हिंदी सिनेमा में गुजरे दौर में कई बेहतरीन अभिनेता हुए हैं। फिल्मों में लीड एक्टर्स के अलावा सहायक और साइड रोल निभाने वाले कलाकारों को भी ख़ूब लोकप्रियता हासिल हुई है। हिंदी सिनेमा में कई सालों तक साइड और सहायक भूमिकाएं निभाकर ही दिवंगत अभिनेता ओमप्रकाश लोकप्रिय हुए थे। ओमप्रकाश का जन्म 19 दिसंबर 1919 को जम्मू में हुआ था। शुरू से ही फ़िल्मी दुनिया की ओर उनका रुझान था। महज 12 साल की उम्र में उन्होंने संगीत की शिक्षा लेनी शुरू कर दी थी। करीब पांच दशक तक ओमप्रकाश ने बड़े पर्दे पर अपनी अदाकारी का जादू बिखेरा। वे अपनी कमाल की कॉमिक टाइमिंग के लिए पहचाने गए।
ओमप्रकाश को ‘दासी’ फिल्म के जरिये पहला ब्रेक मिला, इसके बाद उन्होंने मुड़कर नहीं देखा। ओमप्रकाश ने अपने करियर में आजाद,मिस मैरी, हावड़ा ब्रिज, दस लाख, प्यार किए जा, खानदान, साधु और शैतान, गोपी, दिल दौलत दुनिया समेत कई फिल्मों में काम किया। हर फिल्म में उनका किरदार पहले से जुदा होता था। वे डायरेक्टर भी रहे। राजकपूर और नूतन जैसे स्टार्स को उन्होंने ‘कन्हैया’ में डायरेक्ट किया था।
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ओम प्रकाश की लव स्टोरी भी किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं थी. एक इंटरव्यू में उन्होंने बताया था कि एक बार उन्हें एक सिख लड़की से प्यार हो गया था लेकिन लड़की के घरवाले उनके खिलाफ थे क्योंकि वह हिंदू थे. उनकी मां लड़की के घर बात करने भी गई लेकिन उसके घरवाले नहीं माने। एक दिन ओमप्रकाश पान की दुकान पर खड़े थे तभी एक विधवा महिला आई और अपनी बड़ी बेटी से शादी करने के लिए ओमप्रकाश से मिन्नतें करने लगी। ओमप्रकाश की आत्मकथा के मुताबिक महिला ने कहा कि वो विधवा हैं और उनकी चार बेटियां हैं जिनमें सबसे बड़ी 16 साल की है। वो मुझे दामाद बनाना चाहती थीं। इस बारे में मेरी मां से भी उनकी बात हो चुकी थी। उन्होंने मेरे आगे अपना पल्लू फैलाया और विनती की कि मैं उनकी बेटी से शादी कर लूं। फिर क्या था मैंने अपने प्यार को भुला दिया और उस महिला की लड़की से शादी कर ली।
एक्टिंग के साथ-साथ ओम प्रकाश ने फिल्म निर्माण में भी हाथ आजमाया। ओमप्रकाश ने ही फिल्मों में गेस्ट रोल का चलन शुरू किया था। उन्होंने 60 के दशक में फिल्म संजोग, जहांआरा और गेटवे आफ इंडिया जैसी फिल्में बनाईं। आखिरी दिनों में वे बीमार रहने लगे थे और जानते थे कि नहीं बचेंगे। ओम प्रकाश को दिल का दौरा पड़ने पर उन्हें मुंबई में ही लीलावती अस्पताल ले जाया गया, जहां वह कोमा में चले गए। 21 फरवरी, 1998 को उन्होंने आखिरी सांस ली।
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