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कन्हैया के आने से घबराए तेजस्वी यादव, इसीलिए उपचुनाव में कांग्रेस को बताई 'औकात'!

पटना आखिर तेजस्वी यादव ने बिहार उपचुनाव में बगैर कांग्रेस की सहमति के RJD उम्मीदवार कैसे घोषित कर दिए। महागठबंधन में ले-देकर बिहार में उनके साथ कांग्रेस ही एक बड़ी सहयोगी बची है। बाकी लेफ्ट पार्टियों की राह वैसे भी थोड़ी अलग ही रहती है। ऐसे में तेजस्वी का ये फैसला क्या कन्हैया का कद छोटा बनाए रखने की राजनीति का हिस्सा है? कन्हैया से घबराए तेजस्वी! बिहार में युवा नेताओं की पौध की बात करें तो सीपीआई में कन्हैया को किनारे किए जाने के बाद चिराग और तेजस्वी के बीच ही सियासत की धुरी घूम रही थी। मगर चिराग अभी चाचा पारस के साथ पारिवारिक और सियासी दोनों ही संग्राम पर व्यस्त हैं। ऐसे में तेजस्वी के लिए फ्रंटफुट पर खेलना आसान था, क्योंकि भाई तेज प्रताप की बगावत के बाद भी लालू का समर्थन उन्हें हासिल है। लेकिन अचानक से कन्हैया को कांग्रेस ने अपने पाले में शामिल कर इस धुरी को त्रिकोणीय बना दिया। सूत्रों के मुताबिक ये तय है कि कांग्रेस बिहार में कन्हैया की एंट्री जोर-शोर से कराएगी। ऐसे में तेजस्वी के सामने अपनी बादशाहत को दिखाने के लिए बिहार उपचुनाव ही सबसे मुफीद समय है। शायद इसीलिए तेजस्वी ने बिहार विधानसभा उपचुनाव की दोनों सीटों पर बगैर कांग्रेस की रजामंदी के अपने उम्मीदवार घोषित कर दिए। क्या तेजस्वी कन्हैया को मान रहे चुनौती?तेजस्वी क्या कन्हैया को चुनौती मान रहे हैं? इस सवाल को महागठबंधन की पूर्व सहयोगी और वर्तमान में बिहार की एनडीए सरकार में हिस्सा VIP चीफ मुकेश सहनी के एक पुराने बयान से भी बल मिलता है। जब सहनी ने बिहार विधानसभा चुनाव 2020 में महागठबंधन से नाता तोड़ा था तो उन्होंने खुलेआम ये आरोप लगाया था कि तेजस्वी युवा नेता के तौर पर खुद से किसी को भी आगे बढ़ते देखना नहीं चाहते। ऐसे में कांग्रेस भी कन्हैया के नाम पर तेजस्वी की टक्कर में एक दूसरा विकल्प देने में कोई कमी नहीं छोड़ेगी। क्या हो सकता है कांग्रेस का दांव? सूत्रों के मुताबिक फिलहाल कन्हैया को बिहार प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनाए जाने के बजाए पार्टी का चेहरा बनाया जाएगा। मंथन इस बात पर भी चल रहा है कि अगर कांग्रेस ने दोनों सीटों पर अपने अलग उम्मीदवार घोषित किए तो कन्हैया को प्रचार में उतार दिया जाएगा और उनकी पार्टी में बड़ी बोहनी कुछ इसी तरह से कराई जाएगी। अगर ऐसा हुआ तो तेजस्वी के सामने प्रत्यक्ष तौर पर कन्हैया खड़े होंगे। कांग्रेस वैसे भी राष्ट्रीय राजनीति में बीजेपी के साथ एक बड़ा ब्रांड है (ब्रांड मतलब दूसरी बड़ी राष्ट्रीय पार्टी)। ऐसे में कन्हैया को तो फायदा मिलेगा ही, कांग्रेस भी एक तीर से दो निशाने साध देगी। खैर, ये राजनीति है और यहां कुछ भी मुमकिन है।
Source navbharattimes

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