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अरुणाचल के बदले अक्साई चिन पर डील चाहता है चीन! वाजपेयी और राजीव गांधी पर डाले थे डोरे

नई दिल्ली पूर्वी लद्दाख में लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (LAC) पर डेढ़ साल से जारी सैन्य गतिरोध को खत्म करने के लिए भारत-चीन के बीच कोर कमांडर लेवल की 13 दौर की बातचीत हो चुकी है। लेकिन पहले की बैठकों में जिन पॉइंट्स पर सैनिकों के पीछे हटने की सैद्धांतिक सहमति बन चुकी थी, चीन उसका भी सम्मान नहीं कर रहा। दूसरी तरफ, वह उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू के अरुणाचल प्रदेश दौरे का विरोध कर रहा है। भारत ने उसके बयानों को सिरे से खारिज करते हुए दो टूक कहा है कि अरुणाचल भारत का अभिन्न हिस्सा है। दरअसल, अरुणाचल प्रदेश पर दावा करने वाला चीन समय-समय पर इसका मुद्दा उठाता रहता है, लेकिन इसके पीछे उसकी पुरानी चाल है। सौदेबाजी का पैंतरा है, जिसमें वह दो बार नाकाम हो चुका है। चालबाज चीन की 'सौदेबाजी' की नाकाम कोशिश दरअसल, चीन अक्साई चिन को लेकर डील करना चाहता है। उसने अलग-अलग वक्त पर अटल बिहारी वाजपेयी और राजीव गांधी को रिझाने की कोशिश भी की थी लेकिन नाकाम रहा। 5 साल पहले 2017 में चीन के एक बड़े नेता और डिप्लोमैट डाई बिंगुओ ने अपने एक इंटरव्यू में खुलकर ड्रैगन की उन सौदेबाजी की कोशिशों पर बात की थी। बिंगुओ लंबे वक्त तक भारत-चीन के बीच सीमा विवाद के मामलों में वार्ताकार रहे हैं। वह कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना की सेन्ट्रल कमिटी के बहुत ही महत्वपूर्ण नेशनल सेक्युरिटी ग्रुप के डायरेक्टर रह चुके हैं। 2013 में रिटायर होने के बाद भी उनकी आवाज को शी चिनफिंग सरकार अहमियत देती है। वाजपेयी और राजीव गांधी पर डाले थे डोरे बिंगुओ ने 2 मार्च 2017 को चीन की एक पत्रिका 'चाइना-इंडिया डायलॉग' से इंटरव्यू में कहा था कि अगर भारत अक्साई चिन पर चीन का नियंत्रण स्वीकार कर लेता है तो बीजिंग भी एलएसी पर दूसरे जगहों पर नई दिल्ली की चिंताओं को दूर करेगा। साफ इशारा था कि भारत अक्साई चिन को चीन का हिस्सा मान ले तो चीन भी अरुणाचल प्रदेश को भारत का मान लेगा। चीन की यह पेशकश बहुत पुरानी है। इंटरव्यू में बिंगुओ ने बताया कि 1979 में चीन ने तत्कालीन विदेश मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के सामने इस डील की पेशकश की थी लेकिन उन्होंने इसे ठुकरा दिया। 1988 में चीन के पीएम डेंग जियाओपिंग ने प्रधानमंत्री राजीव गांधी के सामने भी यह पेशकश की। डेंग ने गांधी से कहा कि वेस्ट विंग पर हम कुछ समझौता कर लेते हैं और ईस्ट विंग पर आप कर लीजिए, तब हमारी सीमा भी नई हो जाएगी। लेकिन पीएम राजीव गांधी ने भी चालबाज चीन की इस पेशकश को कोई भाव नहीं दिया। चीन की इस सौदेबाजी को मानने का सीधा मतलब है कि अक्साई चिन रिजन में जो हिस्सा फिलहाल भारत के नियंत्रण में है, उनसे भी पीछे हटना। दबाव की रणनीति के तहत बार-बार अरुणाचल राग छेड़ता है चीन चीन भारत पर दबाव बनाने के लिए रह-रहकर अरुणाचल का राग छेड़ता रहता है ताकि वह बदले में अक्साई चिन पर डील कर सके। वह कभी दलाई लामा के अरुणाचल दौरे का विरोध करता है तो कभी प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति या केंद्रीय मंत्रियों के दौरे का विरोध करता है। इस बार उसने उप राष्ट्रपति वेंकैया नायडू के दौरे पर आपत्ति जताई है। इसी तरह, 2019 में पीएम मोदी के अरुणाचल दौरे पर भी ऐतराज जताया था। 2017 में दलाई लामा के दौरे को लेकर भी ऐतराज जताया जबकि वह उससे पहले ही 6 बार अरुणाचल जा चुके थे। 2017 में ही चीन ने तत्कालीन रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण के दौरे का विरोध किया था। अरुणाचल से सटे LAC पर गांव बसाना भी ड्रैगन की उसी चाल का हिस्सा भारत सरकार के किसी बड़े ओहदेदार के अरुणाचल दौरे का विरोध करने के अलावा चीन वहां तनाव भड़काने की कोशिश भी करता है। इस साल जनवरी में सैटलाइट तस्वीरों से खुलासा हुआ था कि चीन ने अरुणाचल से सटे LAC पर कई गांवों को बसाया है। ऐसी भी रिपोर्ट्स हैं कि कुछ गांव तो भारतीय सीमा के भीतर बसाए गए हैं। तब विदेश मंत्रालय ने माना था कि चीन ने अरुणाचल से सटे LAC के नजदीक तमाम बुनियादी ढांचों का निर्माण किया है। 2006 में चीनी राजदूत ने पूरे अरुणाचल पर किया था दावा चीन अरुणाचल के तवांग पर अपना दावा करता आया है लेकिन 2006 में तो चीन के राजदूत ने पूरे अरुणाचल प्रदेश पर दावा किया था। तब चीन के तत्कालीन राष्ट्रपति हु जिंताओ के भारत दौरे से एक हफ्ते सुन युक्सी ने कहा था कि चीन मानता है कि अरुणाचल का कोई खास हिस्सा नहीं बल्कि पूरा प्रदेश ही उसका है। यह भी चीनी राष्ट्रपति के दौरे से पहले 'सौदेबाजी' के लिए चीन की तरफ से भारत पर दबाव बनाने की हो कोशिश थी। 'वन चाइना' पॉलिसी से अलग होने का वक्त! भारत ने हर बार चीन की आपत्तियों को सिरे से खारिज किया है और दो टूक कहा है कि अरुणाचल प्रदेश उसका अटूट हिस्सा है। अरुणाचल पर चीन का दावा भारत के साथ सौदेबाजी के लिए उसकी पैंतरेबाजी का ही हिस्सा है। 2020 में तो अमेरिका ने भी साफ लफ्ज में कहा था कि वह अरुणाचल को भारत का अभिन्न हिस्सा मानता है। तमाम एक्सपर्ट्स कई बार सलाह दे चुके हैं कि भारत को भी कड़ा रुख अपनाते हुए 'वन चाइना' पॉलिसी को त्याग देना चाहिए। चीन की गिद्ध दृष्टि अब ताइवान पर है लिहाजा नई दिल्ली को ताइवान को एक अलग देश के तौर पर मान्यता देने का साथ-साथ उससे राजनयिक रिश्ते भी बनाने चाहिए।
Source navbharattimes

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