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भारतीय जासूस जो पहचान बदल पाकिस्तानी सेना का मेजर तक बना, 'द ब्लैक टाइगर' की अद्भुत कहानी

नई दिल्ली भारत का एक ऐसा जासूस जो नाम बदलकर, पहचान बदलकर पाकिस्तान में रहा। पाकिस्तान आर्मी में शामिल हुआ। मेजर रैंक तक पहुंचा। वहीं पर प्यार में पड़ा, शादी भी की लेकिन भारत के ही भेजे एक दूसरे जासूस की वजह से पकड़ा गया। आखिरकार सालों तक रोंगटे खड़े कर देने वाली यातनाओं के बाद पाकिस्तान की ही एक जेल में आखिरी सांस ली। कहानी भारत के उस महान जासूस 'रविंद्र कौशिक' की जिन्हें भारतीय खुफिया गलियारों में 'द ब्लैक टाइगर' के नाम से जाना जाता था। महान जासूस किसी दूसरे देश में जाकर जासूसी कोई ऐसी बात नहीं जो चौंका सके। लेकिन जासूसी के लिए लिए किसी दूसरे देश की सेना में शामिल हो जाना वाकई दंग करने वाला है। रविंद्र कौशिक ने इसे मुमकिन बनाया था जो बात उन्हें हिंदु्स्तान का अबतक का सबसे महान जासूस बनाता है। दो दशक पहले आई मलय कृष्ण धर की किताब 'Mission to Pakistan : An Intelligence Agent in Pakistan' इसी 'ब्लैक टाइगर' पर आधारित है। सलमान खान की 2012 में आई फिल्म 'एक था टाइगर' रविंद्र कौशिक से ही प्रेरित थी। चर्चा तो यह भी है कि अब राजकुमार कुमार गुप्ता कौशिक की बायोपिक बनाने जा रहे हैं जिसमें उनकी भूमिका में एक बार फिर सलमान खान दिखेंगे। यातनाएं सहते गए मगर जुबां नहीं खोली रविंद्र कौशिक की जिंदगी के आखिरी 18 साल पाकिस्तान की अलग-अलग जेलों में भीषण यातनाओं में गुजरे। रोंगटे खड़े कर देने वाली यातनाओं को सहते रहे लेकिन दिल में दफन राज को राज ही रहने दिया। वे राज जो खुल जाते तो भारतीय खुफिया नेटवर्क को बहुत धक्का लगता, भारत को बड़ा झटका लगता। बदकिस्मती...मौत के बाद नसीब नहीं हो सकी वतन की मिट्टी पकड़े जाने के बाद पाकिस्तान में उन्हें मौत की सजा सुनाई गई जो बाद में उम्र-कैद में तब्दील कर दी गई। जिंदगी के आखिरी 2 साल बहुत दर्दनाक रहे। जेल में ही टीबी ने उन्हें जकड़ लिया और एक दिन जेल में ही उनकी मौत हो गई। बदकिस्मती देखिए, वतन के लिए जिसने अपनी हस्ती मिटा दी, मौत के बाद उन्हें वतन की मिट्टी तक नसीब नहीं हुई। उनका पार्थिव शरीर हिंदुस्तान नहीं लाया जा सका। भारत सरकार पर आरोप लगते रहे हैं कि कौशिक के पाकिस्तान में पकड़े जाने के बाद सरकार ने उनसे पल्ला झाड़ लिया। उन्हें छुड़ाने की कोशिश ही नहीं की गई। हालांकि, सच यह भी है कि पकड़े जाने पर अक्सर जासूस का कोई वतन नहीं होता। उसका अपना ही उसे अपना मानने से इनकार कर देता है। जासूसी की दुनिया की यह कड़वी हकीकत है। पूरी दुनिया में यही दस्तूर है। राजस्थान के श्रीगंगानगर में जन्म रविंद्र कौशिक का जन्म 11 अप्रैल 1952 को राजस्थान के सरहदी जिले श्रीगंगानगर में हुआ था। 1965 की भारत-पाक जंग के वक्त यह लड़का अभी किशोरावस्था में कदम रख ही रहा था। जवानी में कदम रखते-रखते ये युवा 1971 की भारत-पाकिस्तान जंग का भी गवाह बना। इस वजह से कच्ची उम्र से ही देशभक्ति का जज्बा मजबूत होता गया। पिता एयर फोर्स में अधिकारी थे लिहाजा देश के लिए मर-मिटने का जज्बा विरासत में मिला था। थिअटर ने बना दिया जासूस! कौशिक की शुरुआती पढ़ाई श्रीगंगानगर के एक सरकारी स्कूल में हुई। इंटरमीडिएट के बाद उन्होंने वहां के एसडी बिहानी कॉलेज में बी. कॉम. में दाखिला लिया। रविंद्र कौशिक को अभिनय और मिमिक्री का बहुत शौक था। 21 साल की उम्र में लखनऊ में नेशनल थिअट्रीकल फेस्टिवल में भी हिस्सा लिया। उनका भारतीय खुफिया एजेंसी R&AW (रिसर्च ऐंड ऐनालिसिस विंग) में जाना भी एक संयोग था। कहा जाता है कि कॉलेज में ही किसी नाटक में उनके अभिनय पर R&AW के अधिकारी की नजर पड़ी। जीवंत अभिनय से अधिकारी बहुत प्रभावित हुआ और इस तरह कौशिक के जासूसी की दुनिया में जाने की बुनियाद पड़ी। 1973 में R&AW का हिस्सा बने 1973 में बी. कॉम. पूरा करने के बाद एक दिन कौशिक ने अपने पिता को बताया कि वह दिल्ली जा रहे हैं, नौकरी करने। 23 साल की उम्र में वह R&AW से जुड़ गए। दिल्ली आने के बाद R&AW के साथ उनकी 2 साल की कड़ी ट्रेनिंग हुई। वह पहले से ही पंजाबी बोलने में माहिर थे। ट्रेनिंग के दौरान उन्हें उर्दू सिखाई गई। मुस्लिम रीति-रिवाज सिखाए गए। पाकिस्तान का इतिहास-भूगोल दिल-दिमाग में बसाया गया। वह सबकुछ सिखाया गया जिससे वह पाकिस्तान में पाकिस्तानी बनकर रह सकें। कौशिक नई चीजों को बहुत तेजी से सीखते-समझते थे। ट्रेनिंग के दौरान जल्द ही उन्होंने पाकिस्तान के बारे में किसी औसत पाकिस्तानी से बेहतर समझ पैदा कर ली। शुरुआत में उन्हें कुछ समय के लिए दुबई और अबू धाबी भेजा गया। नबी अहमद शाकिर के रूप 'नया जन्म', असल पहचान के सारे रेकॉर्ड नष्ट 1975 में R&AW ने रविंद्र कौशिक से जुड़े सभी आधिकारिक इंडियन रेकॉर्ड्स को नष्ट कर दिया गया। कौशिक को नया नाम और नई पहचान दी गई- नबी अहमद शाकिर, नागरिकता- पाकिस्तानी, पता- इस्लामाबाद। यहां तक कि खतना भी कराया गया। नए नाम और नई पहचान के साथ उन्हें पाकिस्तान भेजा गया। लॉ की पढ़ाई और पाकिस्तानी सेना में बतौर अफसर एंट्री पाकिस्तान पहुंचकर रविंद्र कौशिक उर्फ नबी अहमद शाकिर ने कराची यूनिवर्सिटी से बाकायदे LLB की पढ़ाई पूरी की। पाकिस्तान खासकर सेना के भीतर की गोपनीय और संवेदनशील सूचनाओं के लिए अगर सेना में ही भर्ती हो जाया जाए तो काम बहुत आसान हो जाएगा। यह सोचकर कौशिक ने पाकिस्तानी सेना में भर्ती होने का रास्ता चुना। लॉ की पढ़ाई के बाद उन्होंने पाकिस्तानी सेना में धमाकेदार एंट्री ली। मिलिटरी अकाउंट्स डिपार्टमेंट में बतौर कमिशंड अधिकारी। मेजर रैंक तक पहुंचे। पाकिस्तानी लड़की से इश्क, फिर शादी पाकिस्तानी सेना में रहते हुए रविंद्र कौशिक को वहां की एक लड़की अमानत से इश्क हो गया। अमानत के पिता आर्मी की एक यूनिट में दर्जी का काम करते थे। दोनों ने शादी भी कर ली। कौशिक के पकड़े जाने से पहले तक अमानत कभी नहीं जान पाई कि उसका हमसफर नबी अहमद शाकिर नहीं, रविंद्र कौशिक है, पाकिस्तानी सेना में अफसर लेकिन भारत का जासूस, एक भारतीय नागरिक। पाकिस्तानी सेना में रहकर संवेदशील सूचनाएं भारत भेजी, 'द ब्लैक टाइगर' नाम मिला पाकिस्तानी सेना में रहते हुए रविंद्र कौशिक ने तमाम ऐसी गोपनीय और संवेदनशील जानकारियां भेजी तो भारत के बहुत काम आए। वह वो वक्त था जब दोनों देशों के बीच तनाव चरम पर था। भारत के खिलाफ पाकिस्तान जो भी नापाक साजिश रचता, भारत को पहले ही भनक लग जाती और पड़ोसी की चाल नाकाम हो जाती। इंडियन डिफेंस सर्कल में कौशिक 'द ब्लैक टाइगर' के नाम से मशहूर हो गए। कहा जाता है कि उन्हें यह नाम खुद तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने दिया था। ऐसे खुला राज कौशिक असल पहचान छिपाकर पाकिस्तान में पढ़ाई पूरी किए, वहां की सेना में भर्ती हुए, अंदर की एक से बढ़कर एक खुफिया जानकारियां भारत भेजी लेकिन कभी भी किसी को उन पर रत्ती भर शक नहीं हुआ। 1983 में उनका राज खुला लेकिन खुद की गलती से नहीं। दरअसल, रॉ ने एक और जासूस इनायत मसीहा को कौशिक से संपर्क में रहने के लिए भेजा था। मसीहा पाकिस्तानी खुफिया अधिकारियों के हत्थे चढ़ गया और पूछताछ में वह टूट गया। उसने मेजर नबी अहमद शाकिर का राज भी खोल दिया। पाकिस्तानी अधिकारियों ने मसीहा को रविंद्र कौशिक को एक पार्क में बुलाने को कहा। जब मसीहा के बुलाने पर कौशिक उस पार्क में पहुंचे तो उन्हें जासूसी के आरोपों में गिरफ्तार कर लिया गया। तब उनकी उम्र 29 साल थी। अगले दो सालों तक भयंकर यातनाएं दी गईं। यह तक लालच दिया गया कि अगर वह भारतीय सेनाओं की गोपनीय जानकारी दे दें तो उन्हें आजाद कर दिया जाएगा। कौशिक यातना सहते रहे लेकिन अपना मुंह नहीं खोला। 1985 में उन्हें मौत की सजा सुनाई गई जिसे बाद में उम्रकैद में बदल दिया गया। पाकिस्तान की जेलों में यातनाएं रविंद्र कौशिक को कभी सियालकोट तो कभी कोट लखपत तो कभी मियांवाली जेल में रखा गया। वहां उन्हें टॉर्चर किया जाता था। पर्याप्त खाना तक नहीं दिया जाता था। उन्हें टीबी ने जकड़ लिया। नवंबर 2001 में उनकी टीबी और दिल का दौरा पड़ने से मौत हो गई। उनका शव भी भारत नहीं आ सका। बेटे की मौत के सदमे में उनके पिता की भी हार्ट अटैक से मौत हो गई। कुर्बानी का यह कैसा सिला...जब खत में छलका था दर्द द टेलिग्राफ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, पाकिस्तान की जेल में रहते हुए वह चुप-चुपकर अपने परिवार को खत लिखा करते थे। गिरफ्तारी के बाद भारत सरकार ने जिस तरह से उन्हें 'त्याग' दिया था, उससे वह काफी दुखी थे। ऐसे ही एक खत में उनका दर्द छलका था, 'क्या भारत जैसे बड़े देश के लिए कुर्बानी देने वालों को यही मिलता है?' हिंदुस्तान टाइम्स की एक पुरानी रिपोर्ट में उस खत का भी जिक्र है जिसे उन्होंने अपनी मौत से महज 3 दिन पहले लिखा था। उन्होंने लिखा था, 'अगर मैं अमेरिकी होता तो मैं तीन दिन के भीतर ही इस जेल से निकल चुका होता।' परिवार ने भारत सरकार से कई बार लगाई गुहार रविंद्र कौशिक की पाकिस्तान की जेल से रिहाई के लिए परिवार ने 1987 से लेकर कौशिक की मौत तक कई बार सरकार से गुहार लगाई। हर बार यही जवाब मिलता था कि केस को पाकिस्तान के साथ उठाया जा चुका है। मौत के बाद भी परिवार ने उनके योगदान को मान्यता दिलाने के लिए सरकारों को लिखा। परिवार ने भारत सरकार पर आरोप लगाया कि उसने कभी भी कौशिक को जेल से छुड़वाने की कोशिश नहीं की। मानवीय आधार पर भी नहीं। ऐसे ही एक खत में उनकी मां अलदादेवी ने सरकार पर आरोप लगाया था, 'जब वह मर रहे थे तो उन्हें दवाइयां भी नहीं पहुंचाई गईं। जबकि उनकी भेजी सूचनाओं ने अपने देश के लिए कम से कम 20 हजार जवानों की जान बचाईं होंगी।' उनके परिवार को सरकार से हर महीने महज 500 रुपये की मदद मिलती थी जो बाद में 2000 रुपये हो गई। 2006 में कौशिक की मां अमलादेवी की मौत के बाद वह मदद भी बंद कर दी गई। सरकार से मान्यता अलग बात है लेकिन रविंद्र कौशिक भारतीय इतिहास में अपना नाम स्वर्ण अक्षरों से लिखवा गए। इस 'ब्लैक टाइगर' के बिना महान जासूसों की हर लिस्ट अधूरी होगी।
Source navbharattimes

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