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जब एयर इंडिया पर हुआ था पहला आतंकी हमला, निशाने पर थे चीन के PM, 'कश्मीर प्रिंसेज' ब्लास्ट की कहानी

नई दिल्ली एयर इंडिया आजकल सुर्खियों में है। इसकी वजह है- 68 साल बाद घर वापसी। 1953 में एयर इंडिया के राष्ट्रीयकरण के करीब 7 दशक बाद यह कंपनी फिर उसी के हाथ में जा रही है, जिसने इसकी 1932 में बुनियाद रखी यानी टाटा समूह। एयर इंडिया कभी इंडियन एविएशन की सरताज थी। 50-60 के दशक में जलवा यह था कि जब चीन समेत एशिया के तमाम दिग्गजों के पास लंबी दूरी तय करने लायक आधुनिक विमान नहीं थे तब एयर इंडिया के पास उस वक्त के बेहतरीन एयरक्राफ्ट थे। 1955 में चीन के प्रधानमंत्री झाउ एनलाई को इंडोनेशिया के बांडुंग में हुए गुट निरपेक्ष आंदोलन के सम्मेलन में शिरकत करना था लेकिन चीन के पास इतनी लंबी दूरी तय करने लायक विमान नहीं था। तब उन्होंने चार्टर्ड फ्लाइट के लिए एयर इंडिया के ही विमान को चुना। हालांकि, उससे एक बहुत ही बुरी याद जुड़ गई क्योंकि साउथ चाइना शी के ऊपर विमान बम ब्लास्ट का शिकार हो गया और 16 लोगों की मौत हो गई। 11 अप्रैल 1955 ही वह मनहूस दिन था जब एयर इंडिया का कोई विमान पहली बार बम ब्लास्ट का शिकार हुआ था। निशाने पर चीन के तत्कालीन प्रधानमंत्री झाउ एनलाई थे लेकिन एक मेडिकल इमर्जेंसी उनके लिए वरदान बन गई और वह बच गए। दरअसल, पहले से तय कार्यक्रम के हिसाब से चीनी प्रधानमंत्री को 11 अप्रैल 1955 को हॉन्ग कॉन्ग से जकार्ता के लिए उड़ना था। एयर इंडिया के चार्टर्ड प्लेन 'कश्मीर प्रिंसेज' से उड़ान भरनी थी। यह एक लॉकहीड- L-749A कॉन्स्टेलेशन एयरक्राफ्ट था। 'कश्मीर प्रिंसेज' ने हॉन्ग कॉन्ग के काई ताक एयरपोर्ट से उड़ान भरी। संयोग से इसमें चीनी प्रधानमंत्री झाउ एनलाई नहीं थे। बताया गया कि मेडिकल इमर्जेंसी की वजह से वह इसमें सवार नहीं हुए। विमान में 14 यात्री थे जिनमें ज्यादातर शिन्हुआ और ईस्टर्न यूरोप के पत्रकार थे। इसके अलावा 5 क्रू और केबिन मेंबर थे। उड़ान के करीब 5 घंटे बाद साउथ चाइना सी के ऊपर विमान में जोरदार धमाका हुआ जिसमें पाइलट डी. के. जतर स्टिवर्डेस ग्लोरिया इवा बेरी समेत 16 लोगों की मौत हो गई। लेकिन 3 लोग बच गए जो किसी चमत्कार से कम नहीं था। ये तीन खुशनसीब थे- को-पाइलट एम. सी. दीक्षित, ग्राउंड मैंटिनेंस इंजीनियर अनंत कार्निक और नेविगेटर जे. सी. पाठक। तीनों साउथ चाइना सी में 12 घंटे तक तैरते रहे, जब तक कि मछुआरों ने उन्हें बचा नहीं लिया। बाद में उन्हें एक ब्रिटिश जंगी जहाज से सुरक्षित सिंगापुर ले जाया गया। बाद में पांचों क्रू-केबिन मेंबर - डी. के. जतर, ग्लोरिया इवा बेरी, एम. सी. दीक्षित, अनंत कार्निक और जे. सी. पाठक को भारत में शांतिकाल के सर्वोच्च शौर्य पुरस्कार अशोक चक्र से नवाजा गया। ये पहले सिविलियन थे जिन्हें अशोक चक्र से सम्मानित किया गया। जांच में यह बात सामने आई कि 'कश्मीर प्रिंसेज' को टाइम बम से उड़ाया गया था जिसे विमान के व्हील बे में फिट किया गया था। माना जाता है कि इस ब्लास्ट के पीछे गुओमिंदांग (चाइनीज नेशनलिस्ट पार्टी) का हाथ था और मकसद चीन के प्रधानमंत्री झाउ एनलाई की हत्या करना था। जिस शख्स ने प्लेन में कथित तौर पर टाइम बम फिट किया वह एयर पोर्ट का ही एक कर्मचारी चोउ चु था जो गुओमिंदांग का सीक्रेट एजेंट था। चीनी प्रधानमंत्री को मारने की फुल प्रूफ प्लानिंग थी लेकिन मेडिकल इमर्जेंसी की वजह से वह विमान में सवार ही नहीं हुए। झाउ एनलाई के विमान में सवार नहीं होने की वजह यह बताई गई कि उन्हें इमर्जेंसी में अपेंडिक्स का ऑपरेशन कराना पड़ा है। हालांकि, कहा यह भी जाता है कि चीनी प्रधानमंत्री को पहले से ही खतरे की भनक लग गई थी और इसी वजह से वह आखिरी वक्त में कश्मीर प्रिंसेज में सवार नहीं हुए। चीन ने तब ब्लास्ट के लिए अमेरिकी खुफिया एजेंसी CIA पर भी शक जताया था जिसे वॉशिंगटन ने खारिज किया था। हालांकि, अप्रैल 2004 में चीन ने 1949 से 1955 के बीच के सीक्रेट डिप्लोमैटिक फाइल्स को डीक्लासिफाई किया, जिसमें ब्लास्ट को गुओमिंदांग की ही साजिश बताया गया।
Source navbharattimes

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