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विधायक सब पर कितना खर्च होता है! ऊ सब पैसा में कटौती कर दें तो नौकरी देने का पैसा खुदे निकल जाएगा!

मनोज और अमर दो दोस्त हैं। दोनों पटना में रहकर तैयारी करते हैं। बैंक, एसएससी और अन्य परीक्षाओं की। कुछ देर पहले बुक स्टॉल पर दोनों दोस्त से मुलाकात हुई। कंकड़बाग में अपने तरह की यह अकेली दुकान है, जहां इतनी सारी किताबें मिलती हैं। राजेन्द्र नगर पुल से पहले साईं हॉस्पिटल वाली गली में। इस दुकान में आपको ‘हंस’ से लेकर ‘तद्भव’ भी मिलेगा और करेंट अफेयर्स की सारी किताबें भी। दोनों दोस्तों ने पहले तो किताबें पलटीं। फिर बातचीत शुरू कर दी।

अमर ने कहा- ‘इस बार जो भी सरकार बनेगी, लगता है नौकरी की बहार देगी। जदयू ही मुंह दाबे हुई है। हिसाब-किताब समझा रही है। तेजस्वी को सुने कि नहीं, कहे हैं कि पहली कैबिनेट मीटिंग में ही 10 लाख स्थायी सरकारी नौकरी देंगे। सब ठेकावाली बहाली को स्थायी भी कर देंगे।’

मनोज ने कहा, ‘ऐसा हो जाए तो गरदा न हो जाएगा। लेकिन घोषणा पत्र है, चुनाव के बाद क्या होगा, कौन जानता है।’ अमर ने कहा सरकार कि पार्टी हिसाब जोड़ रही है। बोल रही है कि ई सब बहाली में रुपए खर्च हो गया तो राज्य का विकास ही ठप हो जाएगा।

मनोज ने विरोध किया- ‘यार हर किसी के लिए विकास का मतलब अलग-अलग है। देखते नहीं हो पटना में खाली पुले-पुल है। ऊपरे-ऊपरे निकल जाओ कहीं से।’ अमर ने जोड़ा, ‘ऊ फोर लेन क्या जबर्दस्त बना है यार। रेल लाइन को उखाड़ के बनाया गया है। पूरा राजीव नगर, इंद्रपुरी, पटेल नगर सब का किस्मते बदल गया है।’

अमर बोला, ‘हां सुने हैं कि साइकिल का भी ट्रैक होगा फोरलेन पर। इससे प्रदूषण भी कम होगा। पटना ऐसे जाड़े के दिन में देश में नंबर वन प्रदूषण वाला शहर बन जाता है। जानते हो न, एक जज साहब थे पटना में जस्टिस रवि रंजन। उनको यह बात खूब खटकती थी कि सचिवालय कर्मियों के लिए चलने वाली ट्रेन खाली जाती थी। इसके लिए ट्रेन जाते समय हड़ताली मोड़ पर ट्रैफिक भी बंद कर दिया जाता था। उन जस्टिस महोदय की पहल का ही असर है कि यहां फोरलेन सड़क है। हां इसमें मुख्यमंत्री का विजन भी जरूर शामिल है।' मनोज ने टोका, ‘छोड़ ऊ सब, ई बताव कि किसकी सरकार बनेगी?’

अमर खिसियाया- ‘हम बेजान दारुवाला (प्रसिद्ध ज्योतिष विज्ञानी) हैं क्या, जो भविष्य बता दें। अपना भविष्य पते नहीं है और सरकार किसकी बनेगी, ई बताएं। देखो जिसकी भी बनेगी, अच्छा है कि रोजगार का सवाल उठा है, हम बेरोजगारों का सवाल उठा है, पलायन का सवाल उठा है। मजाक है क्या, नौकरी न चाकरी और तमाशा दुनियाभर का। जानते हो कुछ, विधायक सबको पेंशन मिलता है। विधायक अगर प्रोफेसर हुआ और रिटायर कर गया और विधान सभा चुनाव हार भी गया तो दूनों जगह से पेंशन लेगा।’

अमर ने कहा- ‘ई नेता सब मिलके सबका पेंशन खा गया और अपने लेते रहता है। रेलगाड़ी का भाड़ा फ्री, हवाई जहाज फ्री, हेल्थ इंश्योरेंस भी पूरा परिवार का। ई सब हटने के बाद भी। सोचो क्या मजा है। जनता का पैसा कहां जा रहा है।’

मनोज ने कहा, समझ गया भाई। बोला- ‘सही पकड़े हो। सुशासन बाबू के लोगों को बताना चाहिए कि विधायक सब पर कितना खर्च होता है। ऊ सब पैसा में कटौती की जाए तो युवा को नौकरी देने का पैसा नहीं निकल जाएगा, बताओ तो जरा! मजाक है क्या यार।’

मनोज अब समझाने की मुद्रा में आ चुका था। बोला- ‘देखो यार तुम जो सवाल उठा रहे हो और जो रास्ता बता रहे हो, वेतन के इंतजाम का वह न सत्ता पक्ष बताएगा और न विपक्ष। दोनों को मजा चाहिए ना। हां आरोप- प्रत्यारोप चलता रहेगा और लोकतंत्र चलता रहेगा।’

बुक स्टाल से सटी चाय दुकान भी बहुत पुरानी है और मेरी चाय भी खत्म हो चुकी थी, लेकिन इन दोस्तों की बातचीत का सिलसिला नहीं थमा था। हम इनके नाम नहीं पूछ सके इसलिए सुविधा के लिए काल्पनिक नाम दे दिए हैं। बातचीत पूरी जस की तस है।



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Source http://bhaskar.com

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