यक्ष प्रश्न है कि दलित सक्रियता भी इसी समय क्यों दिखती है? दलित कभी एक जज बनाने या कुलपति बनाने के लिए क्यों नहीं इकट्ठा होते? एक जज की कलम से पूरा आरक्षण प्रभावित हो जाता है। एक विश्वविद्यालय के कुलपति से कितने प्राध्यापक भर्ती किए जा सकते हैं और छात्रों का तो भला होगा ही। Source navbharattimes
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