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अड़ियल होने की छवि टूटी, चुनावी राह हुई आसान

नई दिल्लीकिसानों की नाराजगी से पनपे आंदोलन के जरिए सरकार की छवि एक अड़ियल और तानाशाह जैसी बनाई जा रही थी। कानूनों को वापस लेने का ऐलान कर प्रधानमंत्री ने सरकार की उदारवादी छवि पेश करने की कोशिश की है। एक ऐसी सरकार जो सभी के मत से अपने फैसले लागू करने में यकीन रखती है। वहीं, पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव होने हैं। जिनमें पंजाब, यूपी, उत्तराखंड में किसान आंदोलन के सबसे ज्यादा असर होने की बात कही जा रही है। पंजाब में भी किसानों की नाराजगी की वजह से बीजेपी हाशिए पर चली गई थी। वेस्ट यूपी में तो सियासी समीकरण ही बिगड़ता दिखाई पड़ रहा है। बीजेपी कोर ग्रुप की बैठकों में यह बात बार-बार आई कि खेती कानून विधानसभा चुनाव में नुकसान की वजह बन सकते हैं। बीजेपी को यह लग रहा है कि अगर पांच राज्यों के चुनाव में उसे नुकसान हो गया तो फिर 2024 की राह मुश्किल होती जाएगी। पांच राज्यों के चुनाव के बाद और 2024 से पहले गुजरात, कर्नाटक, मध्यप्रदेश, राजस्थान, आंध्रप्रदेश और तेलंगाना जैसे अहम राज्यों के चुनाव होने हैं। ये राज्य भी पांच राज्यों के नतीजों से प्रभावित हो सकते हैं। क्या होगा असर 1. विपक्ष लाख कहे कि उसने सरकार को कानून वापस लेने को मजबूर कर दिया। यह एक तरीके उसके लिए मनोवैज्ञानिक बढ़त तो हो सकती है लेकिन बीजेपी को कोई बहुत ज्यादा नुकसान नहीं हो सकता। मोदी सरकार ने कानून वापस लेकर विपक्ष के उस हथियार को छीनने का काम किया है, जिसके जरिए पांच राज्यों के चुनाव में धारदार तरीके से हमला हो सकता था। 2. कानून वापसी कृषि क्षेत्र में सुधार की दिशा में उठाए जाने वाले कदमों पर ब्रेक जरूर लगा देगा। विशाल बहुमत वाली मोदी सरकार को अगर अपने कदम पीछे खींचने पड़ गए, जो यह साबित करता है कि इस दिशा में कदम बढ़ाना बहुत आसान नहीं है। 3. कानून वापसी ने किसानों की ताकत को एक नई पहचान दी है। आने वाले समय में राज्य से लेकर केंद्र तक चाहे जिस भी दल की सरकार हो, वह किसानों को नजरअंदाज करने का साहस नहीं कर पाएगी। लेकिन यह भी जरूरी होगा कि किसान नेतृत्व खुद भी ईमानदार रहें। एनबीटी रायएक साल से चले आ रहे अप्रिय तनाव को खत्म करने के लिहाज से इस कदम का स्वागत किया जा सकता है। लेकिन सरकार को कृषि सुधार के लिए नए सिरे और नए तरीके से कोशिश जरूर करते रहना चाहिए। ऐसे सुधार जरूरी थे। लिहाजा यह संकेत जा सकता है कि सरकार ने आर्थिक बदलाव का रास्ता छोड़ दिया है और वह भी पिछली सरकारों की तरह राजनीतिक दबाव के आगे घुटने टेकने लगी है। यह संदेश देश की इकोनॉमी के लिए बुरा होगा। सरकार को इस धारणा को खत्म करना चाहिए। दूसरे मोर्चों पर सुधार की गाड़ी आगे बढ़ती जाए। यह अनुभव बताता है कि सुधारों से पहले विभिन्न पक्षों से संवाद और सहमति हासिल करना कितना जरूरी होता है। अगर इस सबक को अमल में लाया जाए तो बहुत मुमकिन है कि आगे चलकर बेहतर तरीके से बदलाव लाए जा सकेंगे।
Source navbharattimes

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