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इंदिरा गांधी का वो फैसला, जब यूपी के सीएम बनते-बनते रह गए संजय गांधी

लखनऊ 1980 के दौर की बात है, लखनऊ के अशोका रोड पर कांग्रेसी नेताओं की कई गाड़ियां खड़ी थीं। विधानसभा के दाहिने ओर से एक रास्ता लाल बहादुर शास्त्री भवन की ओर जाता था। ये इमारत यूपी के सीएम दफ्तर के रूप में जानी जाती थी। इमारत से कुछ दूर पर कुछ सरकारी बंगले थे, पेड़ों के झुंड थे और एक सफेद सी इमारत। बाहर बोर्ड पर जो नाम लिखा था, उससे पता चल रहा था कि ये कांग्रेस का यूपी दफ्तर है जिससे अगले कुछ वक्त तक यूपी की सरकार चलनी है। सड़क पर जो गाड़ियां खड़ी थीं, वो इसी सरकार के सीएम पद का चुनाव कराने आई थीं। इस रोज विधायक दल की मीटिंग थी, सबसे चर्चित नाम 34 साल के एक फायरब्रांड नेता का था, ये नाम था- संजय फिरोज गांधी। 1980 के उस साल कांग्रेस के विधायकों को यूपी का सीएम चुनना था। संजय को विधायक दल का नेता चुनने की सारी तैयारी हो गई थी, लेकिन विधायकों के तमाम फैसले लखनऊ के नेहरू भवन में बने और दिल्ली के सफदरजंग रोड के एक बंगले में खारिज हो गए। जिन संजय गांधी को यूपी का सीएम बनाने के लिए तमाम चार्टर्ड विमानों का इंतजाम हुआ था, वो अचानक से रेस से बाहर कैसे हुए ये कहानी दिलचस्प है। जनता दल (यू) के नेता केसी त्यागी बताते हैं, 'जनता पार्टी की टूट की वजह से 1980 में लोकसभा के लिए हुए मध्यावधि चुनाव में कांग्रेस पार्टी को बड़ी सफलता प्राप्त हुई। इंदिरा गांधी फिर से प्रधानमंत्री चुनी गईं। कांग्रेस के टिकट पर जो सांसद जीत कर आए थे, उनमें संजय गांधी की पसंद साफ दिख रही थी। उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, पंजाब सहित 10 राज्यों के विधानसभा चुनावों में भी कांग्रेस पार्टी बहुमत पा चुकी थी, लेकिन सबसे रोचक घटनाक्रम का केंद्र बिंदु उत्तर प्रदेश बना।' कांग्रेस को मिला था यूपी का दो तिहाई बहुमतकांग्रेस पार्टी को उत्तर प्रदेश में दो तिहाई बहुमत मिला था। दो तिहाई बहुमत मिला, लेकिन आलाकमान पुराने नेताओं पर दांव लगाने को तैयार नहीं था। उस वक्त सीएम पद के लिए जो दावेदार थे, जैसे कमलापति त्रिपाठी, हेमवती नंदन बहुगुणा, नारायण दत्त तिवारी, उनसे हटकर किसी नए चेहरे की तलाश थी। इस बीच संजय गांधी के मित्र अकबर अहमद डंपी ने संजय गांधी के नाम पर गोलबंदी शुरू कर दी, उन्होंने विधानमंडल दल की बैठक में संजय गांधी को मुख्यमंत्री चुने जाने का प्रस्ताव पारित कराया और सभी कांग्रेस विधायकों को चार्टर्ड प्लेन से दिल्ली तक ले गए। इंदिरा गांधी का फैसलादिल्ली के सफदरजंग रोड पर चहलकदमी बढ़ गई थी। सब जानते थे कि अगर संजय यूपी के सीएम बन गए तो दिल्ली के दरबार में इंदिरा के बाद उनके उत्तराधिकार का एक मजबूत विकल्प तैयार हो जाएगा। लेकिन संजय को मुख्यमंत्री बनाकर इंदिरा गांधी उनकी भूमिका सीमित नहीं करना चाहती थीं। केंद्र की राजनीति में अलग हो गए थे 'अपने'उस वक्त तक केंद्र की राजनीति में इंदिरा गांधी के भरोसेमंद माने जाने वाले तमाम नेता- यशवंतराव चव्हाण, बाबू जगजीवन राम, चंद्रजीत यादव, सरदार स्वर्ण सिंह, ब्रह्मानंद रेड्डी- उनसे अलग हो चुके थे। इंदिरा जानती थीं कि अगर संजय दूर हुए तो उनकी मुश्किलें बढ़ जाएंगी। एक लंबी उठापटक के बाद इंदिरा गांधी ने उत्तर प्रदेश विधानमंडल दल का फैसला नामंजूर कर दिया। नेताओं ने मान मनौव्वल की तो इंदिरा ने कहा- आप लोग दिल्ली में मुझे अकेला क्यों करना चाहते हैं। इसके बाद कम चर्चित चेहरे के रूप में वीपी सिंह को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाई गई।
Source navbharattimes

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