अफगानिस्तान के काबुल में 22 अक्टूबर,1937 को जन्मे कादर खान ने अपने शानदार अभिनय से कई दशकों तक लोगों का मनोरंजन किया और अपने शुरुआती समय में उन्होंने कई सारी फिल्मों में निगेटिव रोल किए साथ ही उन्होंने कॉमेडी में भी अपना हाथ आजमाया था। दोनों की तरह के रोल्स में कादर खान को पसंद किया गया।
कादर खान ने 1973 में आई फिल्म 'दाग' से एक्टिंग करियर की शुरुआत की थी। हालांकि, कादर खान का काबुल से मुंबई तक पहुंचने का सफर इतना आसान भी नहीं था। बचपन से ही उन्हें और उनके परिवार को कई मुसीबतें झेलनी पड़ी थीं। उनका बचपन काफी गरीबी में गुजरा बावजूद इसके उन्होंने कभी हार नहीं मानी।
कादर खान का परिवार उस समय भारत आया जब वह केवल छह महीने के थे। उन्हें बॉम्बे में लाया गया। कठिन परिस्थितियों के बावजूद मुंबई के एम एच साबू सिद्दीक कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग में सिविल इंजीनियरिंग के प्रोफेसर बने। हालाँकि, उनका असली जुनून स्टेज था। उन्होंने कम उम्र से ही रंगमंच में रुचि दिखानी शुरू कर दी थी।
कादर खान कॅरियर की शुरुआत में यहूदी कब्रिस्तान में जाते थे ताकि अपनी डायलॉग लाइनों की प्रैक्टिस कर सके, जहां उन्हें सुनने वाला कोई ना था। एक दिन खान ने पाया कि कोई उसे कब्रिस्तान में देख रहा है। यह अशरफ खान थे, जिन्होंने कादर खान को उसी समय एक रोल ऑफर किया।
उनके जिंदगी का ये किस्सा काफी दिलचस्प है। कादर खान बचपन में रात के वक्त कब्रिस्तान जाते थे। कादर खान मुंबई में अपने घर के पास वाले कब्रिस्तान में जाकर रियाज किया करते थे। एक रोज कादर खान का रियाज जारी था कि तभी टॉर्च की रोशनी उनके चेहरे पर पड़ी। टॉर्च जलाने वाले इंसान ने कादर खान से पूछा कि तुम यहां क्या कर रहे हो? कादर खान ने सीधा जवाब दिया, "रियाज कर रहा हूं। मैं दिन में जो भी अच्छा पढ़ता हूं, रात में यहां आकर उसका रियाज करता हूं।" कादर खान से सवाल करने वाले शख्स थे अशरफ खान। अशरफ खान, कादर खान से प्रभावित हुए और उनसे पूछा। "नाटक में काम क्यों नहीं करते हैं काम करोगे? और इस तरह कादर खान के नाटक में काम करने का सफर शुरू हुआ।
कादर खान ने जब 1977 में मुकद्दर का सिकंदर लिखी तो इसमें एक अहम सीन है। जब बच्चा कब्रिस्तान में जाकर रोता है। वहां एक फकीर से उसकी मुलाकात होती है। इस सीन को कादर खान ने अपनी असल जिंदगी से ही लिया था. खुद उन्होंने एक इंटरव्यू में इस बात का खुलासा किया था।
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फिल्म 'दाग' से पर्दे पर कदम रखने वाले कादर साहब ने 300 से ज्यादा फिल्मों में काम किया। इसके अलावा 1000 हिंदी और उर्दू फिल्मों का संवाद लेखक भी रह चुके हैं। उन्होंने हिंदी सिनेमा में सबसे ज्यादा फिल्में अभिनेता गोविंदा निर्देशक डेविड धवन के साथ की है। उन्होंने कभी दर्शकों को कॉमेडी से गुदगुदाया तो कभी विलेन बन लोगों को डराया। कादर खान जो भी भूमिका निभाते हैं उसमे उसी तरह रम जाते थे।
पर्दे पर उनकी आंखों में आंसू देखकर दर्शक रोता था, उनकी कॉमेडी से सिनेमा हॉल हंसी से गुंजता था, उनके लिखे डायलॉग को सुनकर तालियां पिटती थीं। न जाने कितने अभिनेताओं को उन्होंने सिनेमा का सरताज बनाया लेकिन जिंदगी के अंतिम दिनों में उनकी सुध लेने वाला कोई नहीं था। आखिरी दिनों में कादर खान को चलने और बोलने में भी बेहद तकलीफ थी। 31 दिसंबर, 2018 को 81 साल की उम्र में कनाडा के टोरंटो में उनका निधन हो गया था।
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