मिड-डे मील योजना को मुफ्तखोरी नहीं समझना चाहिए। स्वास्थ्य, शिक्षा जैसे बुनियादी क्षेत्रों से जुड़ी योजनाओं को भी रेवड़ी संस्कृति के तौर पर नहीं देखा जा सकता। इस मुद्दे पर मतदाताओं के साथ भी बहस और संवाद चाहिए। आखिर देश के मतदाता भारतीय नीति निर्माताओं से लंबे समय से निराश हैं कि वे लोगों के जीवन में वास्तविक सुधार के बदले अल्पकालिक लाभ देने की राह पर बढ़ रहे हैं। Source navbharattimes
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