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अगड़ों और पिछड़ों दोनों के लिए 8 लाख की लिमिट लेकिन कैलकुलेशन का तरीका अलग, जानिए डीटेल

नई दिल्लीकेंद्र सरकार ने 2019 में आर्थिक रूप से पिछड़े सवर्णों को भी आरक्षण देने का फैसला किया तो पिछड़ेपन का आधार 8 लाख रुपये की सालाना आय को तय किया गया। इस नियम के तहत जिस सवर्ण परिवार की सालाना आमदनी 8 लाख रुपये तक है, उसके उम्मीदवारों को ही शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश और नौकरियों में आरक्षण की सुविधा मिलती है। उधर, अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) में क्रीमी लेयर का निर्धारण भी 8 लाख रुपये की सालाना आय के आधार पर ही होता है। यानी, अगर ओबीसी कैंडिडेट के माता-पिता का एनुअल इनकम 8 लाख रुपये से अधिक है तो उसे आरक्षण का लाभ नहीं मिलेगा। बाहर से समान, लेकिन सच्चाई बिल्कुल अलग इस तरह, ईडब्ल्यूएस और ओबीसी, दोनों में क्रीमी लेयर तय करने का 'समान मापदंड' रखे जाने पर आपत्तियां जताई जाने लगीं। सुप्रीम कोर्ट ने भी सरकार से पूछ दिया कि इसे कैसे स्वीकार किया जा सकता है? ऐसे में सरकार ने एक समिति का गठन किया जिसने अपनी रिपोर्ट में स्पष्ट कर दिया कि 8 लाख रुपये का मानदंड बाहर से तो दोनों वर्गों, ओबीसी और ईडब्ल्यूएस के लिए बराबर दिखता है, लेकिन सच्चाई बिल्कुल अलग है। उसने बताया कि दोनों के लिए भले ही मानदंड 8 लाख रुपये हो, लेकिन इसकी गणना में जमीन-आसमान का अंतर है। आइए पहले जानते हैं कि वो अंतर क्या-क्या हैं... 1. ईडब्ल्यूएस के लिए 8 लाख रुपये के कट ऑफ का मानदंड ओबीसी क्रीमी लेयर की तुलना में बहुत अधिक कठोर हैं। 2. ईडब्ल्यूएस की आय का पैमाना तय करते वक्त परिवार के दायरे में तीन पुश्तें आती हैं जबकि ओबीसी के मामले में सिर्फ माता-पिता का इनकम ही देखा जाता है। 3. ओबीसी की आमदनी का आकलन करते वक्त वेतन, खेती और पारंपरिक कारीगरी के व्यवसायों से होने वाली आय नहीं जोड़ा जाता है जबकि ईडब्ल्यूएस के लिए खेती सहित सभी स्रोतों से आय शामिल की जाती है। 4. ओबीसी कैंडिडेट के सिर्फ माता-पिता की लगातार तीन वर्षों से 8 लाख रुपये से ज्यादा की सालाना आय हो रही हो तब वह क्रीमी लेयर कहलाता है जबकि ईडब्ल्यूएस के तीन पुश्तों की कुल आय मिलाकर सिर्फ पिछला साल ही 8 लाख रुपये से ज्यादा हो जाए तो उसे आरक्षण नहीं मिलेगा। आइए, अब इन सभी बिंदुओं को विस्तार से समझते हैं... पहला बिंदु- केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) के निर्धारण के लिए 8 लाख रुपये आय का मापदंड ओबीसी क्रीमी लेयर की तुलना में कहीं अधिक सख्त है। दूसरा बिंदु- गरीब सवर्णों के लिए पारिवारिक आय के तहत खुद उम्मीदवार, उसके माता-पिता, 18 वर्ष से कम उम्र के उसके भाई-बहन, उसके जीवनसाथी और 18 वर्ष से कम उम्र के उसके बच्चों की आय, सभी शामिल हैं। मतलब, आर्थिक पिछड़ों की पारिवारिक आय में तीन पुश्तों की मिलीजुली आमदनी शामिल है। इसमें खेती-किसानी से होने वाली आयकर मुक्त आमदनी भी जोड़ी जाती है। इनकम टैक्स स्लैब्स के नजरिए से आर्थिक पिछड़े वर्ग की आय की गणना करते वक्त इनका ध्यान रखना ही होगा। वहीं, ओबीसी के पारिवारिक आय की गणना में सिर्फ कैंडिडेट के माता-पिता की आमदनी शामिल होती है। उसमें भी माता-पिता की सैलरी, खेती और परंपरागत व्यवसाय से हुई आमदनी को नहीं जोड़ा जाता है। खुद कैंडिडेट, उसके भाई-बहन, जीवनसाथी और बच्चों की आमदनी को तो जोड़ने की चर्चा तक नहीं है। तीसरा बिंदु- सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि सबसे पहले ईडब्ल्यूएस की शर्त आवेदन के वर्ष से पहले के वित्तीय वर्ष से संबंधित है जबकि अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) में क्रीमी लेयर के लिए आय मानकों की शर्तें लगातार तीन वर्षों के लिए सकल वार्षिक आय (Gross Annual Income) पर लागू होती है। सुप्रीम कोर्ट का सवाल दरअसल, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने 7 अक्टूबर, 2021 को कहा था, 'आर्थिक पिछड़ापन एक सच्चाई है। इसमें कोई संदेह नहीं कि लोगों के पास किताबें खरीदने और यहां तक कि खाने के पैसे भी नहीं हैं। लेकिन, जहां तक बात आर्थिक पिछड़ों का है तो वो अगड़ा वर्ग हैं और उनमें सामाजिक या शैक्षणिक पिछड़ापन नहीं है। तो क्या आप क्रीमी लेयर तय करने के लिए 8 लाख रुपये की सालाना आय का पैमाना आर्थिक पिछड़ों के लिए भी रख सकते हैं? याद रखिए कि जहां तक बात आर्थिक पिछड़ों की है तो हम सामाजिक या शैक्षणिक पिछड़ों की बात नहीं कर रहे हैं। सीमा तय करने का आधार क्या है या आपने आर्थिक पिछड़ों के लिए भी बस क्रीमी लेयर का पैमाना उठाकर रख दिया।' सरकार ने मानी समिती की सिफारिश सुप्रीम कोर्ट की इस टिप्पणी पर सरकार ने 30 नवंबर, 2021 को पूर्व वित्त सचिव अजय भूषण पाण्डेय, भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICSSR) के प्रफेसर वीके मल्होत्रा और केंद्र सरकार के प्रधान आर्थिक सलाहकार संजीव सान्याल की एक कमिटी बना दी। कमिटी को गरीब सवर्णों की आय सीमा निर्धारित करने के लिए 2019 में बनाए गए नियमों की समीक्षा करने का दायित्व सौंपा गया। कमिटी ने 31 दिसंबर को अपनी रिपोर्ट सौंप दी। सरकार ने इस रिपोर्ट को स्वीकार भी कर ली है। समिति ने समझाया- आमदनी की गणना में कितना अंतर समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि सुनने में भले ही ओबीसी और आर्थिक पिछड़े, दोनों के लिए 8 लाख रुपये की सीमा में समानता जान पड़ती हो, लेकिन सच्चाई बिल्कुल अलग है। ओबीसी का क्रीमी लेयर सिर्फ उम्मीदवार की आय के आधार पर तय होता है जबकि आर्थिक पिछड़ों की आय सीमा में उम्मीदवार के साथ-साथ उसकी पारिवारिक और कृषि आय भी भी शामिल हैं। समिति ने कहा कि सिर्फ उन्हीं परिवारों के उम्मीदवारों को आर्थिक पिछड़ा श्रेणी के आरक्षण का लाभ दिया जा सकता है जिनकी सालाना आमदनी 8 लाख रुपये तक है। उसने कहा कि 17 जनवरी, 2019 को जारी ऑफिस मेमोरेंडम में दर्ज आर्थिक रूप से पिछड़े सवर्ण परिवार की परिभाषा को ही आगे भी लागू रखा जाए। कमिटी ने इसे और भी स्पष्ट करते हुए कहा, 'मौजूदा आयकर नियमों के तहत पांच लाख रुपये तक की सालाना आय पर कोई टैक्स नहीं लगता है। फिर कटौतियों (Deductions), बचत (Savings), बीमा (Insurances) आदि सभी प्रावधानों का उपयोग कर लिया जाए तो 7-8 लाख रुपये तक की सालाना आय टैक्स फ्री हो जाती है। इस तरह, गरीब सवर्णों के लिए 8 लाख की व्यक्तिगत सालाना आय का निर्धारण टैक्स फ्री इनकम की सीमा के अनुकूल किया गया है। हालांकि, इसमें पारिवारिक और कृषि आय को जोड़ते ही सारा माजरा बदल जाता है।' मकान की शर्त खत्म, 5 एकड़ जमीन की शर्त बरकरार वर्ष 2019 में बने नियमों के तहत मकान को आय सीमा से बाहर रखने की ही सिफारिश की गई है। कमिटी ने कहा कि आय सीमा की गणना को सरल बनाए रखने के लिए आवासीय संपत्ति क्षेत्र (Residential Asset Area) यानी मकान के पैमाने को बाहर ही रखा जाए क्योंकि इससे किसी की असल आर्थिक स्थिति का जायजा नहीं मिलता है। ऊपर से गरीब सवर्ण परिवारों पर इसका गंभीर दुष्परिणाम और बेवजह बोझ देखने को मिलेगा। हालांकि, परिवार के पास 5 एकड़ कृषि योग्य भूमि होने पर आर्थिक पिछड़ा नहीं माने जाने का पैमाना बरकरार रखे जाने की सिफारिश की है। रिपोर्ट में कहा गया है, 'विभिन्न भौगोलिक क्षेत्रों- ग्रामीण, शहरी, मेट्रो या राज्यों के लिए अलग-अलग आय सीमाएं होने से जटिलताएं पैदा होंगी, विशेष रूप से यह देखते हुए कि लोग नौकरियों, पढ़ाई, बिजनस आदि के लिए देश के एक हिस्से से दूसरे हिस्से में तेजी से बढ़ रहे हैं। अलग-अलग क्षेत्रों के लिए आय की भिन्न-भिन्न सीमाएं सरकारी अधिकारियों और आवेदकों दोनों के लिए एक दु:स्वप्न के समान होगा।' सुप्रीम कोर्ट ने भी आर्थिक पिछड़े उम्मीदवारों की आय सीमा में आवासीय संपत्तियों को जोड़ने पर घोर आपत्ति जाहिर की है। शीर्ष अदालत ने कहा कि शहरी और ग्रामीण इलाकों के आधार पर आवासीय संपत्ति की कीमत में भारी अंतर हो जाता है। ऐसे में इस संपत्ति को भी आय के दायरे में ला दिया गया तो गरीब सवर्णों को आरक्षण का लाभ उठाने के लिए नाकों चने चबाना पड़ेगा।
Source navbharattimes

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