DIGITELNEWS पर पढ़ें हिंदी समाचार देश और दुनिया से,जाने व्यापार,बॉलीवुड समाचार ,खेल,टेक खबरेंऔर राजनीति के हर अपडेट

 

'अफगानिस्तान में जो कुछ घट रहा, उसके अंजाम होंगे अहम', कोई नया कदम उठाने से अभी बचेगा भारत

नई दिल्ली तलिबान को लेकर भारत की चिंताएं जब तक दूर नहीं होंगी, तब तक भारत अफगानिस्तान को लेकर न कोई नया कदम उठाएगा और न ही इसके लिए किसी तरह के दबाव में कोई पहल करेगा। सूत्रों के अनुसार, पीएम नरेंद्र मोदी की अगुआई वाली केंद्र सरकार ने इस मसले पर दृढ़ स्टैंड लेने का संकेत दिया है। भारत ने यह स्टैंड ऐसे समय लिया है जब विश्व में अलग-अलग देश तालिबान के मुद्दे पर मध्यस्थता निभाने की कोशिश कर रहे हैं। पिछले हफ्ते रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने कहा था कि रूस, ईरान, चीन और पाकिस्तान मिलकर तालिबान समस्या को हल करने की कोशिश कर रहे हैं। अमेरिका को अपरोक्ष रूप से सुनाया अफगानिस्तान में तालिबान के कब्जे के बाद आई अशांति और अस्थिरता के लिए भारत ने पहली बार अपरोक्ष रूप से अमेरिका को भी दोषी ठहराया। भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा है कि पिछले साल अमेरिका और तालिबान के बीच दोहा में हुए समझौते में भारत को लूप में नहीं रखा गया। आने वाले दिन अहम होंगे लेकिन अभी सबसे अहम चिंता यह है कि अफगानिस्तान की जमीन का इस्तेमाल आतंकवाद के लिए नहीं हो। वह अमेरिका-भारत सामरिक गठजोड़ मंच के वार्षिक नेतृत्व शिखर सम्मेलन में ये बातें बोल रहे थे। यहां जयशंकर ने फिर दोहराया कि भारत तालिबान की अगुआई वाले शासन को मान्यता देने की जल्दबाजी में नहीं है। हालांकि जयशंकर ने यह जरूर कहा कि अफगानिस्तान में हाल के घटनाक्रम से संबंधित कई मुद्दों पर भारत और अमेरिका की सोच एक समान है। विदेश मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार, अमेरिका को अब अहसास हो रहा है कि तालिबान के मामले में कई देश अपने हित साध रहे हैं। मालूम हो कि बाइडन तालिबान को लेकर अपनी चिंता जाहिर कर चुके हैं और यह भी स्पष्ट शब्दों में कह चुके हैं कि किस तरह चीन, रूस, पाकिस्तान और ईरान का गठजोड़ वहां चीजें अपने नियंत्रण में करना चाह रहा है। भारत नहीं रहा है लूप में दरअसल तालिबान को लेकर अमेरिका और दूसरे देशों की ओर से की गई समझौता वार्ता में भारत कभी भी लूप में नहीं रहा। 16 अगस्त को अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे और 31 अगस्त को अमेरिका की ओर से अफगानिस्तान से अपने सैनिकों की पूरी तरह वापसी के लिए पिछले दो साल से रास्ता तलाशा जा रहा था। पिछले साल 29 फरवरी को दोहा में समझौता वार्ता में भारत का प्रतिनिधि जरूर शामिल हुआ था, लेकिन बाद में भारत पूरी प्रक्रिया से दूर ही रहा था। भारत का स्टैंट अभी भी कायम है कि तालिबान ने सरकार गठन में दोहा की अपनी टीम को ही इसमें जगह नहीं दी जिसने पिछले दो सालों में अंतरराष्ट्रीय समुदाय से समझौते के लिए डील की।
Source navbharattimes

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ