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उम्र 77, वही फौजी तेज, वही चमक... पद्मा, जिनके लिए आज तालियों से गूंज उठा राष्ट्रपति भवन

पद्मा बंदोपाध्याय का एक पुराना इंटरव्यू खंगालने से उनकी ज़ाती जिंदगी से कई पहलुओं को करीब से समझा। वो कहती हैं कि ऐ मेरे वतन के लोगों जरा आंखों में भर लो पानी...गीत ने उनकी जिंदगी बदल दी। पद्मा दिल्ली में ही गोल मार्केट के पास अपने परिवार के साथ रहतीं थीं। और जैसा की हर इंसान अपनी जिंदगी में सोचता है कि वो बड़े होकर आईएएस बनेगा वैसा ही कुछ उन्होंने भी सोचा था।

देश की आजादी से ठीक तीन साल पहले जन्म लेने वालीं पद्मा बंदोपाध्याय की सोच बिल्कुल वैसी नहीं जैसी हर किसी की होती है। जिस वक्त देश आजादी की जंग लड़ रहा था और देश के अंदर उठापटक मची थी, उस वक्त पद्मा बंदोपाध्याय ने सोच लिया था कि वो अब आसमान की बुलंदियों को छुएंगी। देश में आज भी महिलाओं की स्थिति पर चर्चा होती रहती है। मगर जिस दौर पर पद्मा बंदोपाध्याय ने एयरफोर्स जॉइन किया उस वक्त एयरफोर्स का नाम भी शायद किसी महिला के जेहन में आता हो।


ऐ मेरे वतन के लोगों...ने बदल दी थी पद्मा बंदोपाध्याय की जिंदगी, 77 की उम्र में जब पद्मश्री लेने पहुंची तो वही तेज, वही चमक, तालियों से गूंज उठा हॉल

पद्मा बंदोपाध्याय का एक पुराना इंटरव्यू खंगालने से उनकी ज़ाती जिंदगी से कई पहलुओं को करीब से समझा। वो कहती हैं कि ऐ मेरे वतन के लोगों जरा आंखों में भर लो पानी...गीत ने उनकी जिंदगी बदल दी। पद्मा दिल्ली में ही गोल मार्केट के पास अपने परिवार के साथ रहतीं थीं। और जैसा की हर इंसान अपनी जिंदगी में सोचता है कि वो बड़े होकर आईएएस बनेगा वैसा ही कुछ उन्होंने भी सोचा था।



खुद पढ़िए क्या कहती हैं डॉ पद्मा बंदोपाध्याय
खुद पढ़िए क्या कहती हैं डॉ पद्मा बंदोपाध्याय

डॉ पद्मा बंदोपाध्याय के अनुसार सेना की वर्दी उन युवतियों के लिए नहीं है जो महज रोमांच के लिए इस सेवा में आना चाहती हैं। अगर कोई लड़की मानसिक तौपर तैयार नहीं होगी तो यह सविर्स उसके लिए एवरेस्ट को फतह करने से कहीं ज्यादा मुश्किल साबित हो सकती है। सेना में कई मुश्किल हालात का सामना करना पड़ सकता है। इनसे उन्हें एक आम सैनिक की तरह निबटना होता है और महिला होने के नाते वे इससे बच नहीं सकतीं। वैसे, किसी महिला अधिकारी के आत्महत्या करने से यह नहीं माना जाना चाहिए कि सेना महिलाओं को रखने में सक्षम नहीं है। इस सर्विस में आनेवाली कठिनाइयों को चैलेंज के रूप में भी लिया जा सकता है और सजा के तौपर भी। यह सब माइंडसेट पर निर्भर करता है।"



IAS बनना चाहती थीं पद्मा बंदोपाध्याय
IAS बनना चाहती थीं पद्मा बंदोपाध्याय

पद्मा बंदोपाध्याय का एक पुराना इंटरव्यू खंगालने से उनकी ज़ाती जिंदगी से कई पहलुओं को करीब से समझा। वो कहती हैं कि ऐ मेरे वतन के लोगों जरा आंखों में भर लो पानी...गीत ने उनकी जिंदगी बदल दी। पद्मा दिल्ली में ही गोल मार्केट के पास अपने परिवार के साथ रहतीं थीं। और जैसा की हर इंसान अपनी जिंदगी में सोचता है कि वो बड़े होकर आईएएस बनेगा वैसा ही कुछ उन्होंने भी सोचा था। लेकिन पद्मा अचानक एक दिन अपने दोस्तों के साथ खेल रहीं थी और लगभग 6 महीने के बाद ही सब गायब हो गए। कौन कहां चला गया पता ही नहीं चला। 1962 के युद्ध में 50 घरों में से तकरीबन 20 लोग उस युद्ध में शहीद हो गए थे। बस तभी पद्मा के मन से आईएएस का ख्याल मिट गया और बस जिद सवार हुई कि उनको देश के लिए कुछ करना है।



सभी लोग हंसते थे ये सुनकर कि मैं फौजी बनना चाहती हूं
सभी लोग हंसते थे ये सुनकर कि मैं फौजी बनना चाहती हूं

पद्मा आगे कहती हैं, 'मुझे बस ये पता था कि मुझे फौज में भर्ती होना है मगर कैसे होना है ये पता नहीं था। मैं किसी से भी बोलती थीं कि मुझे फौज में भर्ती होना है सब लोग हंसते थे। बोलते थे कि लड़की होकर फौज में कैसे भर्ती होगी। 1962 को ऑर्मड फोर्सेस मेडिकल कॉलेज की स्थापना हुई। बहुत ही कड़ा कॉम्पिटीशन था। उसमें 15 लड़कियां और 100 से 120 के बीच में लड़कों का प्रवेश हुआ। यहां तक पहुंचने का सफर भी कांटों भरा था।' वो आगे कहती हैं कि उनकी मां बीमार थी और उनको साइंस में दाखिला लेना था। लेकिन आस पास के स्कूल में आर्ट और दूसरे सब्जेक्ट थे। तो मां बोलती हैं कि कहां जाओगी दूर। यहीं पास वाले स्कूल में ही दाखिला ले लो। बस वस में जाना पड़ेगा इतनी दूर नहीं जाना।



हवा में अठखेलियां करते देखा था हवाई जहाज
हवा में अठखेलियां करते देखा था हवाई जहाज

वो आगे कहती हैं कि इस वक्त कि जब उनको कहीं पर एडमिशन नहीं दे रहा था क्योंकि वो अंडर एज थीं तो उनके पिता ने सभी कॉलेज में जाकर वहां हाथ जोड़े और बोले कि प्लीज हमारी बिटिया को एडमिशन दे दो। ये कर लेगी कोशिश करेगी। बहुत लोग हंसे और उनका मजाक भी उड़ाया। आखिरी में दिल्ली के किरोड़ीमल कॉलेज ने उनको मौका दे दिया ताकि वो प्रीमेडिकल यहां से कर लें। किरोड़ीमल कॉलेज के कारण मैं डॉक्टर बन पाई। इसमें मेरे पिता ने हमेशा मेरा साथ दिया। उन्होंने बताया कि फिर यहां से उनको मौका मिला कि वो तय करें कि उनको आर्मी में जाना है या फिर नेवी या एयरफोर्स में।



1971 युद्ध के वक्त पति के साथ सरहद में तैनात
1971 युद्ध के वक्त पति के साथ सरहद में तैनात

पद्मा बोलीं कि 21 या 22 साल की उम्र में आप क्या सोचते हो मैं भी कुछ वही सोचता हूं। आर्मी में लेफ्ट राइट करना पड़ता है, नेवी में पानी के अंदर ही घुसे रहते किसी को दिखते ही नहीं तो एयरफोर्स में जाने का तय किया। इसके बाद अब मन हुआ कि क्यों न पायलट बना जाए। फिर मैं पायलटों के साथ उड़ने लगी। 1971 के वॉर में वो पंजाब बॉर्डर में तैनात थीं। उनके पति भी वहां तैनात थे। उधर पर मैं सिर्फ अकेली लेडी थी मेरा बच्चा 6 या 7 महीने का था। हम बंकर में रहते थे।



भारत की पहली महिला एयर मार्शल
भारत की पहली महिला एयर मार्शल

डॉ पद्मा बंदोपाध्याय भारत की पहली महिला एयर वाइस मार्शल हैं। वह एयर कॉमॉडोर के पद पर पदोन्नत होने के लिए भारतीय वायु सेना की पहली महिला अधिकारी और भारत के एयरोस्पेस मेडिकल सोसायटी की पहली हैं। वह उत्तरी ध्रुव में वैज्ञानिक अनुसंधान करने वाली पहली भारतीय महिला हैं। उनकी एक और उपलब्धि यह है कि वह भी रक्षा सेवा स्टाफ कॉलेज कोर्स पूरा करने वाली पहली महिला अधिकारी हैं। 1973 में उन्हें विशिष्ट सेवा पदक प्राप्त हुआ और 1991 में उन्हें ए एफ एच ए पुरस्कार प्राप्त हुआ।



त्याग किसे कहते हैं डॉ पद्मा बंदोपाध्याय से सीखो
त्याग किसे कहते हैं डॉ पद्मा बंदोपाध्याय से सीखो

डॉ पद्मा बंदोपाध्याय भारत की पहली महिला एयर वाइस मार्शल हैं। वह एयर कॉमॉडोर के पद पर पदोन्नत होने के लिए भारतीय वायु सेना की पहली महिला अधिकारी और भारत के एयरोस्पेस मेडिकल सोसायटी की पहली हैं। वह उत्तरी ध्रुव में वैज्ञानिक अनुसंधान करने वाली पहली भारतीय महिला हैं। उनकी एक और उपलब्धि यह है कि वह भी रक्षा सेवा स्टाफ कॉलेज कोर्स पूरा करने वाली पहली महिला अधिकारी हैं। 1973 में उन्हें विशिष्ट सेवा पदक प्राप्त हुआ और 1991 में उन्हें ए एफ एच ए पुरस्कार प्राप्त हुआ।



Source navbharattimes

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