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अगर कोई आपकी तुलना में 70% कार्यक्षमता से काम कर सकता है, तो उसे करने दें; हर चीज के लिए मैं-मैं चीखना बंद करें और अपनी टीम पर भरोसा करें

आपका नजरिया मानसिक चश्मा है, जिससे आप जिंदगी देखते हैं। अगर ये चश्मे गंदे होंगे तो दुनिया गंदी दिखेगी। जिनके चश्मे खूबसूरत हैं, उनके लिए दुनिया खूबसूरत है। ‘मैं बस आंखों देखी पर भरोसा करता हूं’, यह बेकार मिसाल है। सच यह है कि ‘जब आप विश्वास करेंगे, तब ही दिखेगा।’ आपको वह दिखेगा, जो आप देखना चाहते हैं। समस्या को देखने का तरीका ही समस्या है। आपको नए नजरिए की जरूरत है। इन्हीं मानसिक चश्मों में एक ऐसा चश्मा है जो दुनिया को हर क्षेत्र में आगे बढ़ा रहा है।

यह है प्रबुद्ध इंसानों का मानना कि ‘हमेशा एक बेहतर तरीका होता है…’ और इसका उदाहरण है ‘प्रयासों की किफायत’ (इकोनॉमी ऑफ एफर्ट)। यह प्रयास के मोल के बारे में नहीं है। बल्कि इसका मतलब है ‘अधिकतम प्रयास से न्यूनतम नतीजों’ के जीवन से निकलकर ‘न्यूनतम प्रयास से अधितकतम नतीजे पाने’ के जीवन की ओर बढ़ना। यह अपने अहम को संतुष्ट करने के लिए गैरजरूरी प्रयास और मेहनत से खुद को मुक्त करना है। यानी हर प्रयास में ज्यादा कार्यक्षमता और असर होना, ताकि बहुत कुछ कर सकें।

यह सब शुरू होता है चीजें पुन: व्यवस्थित करने से। हर चीज के लिए एक जगह और हर चीज अपनी जगह पर। फिर हर चीज के लिए तय समय और हर चीज अपने समय पर। इसके लिए अनुशासन की जरूरत है, किसी उपकरण की नहीं। एक मूर्ख, उपकरण के साथ भी मूर्ख रहता है। जैसे रविवार को सुबह 6 से 8 अध्ययन करना है, वीकेंड ‘टेक्नोलॉजी फ्री’ रखकर परिवार के साथ समय बिताना है, रोज सुबह योग करना है आदि तय करना। मेरे अनुशासित घंटों के बाहर कुछ भी गैर-अनुशासित हो सकता है। ये तरीके ही ‘प्रयासों की किफायत’ हैं।

अगर कोई आपकी कार्यक्षमता की तुलना में 70% कार्यक्षमता से काम कर सकता है, तो उसे करने दें। हर चीज के लिए ‘मैं, मैं, मैं’ चीखना बंद करें और काम बांटें। अपनी टीम पर भरोसा करें। वह कभी न करें, जो दूसरे कर सकते हैं। हो सकता है आप उस काम में दूसरों से 10 गुना बेहतर हों, लेकिन आप 10 लोगों का काम नहीं कर सकते। इसलिए उस पर ध्यान दें जो आप अकेले कर सकते हैं। यही ‘प्रयासों की किफायत’ है।

जीवन के दोहराए जाने वाले कामों को चेकलिस्ट से व्यवस्थित करें। जैसे अगर आप अक्सर सफर करते हैं तो एक ट्रैवल चेकलिस्ट रखें। जब दोहराई जाने वाली चीजों के क्रम को कागज पर उतार लेते हैं तो इन्हें याद नहीं रखना पड़ता और दिमाग सोचने के लिए मुक्त रहता है। यह ‘प्रयासों की किफायत’ है।

हर गलती के बाद उस तंत्र को ठीक करें जो जिसकी वजह से यह गलती हुई। गलतियों को सीखने का अवसर बनाएं। आप गलतियां नहीं रोक सकते, लेकिन उनका दोहराव रोक सकते हैं। यह भी ‘प्रयासों की किफायत’ है।

सभी के जीवन में एक चिंता का चक्र होता है और एक प्रभाव का। चिंता चक्र यह है कि दुनिया में सबको शिक्षित होना चाहिए। प्रभाव चक्र यह सुनिश्चित करना है कि नौकर की बेटी की शिक्षा का खर्च आप उठाएं। चिंता चक्र यह है कि ‘बाकी लोग ऐसे क्यों हैं?’ प्रभाव चक्र यह है कि ‘मैं वह बदलाव बनूंगा, जो मैं देखना चाहता हूं।’

प्रभाव चक्र पर जितना ध्यान देंगे यह उतना ही बढ़ेगा। इस तरह आप ज्यादा से ज्यादा करने में सक्षम होंगे। अगर आपका ध्यान चिंता चक्र पर होगा तो प्रभाव चक्र छोटा होता जाएगा, जिसका मतलब है कि जो पहले संभव था, वह भी असंभव हो जाएगा। कुल मिलाकर मतलब यह है कि आप जहां हैं, वहीं से शुरुआत करें और फिर ऐसा समय आएगा, जब आप अपनी चिंता पर भी प्रभाव डाल सकेंगे।

जितना जरूरी वह काम करना है, जो होना ही चाहिए, उतना ही जरूरी है वह काम न करना, जिसे नहीं किया जाना चाहिए। जैसे उस काम में 10 महीने खर्च करने का कोई अर्थ नहीं, जिसे 10 दिन में कर सकते हैं। इसी तरह जो काम 10 महीने का है, उसे 10 दिन में करने की कोशिश भी मूर्खता है।

कार्यों में बुद्धिमत्ता ही प्रयासों की किफायत है। काम की प्रक्रिया में उत्कृष्टता लाए बिना नतीजे उत्कृष्ट नहीं हो सकते। इसलिए हमेशा पूछिए, ‘मैं प्रक्रिया कहां सुधार सकता हूं?’ और ‘मैंने कहां प्रक्रिया में सुधार किया?’ इन तरीकों से ही न्यूनतम प्रयास में अधिकतम नतीजे पा सकते हैं।



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Source http://bhaskar.com

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