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जानिए, गणेशजी को दूर्वा क्यों चढ़ाते हैं, घर में दाईं ओर सुंड वाले गणेशजी और बाहर बाईं ओर सुंड वाले गणेशजी क्यों स्थापित करना चाहिए

आज गणेश चतुर्थी है। प्राचीन समय में इसी तिथि पर भगवान गणेश प्रकट हुए थे। गणेश उत्सव भादौ मास शुक्ल पक्ष की चतुर्थी से अनंत चतुर्दशी (इस साल 22 अगस्त से 1 सितंबर) तक मनाया जाता है। भगवान गणेश से जुड़ी कई मान्यताएं प्रचलित हैं, जैसे गणपति को दूर्वा, मोदक, लड्डू विशेष प्रिय हैं, घर में सीधी हाथ की ओर सूंड वाले गणेश स्थापित करना चाहिए, लक्ष्मी और सरस्वती के साथ गणेश पूजा करनी चाहिए। उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा से जानिए ऐसी ही 9 मान्यताओं से जुड़े सवालों के जवाब...

1. गणपति को दूर्वा क्यों चढ़ाते हैं?

दूर्वा एक प्रकार की घास है, जो गणेशजी को पूजा में चढ़ाई जाती है। गणेशजी और दूर्वा के संबंध में अनलासुर नाम दैत्य की कथा प्रचलित है। कथा के अनुसार सभी देवता और मनुष्य अनलासुर के आतंक से त्रस्त थे। तब देवराज इंद्र, सभी देवी-देवता और प्रमुख ऋषि-मुनि महादेव के पास पहुंचे। शिवजी ने कहा कि ये काम सिर्फ गणेश ही कर सकते हैं। इसके बाद सभी देवता और ऋषि-मुनि भगवान गणेश के पास पहुंचे।

देवी-देवताओं और सभी प्राणियों की रक्षा के लिए गणपति अनलासुर से युद्ध करने पहुंचे। तब इन दोनों के बीच घमासान युद्ध हुआ। अनलासुर पराजित ही नहीं हो रहा था, तब भगवान गणेश ने उसे पकड़कर निगल लिया। इसके बाद उनके पेट में बहुत जलन होने लगी।

भगवान गणेश के पेट की जलन शांत करने के लिए कश्यप ऋषि ने दूर्वा की 21 गांठें बनाकर उन्हें खाने के लिए दी। जैसे ही उन्होंने दूर्वा खाई, उनके पेट की जलन शांत हो गई। तभी से भगवान गणेश को दूर्वा चढ़ाने की परंपरा प्रारंभ हुई।

2. गणपति, लक्ष्मी और सरस्वती एक साथ क्यों पूजे जाते हैं?

भगवान गणेश, लक्ष्मी और सरस्वती की एक साथ पूजा खासतौर पर दीपावली पर की जाती है। दीपावली सुख-समृद्धि का पर्व माना जाता है। इस दिन गणेश यानी बुद्धि, लक्ष्मी यानी धन और सरस्वती यानी ज्ञान की पूजा एक साथ की जाती है। क्योंकि, बिना बुद्धि के ज्ञान नहीं आ सकता और बिना ज्ञान के लक्ष्मी अर्जित नहीं की जा सकती। इस लिए लक्ष्मी पूजन में भगवान गणेश को भी पूजा जाता है। गणेश पुराण और शिव पुराण में भी ये कहा गया है कि लक्ष्मी की पूजा गणपति के बिना अधूरी है, बिना बुद्धि के देवता के शुद्ध लक्ष्मी का आगमन नहीं हो सकता।

3. गणपति मूषक (चूहे) पर सवार क्यों?

सतयुग में एक असुर मूषक (चूहे) के रूप में पाराशर ऋषि के आश्रम में पहुंच गया और पूरा आश्रम कुतर-कुतर कर नष्ट कर दिया था। आश्रम के सभी ऋषियों ने गणेशजी के प्रार्थना की कि इस मूषक के आतंक को खत्म करें। तब गणेशजी वहां प्रकट हुए। उन्होंने मूषक को काबू करने की बहुत कोशिशें की, लेकिन वह काबू में नहीं आया।

अंत में गणेशजी ने अपना पाश फेंककर मूषक को बंदी बना लिया। तब मूषक ने गणेशजी से प्रार्थना की कि मुझे मृत्यु दंड न दें। गणेशजी ने उसकी प्रार्थना स्वीकार कर ली और वर मांगने के लिए कहा। मूषक का स्वभाव कुतर्क करने का था, उसने कहा कि मुझे कुछ नहीं चाहिए, आप ही मुझसे कुछ मांग लीजिए।

तब गणेशजी उसके कुतर्क पर हंसे और कहा कि तू मुझे कुछ देना चाहता है तो मेरा वाहन बन जा। मूषक इसके लिए राजी हो गया, लेकिन जैसे ही गणेशजी उसके ऊपर सवार हुए तो वह दबने लगा। उसने फिर गणेशजी के प्रार्थना की कि कृपया मेरे अनुसार अपना भार करें। तब गणेशजी ने मूषक के अनुसार अपना भार कर लिया। तब से मूषक गणेशजी का वाहन है।

इसका मनौवैज्ञानिक पक्ष यह है कि गणेशजी बुद्धि के देवता हैं और मूषक कुतर्क का प्रतीक। कुतर्कों को बुद्धि से ही शांत किया जा सकता है। इसीलिए गणेशजी को चूहे पर सवार दर्शाया जाता है।

4. गणपति को तुलसी क्यों नहीं चढ़ाते हैं?

भगवान विष्णु और उनके अवतारों को तुलसी के बिना भोग नहीं लगाया जाता है, लेकिन भगवान गणेश की पूजा में तुलसी वर्जित मानी गई है। एक पौराणिक कथा है कि तुलसी ने भगवान गणेश से विवाह करने की प्रार्थना की थी, लेकिन गणेशजी ने मना कर दिया। इस वजह तुलसी क्रोधित हो गईं और उसने गणेशजी को दो विवाह होने का शाप दे दिया।

इस शाप की वजह से गणेशजी भी क्रोधित हो गए और उन्होंने भी तुलसी को शाप देते हुए कहा कि तुम्हारा विवाह एक असुर से होगा। असुर से विवाह होने का शाप सुनकर तुलसी दुःखी हो गई। तुलसी ने गणेशजी से क्षमा मांगी। तब गणेशजी ने कहा तुम्हारा विवाह असुर से होगा, लेकिन तुम भगवान विष्णु को प्रिय रहोगी। तुमने मुझे शाप दिया है, इस वजह से मेरी पूजा में तुलसी वर्जित ही रहेगी।

5. गणेशजी का एक दांत टूटा क्यों है?

गणपति को एकदंत भी कहते हैं यानी इनका एक ही दांत है। एक दांत कैसे टूटा इस संबंध में प्रचलित कथा के अनुसार एक दिन भगवान विष्णु के अवतार परशुराम शिवजी के मिलने कैलाश पर्वत पहुंचे। भगवान गणेश ने परशुराम को शिवजी से मिलने से रोक दिया। क्योंकि, उस समय शिवजी विश्राम कर रहे थे। इस बात क्रोधित होकर परशुराम ने अपने फरसे से गणेशजी का दांत काट दिया था।

गणेशजी परशुराम का प्रहार रोक भी सकते थे, लेकिन शिवजी ने ही परशुराम को ये फरसा भेंट दिया था। फरसे का प्रहार खाली न जाए, इसीलिए गणेशजी ने इस वार को अपने दांत पर झेल लिया और दांत टूट गया। इसके बाद गणेशजी का एक दांत होने की वजह से एकदंत कहलाए।

6. गणपति का पूजन सबसे पहले क्यों किया जाता है?

भगवान गणेश प्रथम पूज्य देव हैं, ये वर शिवजी ने उन्हें प्रदान किया है। एक कथा है, कार्तिकेय स्वामी और गणेश के बीच शर्त लगी कि कौन सबसे पहले पृथ्वी का चक्कर लगाकर आता है। कार्तिकेय स्वामी का वाहन मोर है। वे उस पर सवार होकर निकल गए। गणेशजी ने सोचा कि मेरा वाहन चूहा है, मैं इतनी जल्दी लौटकर आ नहीं सकूंगा। तब वे माता-पिता को ही पूरा लोक मानकर शिवजी और माता पार्वती की परिक्रमा करने लगे। गणेशजी की बुद्धि और मातृ-पितृ भक्ति से प्रसन्न होकर शिवजी ने उन्हें प्रथम पूज्य होने का वरदान दे दिया।

7. गणेशजी को क्यों प्रिय है मोदक और लड्डू?

भगवान गणेश को मोदक और लड्डू को भोग विशेष प्रिय माना गया है। एक बार माता पार्वती ने गणेशजी को खाने के लिए लड्डू दिए। लड्डू भगवान को इतने पसंद आए कि ये उनका प्रिय भोग बन गया। एक अन्य कथा के अनुसार माता अनसूया ने गणेशजी को अपने यहां भोजन के लिए आमंत्रित किया था। उस समय वे खाना खाते ही जा रहे थे, लेकिन उनका पेट नहीं भर रहा था। इससे परेशान होकर माता अनसूया ने मोदक बनाए। मोदक ग्रहण करते ही गणेशजी तृप्त हो गए। तभी से उन्हें मोदक का भोग लगाने की परंपरा प्रचलित हुई है।

8. गणपति की दाईं और बाईं ओर वाली सूंड का क्या महत्व है?

जिस प्रतिमा में गणेश की सूंड दाईं ओर होती है, उसे सिद्धिविनायक का स्वरूप माना जाता है। जबकि, बाईं तरफ की सूंड वाले गणेश को विघ्नविनाशक कहते हैं। सिद्धिविनायक को घर के अंदर स्थापित करने की परंपरा है। विघ्नविनाशक घर के बाहर द्वार पर स्थापित करते हैं, ताकि घर के अंदर किसी तरह के विघ्न प्रवेश न करें। व्यापारिक प्रतिष्ठानों के लिए बाईं हाथ की ओर सूंड वाले और घर के लिए सीधे हाथ की ओर सूंड वाले गणपति श्रेष्ठ माने जाते हैं।

9. गणपति के हाथ में अंकुश क्यों है?

सतयुग में भगवान गणेश ने पांच प्रमुख दैत्यों को पराजित किया था। ये दैत्य पांच बुराइयों का प्रतीक माने गए हैं। अहंतासुर अंहकार का, कामासुर काम का प्रतीक था, क्रोधासुर क्रोध का, मायासुर माया का और लोभासुर लोभ का प्रतीक था। इन सभी असुरों को गणेशजी ने अंकुश को काबू किया था। इसका अर्थ यह है कि गणेश के दर्शन-पूजन करनें से हम काम, क्रोध, माया और लोभ जैसी बुराइयों से बच सकते हैं। हमें भी अपने मन पर अंकुश लगाकर अंहकार, काम, क्रोध, माया और लालच को काबू करना चाहिए।



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Source http://bhaskar.com

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