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'जो हाथ उठाए, उसका हाथ न रहे, इतना सामर्थ्य चाहिए...' संघ प्रमुख ने यूं की हिंदू एकता की अपील

नई दिल्ली विजयादशमी पर नागपुर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शस्त्र पूजा के बाद अपने भाषण में संघ प्रमुख मोहन भागवत ने हिंदुओं से संगठित होने की अपील की। उन्होंने कहा कि वह हिंदू ही है जो आतंक, कट्टरता, द्वेष और स्वार्थ के समय में दुनिया को बचा सकता है। उन्होंने कहा कि हमारी संस्कृति ही सबको अपनाने की है। हमको किसी को अपनाते समय डर नहीं लगना चाहिए लेकिन हम कमजोर हैं, इसलिए डर लगता है। हमको ताकतवर होना होगा। जो हाथ उठाए, उसका हाथ न रहे, इतना सामर्थ्य रहना चाहिए लेकिन सामर्थ्य का उपयोग कमजोरों की रक्षा के लिए होना चाहिए। 'ईसाइयत, इस्लाम आक्रमणकारियों के साथ भारत में आए, लेकिन वह इतिहास की बात' संघ प्रमुख ने कहा कि इस्लाम और ईसाइयत भले ही आक्रमणकारियों के साथ भारत में आए लेकिन वह इतिहास की बात है। उन आक्रमणकारियों के साथ किसी का कोई नाता नहीं है, सभी हिंदू पूर्वजों के ही वंशज हैं। मोहन भागवत ने कहा, 'भारत वर्ष की व्यवस्थाओं में भी विविधता रही है लेकिन सदैव एक राष्ट्र रहा है। और उसका स्व है, सभी विविधताओं का स्वीकार सम्मान। सब उपासनाओं को हम स्वीकार कर सकते हैं। ये बात सही है कि उपासना आक्रमणकारियों के साथ भी दुनिया की दो यहां आई हैं, शरणार्थियों के साथ भी दो यहां आई हैं- यहूदी और पारसी। इस्लाम और ईसाइयत आक्रमकों के साथ प्रवेश कर रही है या आक्रमकों के साथ बढ़ी। लेकिन वह इतिहास हो गया। उन आक्रमणकारियों के साथ नाता नहीं है किसी का, सब अपने उन हिंदू पूर्वजों के वंशज हैं जो इस विविधता को एकता का ही आविष्कार मानकर सबका स्वीकार सम्मान करते थे, आपस में प्रेम से मिलजुलकर रहते थे और सभी एक दूसरे का आदर करके चलते थे। उन्हीं हिंदू पूर्वजों के सब वंशज हैं।' 'उपासना पद्धति जो भी हो, सभी हिंदू पूर्वजों के वंशज' संघ प्रमुख ने कहा, 'भारत वर्ष सबकी मातृभूमि है, जिसके सिवाय किसी को गति नहीं है और कहीं। और उसकी यह सबको अपना मानने वाली संस्कृति का असर सब पर है। इसे सबको माननी चाहिए, इसमें किसी को उपासना नहीं छोड़नी पड़ती, भाषा नहीं छोड़नी पड़ती। कुछ नहीं छोड़ना पड़ता। छोड़नी पड़ती है अपनी कट्टरता, अपने अंदर अलगाव की भावना और अपनी छोटी पहचानों का अनुचित अहंकार छोड़ना पड़ता है। उसका गौरव सुरक्षित रहता है, उसकी प्रतिष्ठा, स्वीकार सम्मान सुरक्षित रहता है।' 'जो हाथ उठाए, उसका हाथ न रहे, हिंदुओं में इतनी क्षमता होनी चाहिए' मोहन भागवत ने हिंदुओं को अपने छोटे-छोटे अहंकार को भूलाकर संगठित होने की अपील की। उन्होंने कहा, 'सबसे पहले हिंदुओं को अपने छोटे-छोटे अहंकार छोड़ने होंगे। हम अपने छोटे-छोटे अहंकार भूलकर सबको अपनाने की नीयत रखें। हमारी संस्कृति को सबको अपनाती है। हमको डर नहीं लगना चाहिए किसी को अपनाते समय। लेकिन डर लगता है क्योंकि हम कमजोर है। हमकों ताकतवर बनना पड़ेगा। जो हाथ उठाए, उसका हाथ न रहे, इतना सामर्थ्य रहना चाहिए लेकिन सामर्थ्य का उपयोग कमजोरों की रक्षा के लिए होना चाहिए।' 'देश के लिए जान न्यौछावर करने वाले मुसलमान हमारे आदर्श' भागवत ने कहा कि देश के लिए जान न्यौछावर करने वाले मुसलमान हमारे आदर्श हैं। उन्होंने कहा, 'शील और शक्ति को साथ में लेकर हिंदू समाज को चलना चाहिए क्योंकि दुनिया दुष्टों की है, वह बिना शक्ति सत्य को भी नहीं मानती। हिंदू समाज को अपने भेद भूलकर संगठित होना पड़ेगा। शक्तिसंपन्न होना पड़ेगा। सबको समझना पड़ेगा कि इस अर्थ में सभी हिंदू हैं। इसीलिए तो हमारे इतिहास में राणा सांगा के साथ अकबर से लड़े, बाबर से लड़े हसन खां मेवाती हो गए। राणा प्रताप के साथ अकबर को टक्कर देने वाले हसन खां सूरी हो गए। खुदाबख्श और गौस खां अंतिम सांस तक झांसी की रानी और उनके वंशजों के साथ रहे। पंडित राम प्रसाद बिस्मिल जी के जिगरी दोस्त अशफाक उल्ला खां जैसे क्रांतिकारी उसी ने हमको दिए। बारामूला में कबाइलियों के आक्रमण के कारण देश की एकता के लिए बलिदान करने वाले मकबूल शेरवानी भी उसी के कारण हो गए। अपनी सेना के वीर जवानों में ब्रिगेडियर उस्मान से लेकर हवलदार अब्दुल हमीद जैसे वीर इसी के कारण हुए।' 'दुनिया को आतंक, कट्टरता से हिंदू समाज ही बचा सकता है' संघ प्रमुख ने कहा, 'इतिहास है कभी इस्लाम आक्रमण के कारण आया। उनसे हमारा नाता नहीं है। हमारे आदर्श ऐसे मुसलमान हैं जो देश के लिए न्यौछावर हो गए। हिंदू समाज अपने आपको संगठित, शक्तिसंपन्न बनाकर इस अपनत्व की भाषा से लोगों को समझाता है तो अपने देश में लोग समझ जाएंगे कि आतंक, कट्टरता, द्वेष और स्वार्थ के समय में दुनिया में कोई नहीं है जो इससे तारेगा, केवल वह हिंदू समाज है जो सबको स्वीकार करता है। वह शक्तिसंपन्न होगा तभी यह होगा।' 'इतिहास कलह बढ़ाने के लिए नहीं, सबक लेकर कलह मिटाने के लिए है' संघ प्रमुख ने कहा कि हमें इतिहास से सबक सीखना होगा, अतीत की गलतियों से सीखना होगा। उन्होंने कहा, 'इतिहास की घटनाओं को विद्वेष के लिए नहीं स्मरण करना है बल्कि उससे सबक लेकर इसके लिए स्मरण करना है कि यह विद्वेष न बढ़े। जन्मेजय का जब सर्प यज्ञ खंडित हुआ तो वेद व्यास से यही कहा कि हमने सुना कि हमारे पूर्वज कौरवों और पांडवों में भयानक संहारकारी युद्ध हुआ था, यह कैसे हुआ? दोनों तो भाई-भाई थे, दोनों तरफ ही अच्छे-अच्छे लोग थे तो शत्रुता कैसे बढ़ी? कौन सी ऐसी खटास थी जो दूर नहीं हो सकी, क्या उसे दूर करने का प्रयास नहीं किया गया? तब वेद व्यास जी ने महाभारत की कहानी बताई, कलह बनाने के लिए नहीं, कलह मिटाने के लिए बताई।' 'जागरूक, शक्तिशाली और सक्रिय हिंदू समाज की सभी समस्याओं का समाधान' मोहन भागवत ने कहा कि हिंदुओं का संगठित होना किसी के विरोध या प्रतिक्रिया में नहीं है। उन्होंने कहा, 'हिंदुओं को संगठित होकर शक्ति बढ़ानी होगी। यह बल किसी के विरोध या प्रतिक्रिया में नहीं है। हमारी फूट के चलते हमको तोड़कर सब लोग अपने स्वार्थ के उल्लू साधने की ताक पर है। हमें संगठित होना पड़ेगा क्योंकि जागरूक, संगठित, बलसंपन्न और सक्रिय हिंदू समाज ही सभी समस्याओं का समाधान है।'
Source navbharattimes

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