शो खत्म होते ही मोबाइल फोन की घंटी बज उठती थी। हर बार…मतलब हर बार। यह उतना ही निश्चित था जितना सोमवार के बाद मंगलवार का आना, जितना आग में तपिश का होना, जितना बहार में फूल का होना…। कॉल रिसीव करते ही टीवी न्यूज शो की समीक्षा शुरू हो जाती थी। कंटेंट से लेकर विजुअल तक, ग्राफिक्स से लेकर गेस्ट तक, सवालों से लेकर जवाबों तक…यहां तक कि शो के आखिर में चलने वाले गाने तक की। क्या कमाल का लगा, कहां कसर रह गई? एक फोन कॉल पर ही पूरी समीक्षा। वह ‘समीक्षक’ तो 6 महीने पहले ही ‘शो मैन’ को दुनिया में अकेला छोड़कर चली गईं। अब वह ‘शो मैन’ भी नहीं रहा…वह भी अपनी ‘समीक्षक’ के पास चला गया। Source navbharattimes
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