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विशुद्ध राजनीतिः कांग्रेस के ये सीनियर नेता तो कह रहे हैं कि पार्टी में कुछ गड़बड़ है

कैप्टन अमरिंदर सिंह के पंजाब के सीएम पद से हटने के बाद जिन कांग्रेस नेताओं को मुख्यमंत्री की रेस में शामिल माना जा रहा था, उनमें सुनील जाखड़ भी थे। जब बाजी चन्नी के हाथ लगी तो उन्हें झटका लगना स्वाभाविक था। जाखड़ की नाराजगी तब सामने आई जब शाह से मुलाकात के बाद कैप्टन को बेवफा बताया जा रहा था। जाखड़ ने तब ट्वीट किया- कुछ तो मजबूरियां रहीं होंगी, यूं ही कोई बेवफा नहीं होता। नाराज नेताओं में मनीष तिवारी भी हैं। चन्नी के मुख्यमंत्री बनने पर उन्होंने वर्ष 1989 के एनएसयूआई सम्मेलन का एक फोटो शेयर किया और लिखा, 'दिस वाज द कांग्रेस।' दोनों के बारे में बता रही हैं मंजरी चतुर्वेदी: ख्वाब टूटने से बेचैन जाखड़ 67 वर्षीय सुनील जाखड़ कांग्रेस के दिग्गज नेता व लोकसभा के दो बार के स्पीकर रहे बलराम जाखड़ के बेटे हैं। पारंपरिक रूप से राजस्थान के जाट तबके से आने वाला जाखड़ परिवार पिछले काफी समय से पंजाब में ही है। सुनील जाखड़ ही नहीं, उनके पिता बलराम जाखड़ का भी जन्म पंजाब में ही हुआ था और यहीं उनकी पढ़ाई लिखाई हुई थी। यह अलग बात है कि उन्हें हमेशा बाहरी समझा गया। वैसे जाखड़ परिवार हमेशा से कांग्रेस हाईकमान का विश्वासपात्र रहा है। पंजाब कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष और पंजाब की सियासत में बतौर हिंदू नेता अपनी अलग पहचान रखने वाले सुनील जाखड़ यूं तो अपने सौम्य स्वभाव, विनम्रता और नपे-तुले अंदाज में बोलने के लिए जाने जाते रहे हैं लेकिन इन दिनों वह तल्खी भरी बातों की वजह से चर्चा में हैं। वह आजकल न सिर्फ काफी बोल रहे हैं, बल्कि तीखा भी बोल रहे हैं। सिर्फ सुनील जाखड़ ही नहीं उनका पूरा परिवार नाराज दिख रहा है। उनके भतीजे अजयवीर सिंह ने पंजाब किसान कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया। जाखड़ गुरदासपुर से लोकसभा सांसद रहे हैं। महज ढाई महीने पहले तक पंजाब कांग्रेस के प्रमुख सुनील जाखड़ एक समय कैप्टन अमरिंदर के काफी करीब रहे लेकिन उसके बाद जब कैप्टन के खिलाफ माहौल बना तो वह विरोधी खेमे के साथ खड़े दिखाई दिए। उन्होंने नवजोत सिंह सिद्धू को कमान दिए जाने पर उनका स्वागत किया, लेकिन वही जाखड़ अब सिद्धू पर सबसे कड़ा प्रहार करने से नहीं चूक रहे। उन्हें लगता है कि सिद्धू ने ही उन्हें सीएम नहीं बनने दिया। बताया जाता है कि कैप्टन के इस्तीफे के बाद जब विधायक दल की मीटिंग में अगले सीएम को लेकर रायशुमारी हुई तो ज्यादातर विधायकों की राय जाखड़ के पक्ष में थी। बाकी दावेदारों से वह बहुत ज्यादा आगे थे, लेकिन पंजाब की सीनियर नेता अंबिका सोनी द्वारा किसी सिख चेहरे को सीएम बनाने की राय ने उनके ख्वाब को तोड़ दिया। सुनील जाखड़ को अब कैप्टन के खिलाफ जाने के अपने फैसले पर पछतावा हो रहा है। राजनीतिक गलियारों में यहां तक सुनने को मिल रहा है कि कैप्टन के साथ वह भी कांग्रेस छोड़ सकते हैं। कैप्टन के बीजेपी में जाने पर संशय माना जा रहा हो लेकिन जाखड़ के कई बीजेपी नेताओं के संपर्क में होने की बात कही जाती है। आतंकवाद के शिकार रहे हैं मनीष मनीष तिवारी की गिनती कांग्रेस के उन नेताओं में होती है जो पार्टी की लगातार दो चुनाव में हार के लिए यूपीए सरकार के बजाय कांग्रेस संगठन और लीडरशिप को जिम्मेदार मानते हैं। 2019 में राहुल गांधी के अध्यक्ष पद से इस्तीफे के बाद कांग्रेस के भीतर जो स्थितियां बनीं, उसे लेकर कांग्रेस नेतृत्व पर सवाल उठाने वाले असंतुष्ट नेताओं में ज्यादातर ऐसे ही चेहरे हैं, जो यूपीए सरकार में मंत्री रहे थे। इनमें मनीष तिवारी से लेकर कपिल सिब्बल, गुलाम नबी आजाद, आनंद शर्मा, शशि थरूर, वीरप्पा मोइली, पृथ्वीराज चव्हाण, मुकुल वासनिक, जितिन प्रसाद, रेणुका चौधरी, मिलिंद देवड़ा जैसे नाम शामिल हैं। पंजाब के एक अकादमिक परिवार से आने वाले तिवारी के पिता पंजाब यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर और लेखक थे तो मां एक डेंटिस्ट और मेडिकल कॉलेज में प्रोफेसर व एचओडी थीं। पिता हिंदू थे और मां सिख परिवार से आती थीं। पंजाब में आतंकवाद का दौर देख चुके मनीष निजी तौर पर इसके शिकार हुए थे। उनके पिता की हत्या भी उसी आतंकवाद के चलते हुई थी। राजनीति और वकालत में उनकी दिलचस्पी उन्हें अपने ननिहाल से मिली थी। उनके मामा जाने-माने वकील व पंजाब सरकार में मंत्री थे। अपने छात्र जीवन में मनीष अच्छे तैराक और वाटर पोलो के बेहतरीन खिलाड़ी रहे हैं। अपनी तीखी टिप्पणी से वह विपक्षियों पर ही नहीं, पार्टीजन पर भी तीर छोड़ते रहते हैं। उन्होंने अपने करियर की शुरुआत छात्र राजनीति से की और कांग्रेस के छात्र संगठन एनएसयूआई व यूथ कांग्रेस के अध्यक्ष रहे। लुधियाना में जनमे तिवारी ने 2004 में पहली बार लोकसभा का चुनाव लड़ा, लेकिन वह हार गए। 2009 में उन्होंने लुधियाना से फिर अपनी किस्मत आजमाई, जिसमें उन्हें जीत हासिल हुई। 2012 में जब मनमोहन सरकार-2 का मंत्रिमंडल विस्तार हुआ तो उन्हें सूचना व प्रसारण मंत्रालय जैसा अहम विभाग दिया गया। 2014 में उन्होंने पार्टी के कहने के बाद भी अपनी सेहत का हवाला देते हुए लोकसभा चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया। कहा जाता है कि यूपीए-2 सरकार के खिलाफ बने माहौल व मोदी लहर को देखते हुए उन्होंने लड़ने से मना किया था जिसे लेकर उनके खिलाफ कांग्रेस हाईकमान खासकर राहुल गांधी की खासी नाराजगी की बात सामने आई थी।
Source navbharattimes

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