यह तो होना ही था!’- हमारे समय के महान किस्सागो गार्सिया गैब्रील मारखेज की अद्भुत प्रेम गाथा ‘लव इन द टाइम ऑफ कॉलरा’ की शुरुआत इस उद्घोषणा के साथ होती है। लेखक प्रेम की अदम्य जिजीविषा से इस कदर आश्वस्त था कि उसके नायक की लंबी प्रतीक्षा अंत में अपने प्रिय को हासिल कर के ही रहेगी कि उसने अपने उपन्यास की शुरुआत ही इस पंक्ति से की। मैं अपने इस निराशावाद को क्या कहूं कि मुझे मलियाना नरसंहार पर आए हालिया अदालती फैसले को लेकर यही वाक्य याद आया। फर्क था तो सिर्फ इतना कि यहां प्रेम की नहीं बल्कि राज्य की ओर से की गई हिंसा पर निर्णय आना था और उसे सुनते ही बरबस मेरे मुंह से निकला- यह तो होना ही था। Source navbharattimes
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