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प्रस्तावना से समाजवादी शब्द हटाने के लिए राज्यसभा में आया बिल, विपक्ष के विरोध के बाद रुकी चर्चा

नई दिल्ली संविधान के प्रस्तावना से 'पंथनिरपेक्ष' और 'समाजवादी' शब्दों को हटाने की मांग बार-बार उठती रही है। बीजेपी के राज्यसभा सांसद ने भी इसे लेकर एक याचिका सुप्रीम कोर्ट में दे रखी है। उनका कहना है कि संसद को प्रस्तावना में संशोधन करने का अधिकार ही नहीं है। उधर, बीजेपी सांसद केजे अल्फोंस ने बीते शुक्रवार को राज्यसभा में इस संबंधी एक प्रस्ताव भी ला दिया। हालांकि, विपक्ष के विरोध के बाद इस पर चर्चा नहीं हो सकी और आसन पर बैठे उप-सभापति हरिवंश ने प्रस्ताव को रिजर्व रख लिया। बिहार में विपक्षी दल आरजेडी ने इसे 'चोरी' की संज्ञा देते हुए बीजेपी पर आरोप मढ़ा है। स्वामी ने कहा- SC में सुनवाई का इंतजार सबसे पहले, बीजेपी सांसद सुब्रमण्यन स्वामी की बात। उन्होंने सोमवार को ट्वीट करके बताया कि उन्हें अपने रिट पिटिशन पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई का इंतजार है। उन्होंने लिखा, 'मैंने पंथनिरपेक्ष और समाजवाद को हटाने की मांग की है क्योंकि संसद को प्रस्तावना में संशोधन का अधिकार ही नहीं है।' स्वामी ने ये बातें एक खबर को रीट्वीट करते हुए लिखी हैं। खबर जम्मू-कश्मीर और लद्दाख हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस पंकज मित्तल के बयान से जुड़ी है। जस्टिस मित्तल ने एक सम्मेलन में कहा कि 1976 में संविधान संशोधन के जरिए प्रस्तावना में समाजवाद और धर्मनिरपेक्ष जैसे शब्दों को जोड़ देने से भारत की आध्यात्मिक छवि को संकुचित कर दिया है। बीजेपी सांसद ने पेश किया बिल उधर, बीजेपी के ही राज्यसभा सांसद ने 3 दिसंबर को सदन में एक प्राइवेट मेंबर बिल पेशकर संविधान की प्रस्तावना से समाजवाद शब्द हटाने की मांग की। सांसद के बिल पेश करते ही विपक्ष ने आपत्ति दर्ज कराई, तब उप-सभापति हरिवंश ने सांसद अल्फोंस को विधेयक पर शुरुआती बयान देने से मना कर दिया। बाद में उपसभापति ने इस संविधान संशोधन बिल को रिजर्व रख लिया। आरजेडी सांसद ने किया विरोध दरअसल, विपक्ष की तरफ से आरजेडी सांसद मनोज झा राज्यसभा में मोर्चा संभाला। उन्होंने संसदीय नियम की धारा 62 का हवाला देकर कहा कि ऐसे प्राइवेट मेंबर बिल राष्ट्रपति की पूर्व सहमति के बिना सदन में पेश नहीं किए जा सकते। आरजेडी सांसद ने कहा, 'नियम 62 कहता है कि यदि कोई बिल संविधान संशोधन से जुड़ा है तो उसे राष्ट्रपति की पूर्व सहमति या सिफारिश के बिना पेश नहीं किया जा सकता है और सदस्य इस तरह की मंजूरी या सिफारिश को नोटिस के साथ संलग्न करेगा। बिल के बारे में सदन को एक मंत्री के माध्यम से सूचित किया जाएगा और नोटिस तब तक वैध नहीं होगा जब तक कि इस आवश्यकता का अनुपालन नहीं किया जाता है।' बीजेपी पर हमला उपसभापति ने नियम के संदर्भ में कहा कि चूंकि विधेयक को राष्ट्रपति की मंजूरी नहीं मिली है, इसलिए इस पर सदन में चर्चा की अनुमति नहीं दी जा सकती है। उपसभापति की तरफ से व्यवस्था मिलने पर बीजेपी सांसद ने उसका पालन किया और वो अपनी सीट पर बैठ गए। बाद में उपसभापति ने विधेयक को रिजर्व रख लिया। अब आरजेडी इसके बहाने सत्ताधारी बीजेपी पर हमले कर रही है। पार्टी प्रमुख लालू प्रसाद यादव और उनके पुत्र तेजस्वी यादव ने ट्वीट के जरिए चुपके से संविधान की आत्मा से छेड़छाड़ का आरोप लगाया।
Source navbharattimes

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