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योगी संसद में फूट-फूटकर रोए थे, पर उनसे पहले भी नेहरू के सामने निकले थे पूर्वांचल के MP के आंसू

गाजीपुर/लखनऊ पूर्वांचल एक्सप्रेस-वे... इस एक नाम ने विकास की रेस में पिछड़े रह गए उत्तर प्रदेश के दूर-दराज के इलाकों को हाइलाइट कर दिया है। सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच राजनीति भी तेज हो गई है। अपने-अपने कामों का क्रेडिट लेने की होड़ सी लग गई है। लेकिन एक दौर ऐसा भी था, जब इसी इलाके की बदहाली के आलम पर देश के सर्वोच्च सदन यानी कि संसद भवन में भावनाओं का ज्वार बह निकला था। तत्कालीन प्रधानमंत्री अपनी आंखों से छलकते आंसुओं को रोक नहीं पाए थे। उत्तर प्रदेश में अवध के बेल्ट से लेकर बिहार की सीमा से लगे पूर्वांचल के इलाके भी अब लखनऊ और दिल्ली से जुड़ जाएंगे। एक्सप्रेस-वे के उद्घाटन के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूर्वांचल के जिलों के पिछड़ेपन का मुद्दा भी उठाया। 340.8 किलोमीटर लंबे इस 6 लेन के एक्सप्रेस-वे के जरिए पूर्वांचल का भाग्य बदलने का दावा किया जा रहा है। लेकिन पहले सूरत-ए-हाल कुछ और था। हाल ऐसा कि एक सांसद फफक कर संसद में रो पड़ा था। गाजीपुर के गांवों और कस्बों में समाजवादी विचारधारा के नेता विश्वनाथ सिंह 'गहमरी' की चर्चा शुरू हो गई है। गहमरी, जो आजादी के बाद हुए दो चुनावों में हार के बाद 1962 में चुनकर लोकसभा पहुंचे थे। वह दौर भी था, जब पूर्वांचल के 'जन' की आवाज संसद में गूंजी तो प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु से लेकर हर किसी की आंखों में आंसू थे। गाजीपुर से सांसद रहे गहमरी ने संसद में पूर्वांचल की पीड़ा को बारीकी से उकेरा था। प्रधानमंत्री की मौजूदगी में उन्होंने एक घंटे तक ऐतिहासिक भाषण दिया। तब के अन्य सभी वक्ताओं ने भी अपना पूरा समय गहमरी को दे दिया था। हाल यह था कि ने क्षेत्र की कारुणिक तस्वीर उकेरी थी। उन्होंने गरीबी के आलम का वर्णन करते हुए कहा था कि भुखमरी की स्थिति तो ऐसी है कि एक बड़ी आबादी के लिए बैल के गोबर से छानकर निकला हुआ अनाज ही भोजन का एकमात्र सहारा था। इसके बाद आर्थिक और सामाजिक स्थिति के आकलन के लिए संसद में पटेल आयोग का गठन हुआ, जिसने पूर्वांचल के विकास की नींव तैयार की। चीनी मिलें और कताई मिलें शुरू की गईं। जरूरी संसाधन के साथ ही सड़कों के अभाव का हाल ऐसा था कि कई-कई किलोमीटर की यात्रा के लिए साइकल, बैलगाड़ी या फिर पैदल ही चलने का विकल्प था। खुद विश्वनाथ सिंह गहमरी एक गांव से दूसरे गांव तक जाने के लिए हाथों में लालटेन लिए हुए साइकल चलाते थे। राजनीति की शुरुआत में लोहिया और सम्पूर्णानंद के साथ समाजवादी विचारधारा रखने वाले गहमरी बाद में कांग्रेस से जुड़ गए। वह 1976 में निधन तक कांग्रेस का दामन ही थामे रहे। आज सांसदों और विधायकों को सदन में जाने और वहां जनता की आवाज बनने का समय नहीं रहता। पूर्वांचल को अलग राज्य घोषित करने से लेकर इसकी तरक्की के लिए न जाने कितनी बार कैसे-कैसे दावे किए गए, आंदोलन से लेकर चर्चा-परिचर्चा भी हुई लेकिन हालात नहीं बदले। इसकी बड़ी वजह यह थी कि यहां की आवाज को गहमरी के बाद उचित मंच पर मजबूती से रखने वाला कोई नहीं मिला। विश्वनाथ गहमरी के अलावा शायद ही किसी ने पूर्वांचल की पीड़ा को धरातल पर समझने और उसे दूर करने की दिशा में प्रयास किया हो। उनके भाषण के बाद ही आनन-फानन में पटेल आयोग का गठन हुआ। गहमरी की बातें और उनके प्रयास ऐसे थे कि इतने सालों के बाद लखनऊ से शुरू होकर गाजीपुर तक आ रहे पूर्वांचल एक्सप्रेस-वे पर जनता उनके ही सपनों को उड़ान भरते देख रहे हैं।
Source navbharattimes

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