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'कोई दूसरा ऐसा करता तो मैं इसे गद्दारी से कम न मानता...' भगत सिंह का पिता के नाम वो सख्‍त खत

अक्‍टूबर, 1930 में भगत सिंह ने अपने पिता को एक चिट्ठी लिखी। पिता ने लाहौर केस में भगत के बचाव-पक्ष के लिए स्‍पेशल ट्रिब्‍यूनल को एक आवेदन भेजा था। बेहद सख्‍त लहजे में लिए गए इस खत में यह महान क्रांतिकारी एक बेटे के रूप में सारी भावनाएं उड़ेल देता है। महज 23 साल की उम्र में वो लिखता है कि 'बेटा होने के नाते आपकी भावनाओं का सम्‍मान करता हूं लेकिन बिना मुझसे सलाह-मशविरा किए ऐसा आवेदन करने का आपको कोई अधिकार नहीं था।' भगत की लेखनी और तीखी हो जाती है। वो कहते हैं, 'मुझे डर है कि आप पर दोषारोपण करते हुए या इससे बढ़कर आपके इस काम की निंदा करते हुए मैं कहीं सभ्यता की सीमाएं न लांघ जाऊं और मेरे शब्द ज्यादा सख्त न हों जाएं।' उनके आनेवाले जन्मदिन पेश हैं उनकी लिखी कुछ चिट्ठियां :

Bhagat Singh Birth Anniversary: भारत को आजाद कराने के लिए क्रांतिकारी बने भगत सिंह 28 सितंबर 1907 को पंजाब के लायलपुर गांव ( अब पाकिस्तान) में पैदा हुए थे। उन्हें राजगुरु और सुखदेव के साथ लाहौर साजिश के मामले में मौत की सजा सुनाई गई थी।


'कोई दूसरा ऐसा करता तो मैं इसे गद्दारी से कम न मानता...' भगत सिंह का पिता के नाम वो सख्‍त खत

अक्‍टूबर, 1930 में भगत सिंह ने अपने पिता को एक चिट्ठी लिखी। पिता ने लाहौर केस में भगत के बचाव-पक्ष के लिए स्‍पेशल ट्रिब्‍यूनल को एक आवेदन भेजा था। बेहद सख्‍त लहजे में लिए गए इस खत में यह महान क्रांतिकारी एक बेटे के रूप में सारी भावनाएं उड़ेल देता है। महज 23 साल की उम्र में वो लिखता है कि 'बेटा होने के नाते आपकी भावनाओं का सम्‍मान करता हूं लेकिन बिना मुझसे सलाह-मशविरा किए ऐसा आवेदन करने का आपको कोई अधिकार नहीं था।' भगत की लेखनी और तीखी हो जाती है। वो कहते हैं, 'मुझे डर है कि आप पर दोषारोपण करते हुए या इससे बढ़कर आपके इस काम की निंदा करते हुए मैं कहीं सभ्यता की सीमाएं न लांघ जाऊं और मेरे शब्द ज्यादा सख्त न हों जाएं।' उनके आनेवाले जन्मदिन पेश हैं उनकी लिखी कुछ चिट्ठियां :



भगत सिंह की पहली चिट्ठी...
भगत सिंह की पहली चिट्ठी...

लाहौर, 22 जुलाई, 1918

पूज्य बाबाजी,

नमस्ते।

अर्ज यह है कि आपका खत मिला। पढ़कर दिल खुश हुआ। इम्तिहान की बात यह है कि मैंने पहले इसलिए नहीं लिखा था क्योंकि हमें बताया नहीं गया था। अब हमें अंग्रेजी और संस्कृत का नतीजा बताया गया है। उनमें मैं पास हूं। संस्कृत में मेरे 150 नंबरों में से 110 नंबर हैं। अंग्रेजी में 150 में से 68 नंबर हैं। 150 में से जो 50 नंबर ले जाए, वह पास होता है। 68 नंबरों को लेकर मैं अच्छी तरह पास हो गया हूं। किसी किस्म की चिंता न करना। बाकी नहीं बताया गया है। छुट्टियां, 8 अगस्त को पहली छुट्टी होगी। आप कब आएंगे, लिखना।

आपका आज्ञाकारी

भगत सिंह

( 6वीं कक्षा में लिखी पहली चिट्ठी जो उन्होंने अपने दादाजी को लिखी।)



मेरी जिंदगी आजादी के नाम हो चुकी है...
मेरी जिंदगी आजादी के नाम हो चुकी है...

साल 1923

पूज्य पिताजी,

नमस्ते।

मेरी ज़िंदगी, सबसे ऊंचे मकसद यानी आजादी-ए-हिंद के नाम हो चुकी है। इसलिए मेरी ज़िंदगी में आराम और ख्वाहिशों की चाह नहीं है। आपको याद होगा कि जब मैं छोटा था तो बापू जी ने मेरे यज्ञोपवीत के वक्त ऐलान किया था कि मुझे देश के काम के लिए दान कर दिया जाए। लिहाजा मैं उस वक्त की प्रतिज्ञा पूरी कर रहा हूं।

उम्मीद है आप मुझे माफ करेंगे।

आपका ताबेदार

भगत सिंह



पिता के नाम एक सख्त खत...
पिता के नाम एक सख्त खत...

4 अक्तूबर, 1930

पूज्य पिताजी,

मुझे यह जानकर हैरानी हुई कि आपने मेरे बचाव-पक्ष के लिए स्पेशल ट्रिब्यूनल को एक आवेदन भेजा है। यह खबर इतनी यातनामय थी कि मैं इसे खामोशी से बर्दाश्त नहीं कर सका। इस खबर ने मेरे भीतर की शांति भंग कर उथल-पुथल मचा दी है। मैं यह नहीं समझ सकता कि मौजूदा स्थितियों में और इस मामले पर आप किस तरह का आवेदन दे सकते हैं?

आपका बेटा होने के नाते मैं आपकी भावनाओं और इच्छाओं का पूरा सम्मान करता हूं, लेकिन इसके बावजूद मैं समझता हूं कि आपको मेरे साथ सलाह-मशविरा किए बिना ऐसे आवेदन देने का कोई अधिकार नहीं था। आप जानते हैं कि राजनैतिक क्षेत्र में मेरे विचार आपसे काफी अलग हैं। मैं आपकी सहमति या असहमति का ख्याल किए बिना हमेशा आजादी से काम करता रहा हूं।

मुझे यकीन है कि आपको यह बात याद होगी कि आप शुरू से ही मुझसे यह बात मनवा लेने की कोशिशें करते रहे हैं कि मैं अपना मुकदमा संजीदगी से लडूं और अपना बचाव ठीक से पेश करूं, लेकिन आपको यह भी मालूम है कि मैं हमेशा इसका विरोध करता रहा हूं। मैंने कभी भी अपना बचाव करने की इच्छा नहीं जताई और न ही मैंने कभी इस पर संजीदगी से गौर किया है।

आप जानते हैं कि हम एक निश्चित नीति के मुताबिक मुकदमा लड़ रहे हैं। मेरा हर कदम इस नीति, मेरे सिद्धांतों और हमारे कार्यक्रम के मुताबिक होना चाहिए। आज स्थितियां बिलकुल अलग हैं। लेकिन स्थितियां इससे कुछ और भी अलग होतीं तो भी मैं अंतिम व्यक्ति होता जो बचाव पेश करता। इस पूरे मुकदमे में मेरे सामने एक ही विचार था और वह यह कि हमारे खिलाफ जो संगीन आरोप लगाए गए हैं, बावूजद उनके हम पूरी तरह इस बारे में अवहेलना का बर्ताव करें। मेरा नज़रिया यह रहा है कि सभी राजनैतिक कार्यकर्ताओं को ऐसी स्थितियों में उपेक्षा दिखानी चाहिए और उनको भी जो कठोरतम सजा दी जाए, वह उन्हें हंसते-हंसते बर्दाश्त करनी चाहिए। इस पूरे मुकदमे के दौरान हमारी योजना इसी सिद्धांत के मुताबिक रही है। हम ऐसा करने में सफल हुए या नहीं, यह फैसला करना मेरा काम नहीं। हम खुदगर्जी को त्यागकर अपना काम कर रहे हैं।

वाइसराय ने लाहौर साजिश केस आर्डिनेंस जारी करते हुए इसके साथ जो बयान दिया था, उसमें उन्होंने कहा था कि साजिश के मुजरिम शांति-व्यवस्था को खत्म करने की कोशिश कर रहे हैं। इससे जो हालात पैदा हुए, उन्होंने हमें यह मौका दिया कि हम जनता के सामने यह बात पेश करें कि खुद देख लें कि शांति-व्यवस्था और कानून खत्म करने की कोशिशें हम कर रहे हैं या हमारे विरोधी? इस बात पर मतभेद हो सकते हैं। शायद आप भी उनमें से एक हों जो इस बात पर मतभेद रखते हैं। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि आप मुझसे सलाह किए बिना मेरी ओर से ऐसे कदम उठाएं। मेरी ज़िंदगी इतनी कीमती नहीं जितनी कि आप सोचते हैं। कम से कम मेरे लिए तो इस जीवन की इतनी कीमत नहीं कि इसे सिद्धांतों को कुर्बान करके बचाया जाए। मेरे अलावा मेरे और साथी भी हैं जिनके मुकदमे इतने ही संगीन हैं जितना कि मेरा मुकदमा। हमने एक संयुक्त योजना अपनाई है और इस योजना पर हम अंतिम समय तक डटे रहेंगे। हमें इस बात की कोई परवाह नहीं कि हमें व्यक्तिगत रूप से इस बात के लिए क्या कीमत चुकानी पड़ेगी।

पिताजी, मैं बहुत दुख का अनुभव कर रहा हूं। मुझे डर है कि आप पर दोषारोपण करते हुए या इससे बढ़कर आपके इस काम की निंदा करते हुए मैं कहीं सभ्यता की सीमाएं न लांघ जाऊं और मेरे शब्द ज्यादा सख्त न हों जाएं। लेकिन मैं साफ शब्दों में अपनी बात जरूर कहूंगा। अगर कोई दूसरा शख्स मुझसे ऐसा व्यवहार करता तो मैं इसे गद्दारी से कम न मानता, लेकिन आपके बारे में इतना ही कहूंगा कि यह एक कमजोरी है।

यह एक ऐसा समय था जब हम सबका इम्तिहान हो रहा था। मैं यह कहना चाहता हूं कि आप इस इम्तिहान में नाकाम रहे हैं। मैं जानता हूं कि आप भी इतने ही देशप्रेमी हैं, जितना कोई और व्यक्ति हो सकता है। मैं जानता हूं कि आपने अपनी पूरी ज़िंदगी भारत की आजादी के लिए लगा दी है, लेकिन इस अहम मोड़ पर आपने ऐसी कमजोरी दिखाई, यह बात मैं समझ नहीं सकता।

अंत में मैं आपसे, आपके दोस्तों और मेरे मुकदमे में दिलचस्पी लेनेवालों से यह कहना चाहता हूं कि मैं आपके इस कदम को नापसंद करता हूं। मैं आज भी अदालत में अपना कोई बचाव पेश करने के पक्ष में नहीं हूं। अगर अदालत हमारे कुछ साथियों की ओर से स्पष्टीकरण आदि के लिए पेश किए गए आवेदन को मंजूर कर लेती तो भी मैं कोई स्पष्टीकरण पेश नहीं करता।

भूख हड़ताल के दिनों में ट्रिब्यूनल को जो आवेदन-पत्र मैंने दिया था और उन दिनों में जो साक्षात्कार दिया था, उन्हें गलत अर्थों में समझा गया है और अखबारों में प्रकाशित कर दिया गया कि मैं स्पष्टीकरण पेश करना चाहता हूं। हालांकि मैं हमेशा स्पष्टीकरण पेश करने के विरोध में रहा। आज भी मेरी यही मान्यता है, जो उस वक्त थी। बोस्टर्ल जेल में बंदी मेरे साथी इस बात को मेरी ओर से गद्दारी और विश्वासघात ही समझ रहे होंगे। मुझे उनके सामने अपनी स्थिति स्पष्ट करने का मौका भी नहीं मिल सकेगा।

मैं चाहता हूं कि इस बारे में जो उलझनें पैदा हो गई हैं, उनके बारे में जनता को असलियत का पता चल जाए। इसलिए आपसे प्रार्थना करता हूं कि आप जल्द-से-जल्द यह चिट्ठी प्रकाशित कर दें।

आपका आज्ञाकारी

भगत सिंह

(साभार: 'भगत सिंह और उनके साथियों के दस्तावेज', राजकमल प्रकाशन)



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