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पहले कई जगहों पर पुरुषों का दबदबा था, अब ऐसा नहीं: सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट () ने महाराष्ट्र के अधिकारियों की ओर से ऑर्केस्ट्रा बार () में महिला और पुरुष कलाकारों की संख्या को चार-चार तक सीमित करने की शर्त को खत्म कर दिया है। न्यायालय ने कहा कि लैंगिक रूढ़ियों पर आधारित नियमों का समाज में कोई स्थान नहीं है। न्यायमूर्ति के. एम. जोसेफ और न्यायमूर्ति एस. रवींद्र भट की पीठ ने बंबई उच्च न्यायालय के फैसले को खारिज करते हुए कहा कि लैंगिक आधार पर सीमा तय करना एक ऐसा रूढ़िवादी दृष्टिकोण प्रतीत होता है कि बार और पतिष्ठानों में अपनी कला का प्रदर्शन करने वाली महिलाएं समाज के एक निश्चित वर्ग से संबंधित होती हैं। उच्च न्यायालय ने ऑर्केस्ट्रा बार के मंच पर केवल चार महिलाओं और चार पुरुष गायकों या कलाकारों को रखने संबंधी लाइसेंस शर्त के खिलाफ याचिका खारिज कर दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह सीमा सीधे तौर पर संविधान के अनुच्छेद 15 (1) और अनुच्छेद 19 (1) (जी) के तहत कलाकारों के साथ-साथ लाइसेंस मालिकों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करती है। पीठ ने कहा इस तरह के रवैये का हमारे समाज में कोई स्थान नहीं है, हाल के घटनाक्रम ने उन क्षेत्रों को उजागर किया है जिन पर अब तक विशेष तौर पर पुरुषों का वर्चस्व माना जाता था जैसे कि सशस्त्र बलों में रोजगार लेकिन अब ऐसा नहीं है। यह भी माना गया था कि आयुक्त को ऑर्केस्ट्रा बार के संचालन के लिए आवश्यक शर्तों को जारी करने की स्वतंत्रता दी गई थी, इसलिए उच्च न्यायालय ने यह मानते हुए रिट याचिकाओं को खारिज कर दिया था।
Source navbharattimes

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