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‘सोचो, 11 सांसदों की गरदन काटनी पड़ेगी’, जब 'बेईमान' सांसदों को लेकर अड़ गए थे राम गोपाल यादव

प्रेम शंकर मिश्र बात 2005 की सर्दियों की है। दिसंबर में एक टीवी चैनल पर कुछ सांसदों के स्टिंग चलने लगे। उसमें माननीय कैमरे पर सवाल के बदले पैसे लेने की बात कबूलते नजर आए। सियासत में भूचाल आ गया। लोकतंत्र को कलंकित करने के इस खेल में कई दलों के सांसद शामिल थे। इनके भविष्य का फैसला लेने के लिए कमिटी बनाई गई। समाजवादी पार्टी के राज्यसभा सांसद रामगोपाल यादव भी इस कमिटी के सदस्य थे। राज्यसभा सांसद रामगोपाल यादव पर केंद्रित किताब ‘राजनीति के उस पार’ में एशपी मुखिया अखिलेश यादव ने इस वाकये का विस्तार से जिक्र किया है। रामगोपाल का मानना था कि इन सांसदों की सदस्यता तुरंत खारिज होनी चाहिए। यह संसदीय चरित्र के इम्तिहान का वक्त है। इसमें चूकना नहीं चाहिए। मगर कमिटी के बाकी सदस्य नरमी के मूड में थे। बीजेपी नेता विजय कुमार मल्होत्रा रामगोपाल के पास आए। उन्होंने सीधे कहा, ‘प्रोफेसर तुम क्यों रास्ते का कांटा बन रहे हो? सोचो, 11 सांसदों की गर्दन काटनी पड़ेगी।’ उन्होंने बताया कि लालू यादव चाहते हैं, इन सांसदों को बख्श दिया जाए। प्रणब दा भी यही चाहते हैं। लोकसभा के 10 सांसद और राज्यसभा के एक सांसद को हटाया गयामगर, रामगोपाल अड़ गए। उन्होंने कहा कि 540 सांसद भी उधर हो जाएं तो भी मैं अपना इरादा नहीं बदलूंगा। मैं खिलाफ ही वोट करूंगा। लोग क्या सोचेंगे, बेईमान सांसदों को बचाने के लिए पूरी संसद एक हो गई? यह नहीं हो सकता। आखिरकार, सांसदों पर एक्शन हुआ। उनकी कुर्सी गई। लोकसभा के दस सांसद और राज्यसभा के एक सांसद को हटाया गया। कबूतरबाजी मामले में भी रामगोपाल का स्टैंड यही था कि दोषी सांसदों पर एक्शन होना चाहिए। दरअसल, कुछ सांसदों पर मानव तस्करी में मदद करने का आरोप लगा था। इस मामले में उनके खिलाफ मुकदमा भी हुआ था। मंत्री न बनने पर अड़े रामगोपाल यादवमनमोहन सिंह की अगुआई वाली यूपीए सरकार के सामने न्यूक्लियर डील को लेकर संकट की स्थिति खड़ी हो गई। उसके कुछ सहयोगी दलों ने ही इसका विरोध कर दिया। खासकर, वामपंथी दलों ने इस डील के खिलाफ खुलकर मोर्चा खोल दिया। ऐसे में समाजवादी पार्टी संकटमोचक बनकर आई। उसने न्यूक्लियर डील पर कांग्रेस का साथ दिया। अमर सिंह इसके मुख्य सूत्रधार थे। 2009 का लोकसभा चुनाव हुआ। यूपीए दोबारा सत्ता में आई। इसके साथ ही एसपी के सरकार में शामिल होने का भी रास्ता खुल गया। अमर सिंह के घर पर चर्चा हुई कि एसपी से कौन-कौन मंत्री बना सकता है। मुलायम सिंह ने रामगोपाल यादव का नाम लिया। उनका मानना था कि प्रोफेसर इसके लिए मुफीद साबित होंगे। जब बात रामगोपाल तक पहुंची, तो उन्होंने सरकार में शामिल होने से साफ इनकार कर दिया। वह कांग्रेस की अगुआई वाली सरकार में शामिल होने को तैयार नहीं थे। उनका कहना था कि यह उनके राजनीतिक सिद्धांतों से मेल नहीं खाता। रामगोपाल के मना करने के बाद मुलायम ने भी कांग्रेस को मना कर दिया। उन्होंने कहा कि जब हमारे सदन के नेता ही मंत्री बनने को तैयार नहीं हैं तो फिर कोई मंत्री नहीं बनेगा। हम सरकार में शामिल नहीं होंगे। इस फैसले के चलते एसपी कांग्रेस सरकार का हिस्सा बनते-बनते रह गई। 2017 में कांग्रेस के साथ मिलकर लड़ा चुनावहालांकि, जो एसपी कभी कांग्रेस सरकार का हिस्सा होने को सिद्धांतों के खिलाफ समझती थी, उसी ने 2017 में कांग्रेस के साथ मिलकर विधानसभा चुनाव लड़ा। पूर्व कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने भी इसी किताब में एक दिलचस्प वाकया लिखा है। 2014 के लोकसभा चुनाव का प्रचार चरम पर था। यूपी में रविशंकर प्रसाद को भी बीजेपी ने चुनावी अभियान पर लगाया था। वह पूर्वांचल के दौरे पर थे। पार्टी ने उनको निजी विमान उपलब्ध कराया था। वह बनारस एयरपोर्ट पर पहुंचे जहां रामगोपाल यादव पहले से मौजूद थे। उन्हें भी दिल्ली जाना था। रविशंकर प्रसाद ने हंसते हुए रामगोपाल से पूछा, ‘साथ चलेंगे?’ वह मुस्कुराए और रविशंकर की पीठ ठोकते हुए बोले, ‘जाओ, अब तुम देश का कानून मंत्री बनने की तैयारी करो।’ संयोग से रविशंकर मोदी सरकार में पहले संचार और बाद में कानून मंत्री बने। जब अमर सिंह बाहर किए गए2016 की दूसरी छमाही में उत्तर प्रदेश की समाजवादी पार्टी में परिवार की जंग चरम पर पहुंच गई थी। सितंबर से शुरू हुई उठा-पटक ने यूपी के राजनीतिक परिदृश्य को ही बदल दिया। मुलायम परिवार के भीतर चाचा और भतीजे के बीच चल रही इस महाभारत में अमर सिंह अहम भूमिका निभा रहे थे। स्थिति यह हो गई कि मुलायम सिंह यादव ने अमर सिंह के कहने पर अखिलेश यादव को प्रदेश अध्यक्ष पद से हटा दिया। शिवपाल यादव प्रदेश अध्यक्ष हो गए। एसपी के पूर्व राज्यसभा सांसद जावेद अली खान बताते हैं साजिश के तहत मुख्यमंत्री बदलने के लिए एसपी विधायक दल की बैठक भी बुला ली गई। रामगोपाल यादव ने इस पूरी कवायद का खुला विरोध किया तो उन्हें भी पार्टी से निकाले जाने की चिट्ठी जारी हो गई। इसके बाद पार्टी के 90 से अधिक विधायक अखिलेश यादव के पक्ष में हलफनामा लेकर पहुंच गए और कुर्सी पलट का खेल फेल हो गया। इसके बाद अखिलेश ने अपनी ताकत और तेवर दिखाए। जनेश्वर मिश्र पार्क में हुए राष्ट्रीय अधिवेशन में रामगोपाल यादव ने अखिलेश यादव को एसपी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाने और मुलायम सिंह यादव को संरक्षक बनाने का प्रस्ताव रखा। प्रस्ताव पास हो गया। दूसरा प्रस्ताव, अमर सिंह को पार्टी से बाहर निकालने का हुआ, वह भी पास हो गया। शिवपाल यादव को प्रदेश अध्यक्ष पद से बर्खास्त कर दिया गया। बाद में, अमर सिंह ने इस्तीफे का दांव खेला, आखिरकार उसे भी स्वीकार कर उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया गया।
Source navbharattimes

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