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700 शहादत, टिकैत के आंसू.. बदला लेने के लिए डालेंगे वोट, UP चुनाव पर कितना असर डालेगा किसान आंदोलन?

लखनऊः केंद्र सरकार के कृषि कानून (Farm Bills) के खिलाफ तकरीबन एक साल तक चले () को यूपी चुनाव () से ठीक पहले 'खत्म' करवा लिया गया। सरकार ने कृषि कानून को वापस ले लिया और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) ने इसके लिए कारण बताया कि वह किसानों को बिल के फायदे समझाने में सफल नहीं हो सके। कृषि कानूनों की वापसी को किसान आंदोलन की जीत बताया गया। मुजफ्फरनगर के सिसौली गांव के रहने वाले किसान नेता राकेश टिकैत आंदोलन के अंतिम चरण के हीरो बनकर उभरे। किसान आंदोलन का असर यूं तो पंजाब और हरियाणा में ज्यादा था। उत्तर प्रदेश में वेस्ट यूपी के किसानों ने जोर-शोर से इसमें हिस्सा लिया था। ऐसे में माना जा रहा है किसान नेता चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत के बेटे राकेश टिकैत के इलाके के आसपास तक ही किसान आंदोलन चुनाव में असर डालेगा। हालांकि, वेस्ट यूपी के जिलों आगरा, मथुरा, अलीगढ़ और बुलंदशहर में जैसे लोगों को किसान आंदोलन याद भी नहीं हैं। चुनाव यात्रा पर निकली नवभारत टाइम्स की टीम को हापुड़ से किसान आंदोलन पर बात करने वाले लोग मिलते हैं। विधायक से नाराज किसान हापुड़ के गढ़मुक्तेश्वर में एक युवक बताते हैं कि यहां पर किसान आंदोलन का कोई असर नहीं है। किसान आवारा पशुओं से परेशान हैं लेकिन किसान आंदोलन से संवेदना रखने वाले लोग यहां कम हैं। मेरठ के सरधना इलाके में एक युवक बताते हैं कि यहां कई गांवों के तमाम किसान आंदोलन में शामिल होने के लिए गए थे। स्थानीय बीजेपी विधायक से किसान नाराज भी इसीलिए हैं क्योंकि उन्होंने किसान आंदोलन का विरोध किया था। इसके अलावा उन्होंने खाद की महंगाई और गन्ना के भुगतान को भी किसानों की नाराजगी की वजह बताई। मुजफ्फरनगर की बुढ़ाना सीट पर कसेरवा नाम का गांव है। यहां ईदगाह के सामने 90 बीघा खेत के मालिक एक बुजुर्ग ने कहा कि योगी आदित्यनाथ सरकार ने किसानों के लिए कुछ नहीं किया। उन्होंने 5 साल में गन्ना के दाम सिर्फ 25 रुपये बढ़ाए। मायावती ने अपने शासनकाल में 80 रुपये बढ़ाए थे। बीजेपी की सरकार में पेट्रोल-डीजल भी महंगा हुआ। बुजुर्ग ने कहा कि पश्चिम उत्तर प्रदेश में बागपत, मुजफ्फरनगर और शामली में 16 सीटें हैं। ये सभी सीटें आरएलडी के खाते में जाने वाली हैं। उन्होंने बताया कि इन तीन जिलों में किसान आंदोलन का जबर्दस्त असर है। हम बातचीत कर ही रहे थे कि वहां पर गांव के पूर्व प्रधान भी पहुंच आते हैं। जब उनसे कृषि कानून पर बात की जाती है तो वह बीजेपी पर भड़क जाते हैं। वह कहते हैं कि वे तो जमीन लेने आए थे। वे लोग अपनी मर्जी से फसल बोते और बाद में उसे खराब कह देते। अभी हमारी मर्जी है। हम अपने हिसाब से फसल बोते हैं। वह बताते हैं कि उन्होंने किसान आंदोलन में हिस्सा लिया था। वह एक साल तक वहां टिके रहे थे। इसी गांव में बहस के दौरान एक युवक ने कहा कि किसान आंदोलन के दौरान 700 किसानों ने जान गंवा दी। इस वजह से बीजेपी सरकार के खिलाफ लोगों को गुस्सा है। इसलिए ही वे लोग आरएलडी को वोट देने जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि आंदोलन के समय राकेश टिकैत रो पड़े थे। अब उनके आंसुओं का बदला लेने के लिए वे लोग इस बार वोट देने जा रहे हैं। फर्जी थे आंदोलन में शामिल किसान? सरधना के अटेरना गांव के रहने वाले रवि कुमार के लिए किसान आंदोलन में शामिल किसान फर्जी थे। उन्होंने कहा कि जिन लोगों ने कृषि बिल के खिलाफ आंदोलन किया था, वो किसान थे ही नहीं। उन्होंने कहा कि हम भी किसान हैं और हमें फुर्सत ही नहीं है कि हम धरना देते फिरें। उन्होंने यह भी कहा कि वे लोग किसान नहीं थे लेकिन किसानों के मुद्दे पर प्रदर्शन कर रहे थे। उनकी कुछ मांगें सही थीं लेकिन सभी नहीं। रवि कुमार कहते हैं कि उनके गांव में किसान आंदोलन का असर नहीं है और ज्यादातर किसान बीजेपी को वोट देने वाले हैं। मुजफ्फरनगर के अपने आवास पर किसान नेता राकेश टिकैत से मुलाकात हुई। हमने उनसे पूछा कि क्या उत्तर प्रदेश के चुनाव में किसान आंदोलन असर करेगा या यह मुजफ्फरनगर के आसपास के कुछ जिलों तक ही सीमित रहेगा। इस पर टिकैत कहते हैं कि किसान आंदोलन 'करंट' की तरह यूपी चुनाव में असर करेगा। उन्होंने यह भी कहा कि 13 महीने के आंदोलन के बाद सभी राजनीतिक पार्टियों ने किसानों के मुद्दों पर बात करना शुरू कर दिया, यह भी किसान आंदोलन का ही असर है। आरएलडी को संजीवनी किसान आंदोलन की वजह से वेस्ट यूपी की कई सीटों पर राष्ट्रीय लोकदल को संजीवनी मिली है। माना जा रहा है कि वेस्ट यूपी के किसान आंदोलन के बाद वापस आरएलडी के पक्ष में लामबंद हुए हैं। पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह के वंशजों की पार्टी के बढ़ते प्रभाव का ही असर था कि समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने आरएलडी के साथ गठबंधन कर चुनाव में उतरने का फैसला लिया है। दोनों एक साथ वेस्ट यूपी के तमाम जिलों में प्रचार करने जा रहे हैं। यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ भले यह कह रहे हों कि किसान आंदोलन का असर यूपी के चुनाव पर नहीं पड़ने वाला है लेकिन बीजेपी के बड़े नेताओं खासतौर पर अमित शाह के जाटों को लुभाने के प्रयास में सत्ताधारी दल की आशंका साफतौर पर दिखती है।
Source navbharattimes

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