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PL Santoshi की बरसी पर विशेष, जो ढल गया सो भुला दिया

-दिनेश ठाकुर
नर्मदा नदी के किनारे बसे जबलपुर (मध्यप्रदेश) में भेड़ाघाट प्रमुख पर्यटन स्थल है। संगमरमर की चट्टानों और धुआंधार जल प्रपात का आकर्षण शोमैन राज कपूर को मुम्बई से भेड़ाघाट खींच लाया था। उनकी 'जिस देश में गंगा बहती है' का लोकप्रिय गीत 'ओ बसंती पवन पागल' भेड़ाघाट में फिल्माया गया। साहित्य जगत अगर जबलपुर को सुभद्रा कुमारी चौहान, हरिशंकर परसाई और भवानी प्रसाद मिश्र के शहर के तौर पर जानता है तो कई फिल्मी हस्तियां भी इसी शहर की देन हैं- प्रेमनाथ, राजेंद्रनाथ, जॉन कवास, याकूब, रघुवीर यादव, अर्जुन रामपाल आदि। प्यारेलाल श्रीवास्तव का जन्म भी जबलपुर में हुआ, जो फिल्मों में पी.एल. संतोषी ( PL Santoshi ) के नाम से पहचाने गए। यूं तो बतौर निर्देशक उन्होंने कई फिल्में बनाईं, लेकिन 'वसुधैव कुटुम्बकम्' की थीम पर 'हम पंछी एक डाल के' (1957) ने उन्हें अमर कर दिया। मुक्तिबोध ने कहा था- 'यह महत्त्वपूर्ण नहीं है कि कोई क्या बोल रहा है। महत्त्वपूर्ण यह है कि किस ऊंचाई से बोल रहा है।' इस लिहाज से 'हम पंछी एक डाल के' पी.एल. संतोषी की सृजनात्मक ऊंचाई वाली फिल्म है। इसके बाद अगर वे कोई और फिल्म नहीं बनाते, तब भी भारतीय सिनेमा के इतिहास में उनका नाम सुनहरे अक्षरों में दर्ज रहता।

पी.एल. संतोषी ने इस विचार को बड़े सलीके और सहजता से 'हम पंछी एक डाल के' में उभारा कि बच्चों की अपनी अलग मासूम दुनिया होती है- स्वार्थ, जाति, धर्म, भेदभाव और सियासी सरहदों से परे। कई हिस्सों में मार्मिक कविता जैसी इस फिल्म को बाल फिल्म के तौर पर प्रचारित किया गया, लेकिन यह बड़ों को भी शांति और भाईचारे का संदेश देती है। यह पहली बाल फिल्म है, जिसे नेशनल अवॉर्ड से नवाजा गया। इसके संवाद और गीत खुद संतोषी ने लिखे थे। इससे पहले अपनी 'शहनाई' (1947) और 'शीन शिनाकी बूबला बू' (1952) के गीत भी उन्होंने लिखे। इनमें 'मार कटारी मर जाना कि अंखियां किसी से मिलाना ना', 'आना मेरी जान संडे के संडे', 'तुम क्या जानो तुम्हारी याद में हम कितना रोए' आदि अपने जमाने में काफी लोकप्रिय थे और आज भी हैं। निर्देशक के रूप में 'बरसात की रात' (1960) और 'दिल ही तो है' (1963) संतोषी की सबसे कामयाब फिल्में हैं। इन फिल्मों में उन्होंने राज कपूर, मधुबाला, नूतन और भारत भूषण जैसे बड़े सितारों के साथ काम किया। देव आनंद के साथ वे 'हम एक हैं' (1946) पहले ही बना चुके थे।

हर मशहूर हस्ती का सपना होता है कि उसकी संतान को उससे भी ज्यादा शोहरत हासिल हो। अफसोस, पी.एल. संतोषी यह सपना साकार होने से पहले 7 सितम्बर, 1978 को दुनिया से रुखसत हो गए। उनके पुत्र राजकुमार संतोषी निर्देशक की हैसियत से 'घायल' (1990) के जरिए सुर्खियों में आए। बाद में 'नरसिम्हा', 'घातक', 'दामिनी' बनाने वाले राजकुमार संतोषी को मलाल है कि उनके पिता के आखिरी दिन तंगहाली में गुजरे। उस दौर में गुजर-बसर के लिए पी.एल. संतोषी को छद्म नाम से दक्षिण की डब फिल्मों के संवाद लिखने पड़े, क्योंकि हिन्दी फिल्म इंडस्ट्री उन्हें भुला चुकी थी।



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