकों का यह दल घंटों सैटलाइट द्वारा भेजी गई आग की घटनाओं की हर तस्वीर का आकलन करते हैं। फिर वो यह तय करते हैं कि पराली जलाने की तस्वीर कौन-कौन सी है और कौन-कौन से फोटो आग की अन्य घटनाओं के हैं। क्रीम्स लैबरेटरी के प्रभारी और प्रधान वैज्ञानिक विनय सहगल बताते हैं, 'उत्तर भारत में कई ईंट भट्ठे हैं और वहां जल रही आग की तस्वीरें भी सैटलाइट्स कैप्चर कर लेते हैं। इसी तरह, सोलर पार्क में लगे सोलर पैनल भी गरम होते हैं तो सैटलाइट्स को लगता है कि आग लगी है और वो इनकी भी तस्वीरें ले लेते हैं। देश में किसान भी खेतों में पराली के सिवा भी कई फसलों के अनुपयोगी अवयवों को जला देते हैं- जैसे उत्तर प्रदेश में नवंबर के आखिरी में गन्ने के खेतों में आग लगाई जाती है।' वो आगे कहते हैं, 'हालांकि, जंगल की आग कई घंटों से कई दिनों तक लगी रहती है जबकि धान की पराली 20 मिनट से एक घंटे में जलकर साफ हो जाती है।' यूं पता चल जाता है कौन सी आग पराली की, कौन अलग वैज्ञानिक तस्वीरों की ढेर में से पराली जलने की तस्वीरें छांटने के लिए सैटलाइट डेटा को GIS प्लैटफॉर्म पर डालते हैं जिसके पास ईंट भट्ठों और सोलर पार्क्स के लोकेशन रहते हैं। फिर 'क्रॉप मास्क' के जरिए उन इलाकों को अलग किया जाता है जहां धान की खेती नहीं होती है। अगर उन इलाकों से आग की तस्वीरें सैटलाइट ने भेजी हो तो उसे अलग कर दिया जाता है। सहगल के अनुसार, आगे की प्रक्रिया ताजा लगी आग और पुरानी आग की तस्वीरों को अलग करने की होती है। आईएआरआई के मुताबिक, इस वर्ष 15 सितंबर से 24 नवंबर तक पराली जलाने की पंजाब में 71,215, हरियाणा में 6,829 जबकि उत्तर प्रदेश में 3,436 घटनाएं हुईं। सहगल ने कहा, 'हालांकि, इस बार पिछले साल के मुकाबले पंजाब में पराली जलाने की घटनाएं कम हुईं, लेकिन जलाई गई पराली की मात्रा पिछले साल जितनी ही थी।'
Source navbharattimes

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